हर रोज होता है बेटियों का उत्पीड़न
- महिला सेल में रोजाना आते हैं 1-2 मामले
-रोजाना महिलाएं होती हैं घटनाओं का शिकार - पिछले छह माह में प्रोबेशन ऑफिस में आए करीब 300 मामले GORAKHPUR: 'बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ', 'वुमन इम्पॉवरमेंट', 'पढ़ेंगी बेटियां, बढ़ेंगी बेटियां', देश और प्रदेश में महिलाओं को आगे बढ़ाने की बातें इन दिनों आम है। हर सरकार बेटियों को आगे बढ़ाने की बात करने में लगी है। इसके लिए तरह-तरह की स्कीम भी चलाई जा रही है, जिसके सफल होने के भी दावे किए जा रहे हैं। मगर, इस हकीकत के बीच एक कड़वा सच यह भी है कि बेटियां अब भी सुरक्षित नहीं हैं और वह रोज प्रताड़ना का शिकार हो रही हैं। सरकारी विभाग के आंकड़े बयान कर रहे हैं कि गोरखपुर जिले में रोजाना बेटियों का उत्पीड़न हो रहा है। मगर अब तक जिम्मेदारों ने इस ओर कोई ठोस कदम नहीं बढ़ाया है। लगातार बढ़ रहे हैं आंकड़ेसरकार जितने भी दावे कर लें, वह जितनी भी योजनाएं चला लें, लेकिन महिलाओं के साथ हो रहे क्राइम का ग्रॉफ दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है। सबसे ज्यादा उत्पीड़न घरों में ही देखने को मिल रहा है। प्रोबेशन ऑफिस में पिछले छह माह में आए आंकड़ों पर नजर डालें तो रोजाना दो महिलाएं उत्पीड़न का शिकार हो रही हैं। इनमें सबसे ज्यादा केस दहेज उत्पीड़न के हैं। पिछले तीन माह की बात करें तो यह आंकड़ा काफी तेजी से बढ़ा है। अप्रैल में जहां 39 मामले आए थे, वहीं मई में 54 और जून में यह बढ़कर 59 तक पहुंच चुके हैं।
कोई नहीं होता राजी अहं की आंच ने घरों को तबाह कर दिया है। यहां रोजाना रिश्तों का कत्ल हो रहा है। महिला उत्पीड़न केस में काउंसिलिंग कर सुलह की कोशिश करने वाले लोगों की मानें तो दोनों पक्षों को काफी समझाया जाता है, लेकिन कोई भी पक्ष बैकफुट पर जाने के लिए राजी नहीं होता। अहं उन पर इस कदर सवार हो चुका है कि गलती होने के बाद भी वह किसी भी सूरत में पीछे होने को तैयार नहीं होते। वहीं जिस पक्ष की गलती नहीं है, उसके तो मानने का कोई सवाल ही नहीं होता। सुलझते हैं 100 में से 5 केसकाउंसलर्स की मानें तो महिला उत्पीड़न के जितने भी केसेज आते हैं, उसमें फैमिली मेंबर्स के दबाव या किसी वजह से दोनों पक्षों के बीच सुलह नहीं हो पाती। यहां आने वाले 100 केसेज में 5 केसेज में ही बात-चीत से मामला सुलझ पाता है। बाकी सभी केसेज को न्यायालय में भेजना पड़ता है। इस मामले में फैमिली वालों की जिद में लड़कियों को ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ता है। ऐसे केसेज में कई बार वह डिप्रेशन में भी चली जाती हैं।
महिला उत्पीड़न के रोजाना एक या दो मामले दर्ज होते हैं। इसमें पहले दोनों पक्षों को बैठाकर सुलह कराने की कोशिश की जाती है। जब बात नहीं बनती, तो मामले को न्यायालय भेज दिया जाता है। - समर बहादुर सरोज, जिला प्रोबेशन अधिकारी, गोरखपुर कुछ यूं आए मामले मंथ केस जनवरी 53 फरवरी 31 मार्च 36 अप्रैल 39 मई 54 जून 59