यहां चुकानी पड़ती है प्यास की कीमत
- दूषित पानी और लापरवाह अफसरों ने बढ़ाया पानी के गैलन का बिजनेस
- डेली सवा दो लाख रुपए का बिकता है पानी - पांच साल पहले थे महज दो प्लांट, अब हैं सवा सौ से ज्यादाGORAKHPUR : ए भाई, जरा हैंडपंप चला कर पानी पिला दोगे। अरे इस हैंडपंप से पानी पियोगे। मालूम नहीं, इसे पीने से तो जांडिस हो जाता है। अरे नहीं इस पानी से प्यास बुझाओगे तो इंसेफेलाइटिस हो जाएगा। ये सब बीमारी तो कम है, अगर इस पानी को लगातार पियोगे तो कैंसर हो जाएगा। ये पानी अब प्यास बुझाने के बजाए जहरीला हो गया है। पिछले पांच साल में हुए अनेक तरह के सर्वे की रिपोर्ट्स में कुछ ऐसा ही नजर आ रहा है। हर रिपोर्ट में पानी के दूषित होने का सबूत तो मिल ही रहा है, मगर उसका प्रभाव खतरनाक होता जा रहा है। पानी के इस रूप ने गोरखपुर में एक नए बिजनेस को बढ़ने का मौका दिया है। जी हां, अब गोरखपुर में पानी बिकता है। प्यास बुझाने के लिए कीमत अदा करनी पड़ती है। हम बताते हैं कि दूषित पानी और लापरवाही अफसरों की वजह से पानी के बिजनेस ने किस तरह से रफ्तार पकड़ी है।
हर दिन बढ़ रही डिमांडअवेयरनेस के साथ पानी का बिजनेस तेजी से बढ़ रहा है। हर रोज पानी की डिमांड बढ़ती जा रही है। अब होटल, रेस्टोरेंट, घर तो दूर ठेले या गुमटी पर भी लोग दूषित पानी नहीं पीना चाहते। नतीजा वहां भी गैलन वाला पानी पहुंच गया है। हालांकि गैलन वाटर का रेट फिक्स नहीं है। मार्केट में 10 से 20 रुपए के बीच पर गैलन मिल रहा है। होम डिलीवरी फ्री है। परडे करीब 15 हजार से अधिक गैलन की सप्लाई होती है। अगर एवरेज 15 रुपए माना जाए तो भी शहर में डेली करीब सवा दो लाख रुपए का पानी बिकता है।
अब दुकान नहीं घर-घर पहुंच रहा गैलन दूषित हो रहे शहर के पेयजल के कारण पानी का बिजनेस लगातार बढ़ता जा रहा है। तीन से चार साल पहले जहां ये बिजनेस सिर्फ दुकानों तक सीमित था, वहीं अब ये घर-घर पहुंच गया है। पहले मॉर्निग और इवनिंग में प्लांट से पानी की सप्लाई मार्केट में की जाती थी। जिससे शॉप ओनर के साथ खरीदारी करने आने वाले कस्टमर की प्यास बुझ सके, मगर अब इसकी डिमांड घरों तक पहुंच गई है। शहर के अधिकांश इलाकों में पानी की सप्लाई घर-घर हो रही है।मैरेज सीजन में तीन गुना बढ़ जाता है बिजनेस
गोरखपुर में दूषित पानी के कारण पानी की डिमांड लगातार बढ़ रही है। मगर मैरेज सीजन आते ही ये डिमांड अचानक तीन गुना हो जाती है। नॉर्मज डेज में जहां 15 हजार गैलन की डिमांड रहती है, वहीं मैरेज सीजन में बढ़ कर ये करीब 50 हजार गैलन के पास पहुंच जाती है। ठंड आने पर भी इसकी डिमांड में कोई खास कमी नहीं आती। ऐसे जहां डेली 15 हजार गैलन की डिमांड रहती है, वहीं ठंड में घट कर करीब 12 हजार के आसपास पहुंच जाती है जबकि पांच साल पहले पानी की डिमांड नॉर्मली 100 से 150 गैलन रहती थी।
कुछ यूं बढ़ता गया बिजनेस साल - प्लांट - डेली डिमांड (गैलन) 2009 - 1 से 2 - 50 से 60 2010 - 5 से 10 - 100 से 150 2011 - 20 से 25 - 250 से 3002012 - 40 से 50 - 2 से 3 हजार
2013 - 70 से 80 - 8 से 10 हजार 2014 - 100 के आसपास - 12 से 15 हजार 2015 - 125 से अधिक - 15 हजार से अधिक दूषित पानी से अनेक तरह की बीमारियां फैल रही हैं। अब हर शख्स शुद्ध पेयजल पीना चाहता है इसलिए पानी की डिमांड लगातार बढ़ती जा रही है। पिछले पांच साल पहले शहर में महज एक या दो प्लांट थे, मगर अब 125 से अधिक प्लांट लगे हैं। दिनेश श्रीवास्तव, बिजनेसमैन बीमारी से बचने के लिए अब हर शख्स शुद्ध पेयजल पीना चाहता है क्योंकि शहर का पानी बहुत खराब है, इसलिए गैलन वाली पानी की डिमांड बढ़ रही है। घर से लेकर दुकान और ठेले से लेकर गुमटी तक पानी की डिमांड है। प्लांट की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। शहर में डेली करीब 15000 से अधिक गैलन की सप्लाई होती है। विजय, बिजनेसमैन