मनरेगा में ही उड़ रही बाल श्रम अधिनियम की धज्जियां
- कैंपियरगंज के पचमां में मासूम बच्चों से ढो रहे मिट्टी की टोकरी
- कम रुपए में मजदूर के लालच में बच्चों का भविष्य निगल रहे प्रधान CAMPIERGANJ: शासन नौनिहालों के पोषण व शिक्षा के लिए लाख योजनाएं बना लें लेकिन धरातल पर उसका कोई असर नहीं दिख रहा। हद तो यह कि सरकार की ही एक योजना में सरकारी नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही है। कैंपियरगंज क्षेत्र में मनरेगा के तहत हो रही गड्ढे की निराई में महज इसलिए 10 से 16 साल तक के बच्चों से काम लिया जा रहा है ताकि पैसे डकारा जा सके। ये मासूम कम रुपए में ही काम के लिए तैयार हो जाते हैं, लिहाजा प्रधान इनका शोषण करने में लगे हुए हैं। कहां हैं अधिकारी?बाल श्रम अधिनियम और मनरेगा दोनों की ही मॉनिटरिंग करने वाले जिम्मेदार पचमा में सरकारी नियमों को टूटते हुए देख सकते हैं। पचाम गांव के पश्चिम गड़ही की सफाई-खुदाई में जॉब कार्ड धारक मजदूरों की जगह मासूमों को काम पर लगाया गया है। कड़ी धूप में मासूम कुदाल चला रहे हैं, टोकरी से मिट्टी धो रहे हैं। शाम में उन्हें मजदूरी के नाम पर बाकी मजदूरों से करीब आधे पैसे दे दिए जाते हैं।
नहीं सुनते प्रधानगांव के इसमाईल, कुरबान, सलीम आदि मजदूरों का कहना है कि वे काम करना चाहते हैं लेकिन उन्हें काम पर नहीं लगाया जा रहा है। बाल मजदूरों से काम लिया जा रहा है ताकि पैसे कम देने पड़े। इससे जहां कई मजदूरों को काम नहीं मिल रहा वहीं नौनिहालों का भविष्य खराब हो रहा है। शिकायत के बाद भी प्रधान व उनके पति किसी की नहीं सुनते।
मामले की जांच कराई जाएगी। यदि सही साबित हुआ तो कार्रवाई की जाएगी। - संदीप सिंह, खंड विकास अधिकारी