नेपाल में अटकी सांस भारत में लौटी
- नेपाल में मौत का बिछा है जाल
- हमने देखा है मौत का तांडवGORAKHPUR : मौत को इतने करीब से देखूंगा, ये कभी नहीं सोचा था। वह शनिवार का दिन था। मैं अपने कुछ परिचितों के साथ आंध्र प्रदेश से काठमांडू पशुपति नाथ मंदिर के दर्शन करने गया था। सुबह के तकरीबन क्क्.फ्0 बजे थे। मंदिर में श्रद्घालुओं का तांता लगा हुआ था। सभी शिव की अराधना में लीन थे। अचानक से ऐसा लगा किसी ने मुझे धक्का दिया। मेरे पांव से एक तरंग मेरे दिमाग तक गई और मेरा पूरा शरीर हिल गया। अचानक से चीखने की आवाजें आने लगी। मैं कुछ समझ पाता, इसके पहले ही धरती ने इतनी जोर से झटके देना शुरू किया कि सारी सोचने की शक्ति खत्म हो गई। थोड़ी ही देर में चीखें रूदाली में बदलने लगी। लोग दौड़ने लगे। इमारतें गिरने लगी। धरती दरकने लगी। चंद लम्हों के लिए मेरी आंखों के सामने अंधेरा सा हो गया। सांस अटक गई। मेरे साथी न जाने कहां गुम हो गए। क्0 मिनट बाद जब मौत का ताडंव थमा, तो कई जानें जा चुकी थी। हर ओर चोटिल लोग और उनके शरीर से बहता खून दिखाई दे रहा था। मेरे एक साथी की पत्नी के पांव पर पत्थर गिरने से उसका पांव भी टूट गया था। हम लोग तुरंत वहां से भागने को तैयार हुए कि फिर हल्का सा झटका आया। अब तो हमें कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था क्या करें। किसी तरह वहां एक बस मिली वह सौनोली बार्डर आ रही थी। खचाखच भरी बस में किसी तरह लटककर अपने देश लौटे। यह दास्तां संडे को देर रात गोरखपुर पहुंचे आंध्र प्रदेश के दुर्गा कुमार की है। दुर्गा जैसे सैकड़ों लोग नेपाल से अपनी जान बचाकर गोरखपुर के भूकंप बचाव कैंप में आ रहे हैं। हर व्यक्ति अपनी जो कहानी सुना रहा है, उससे यह पता चल रहा है किस तरह भूकंप ने नेपाल में मौत का तांडव खेला। गोरखपुर का प्रशासनिक महकमा नेपाल में फंसे भारतीय को सुरक्षित अपने घर पहुंचाने में लगे हुए हैं। आई नेक्स्ट पेश कर रहा है गोरखपुर के अर्थक्वेक रिलीफ शेल्टर होम से सीधी लाइव रिपोर्ट।
गोरखपुर में बनाया गया है अर्थक्वेक रिलीफ शेल्टर होमनेपाल में फंसे भारतीय मूल के लोगों को सकुशल उनके घर पहुंचाने और पीडि़तों को इलाज कराने के लिए गोरखपुर के दीनदयाल उपाध्याय यूनिवर्सिटी में अर्थक्वेक रिलीफ शेल्टर होम बनाया है। पिछले ख्ब् घंटे में नेपाल से ख्फ्म् लोग आए हैं, इसमें से ख्क्ब् लोगों को सकुशल उनके घर के लिए भेज दिया गया है। इसके अलावा गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर भी एनईआर ने राहत केंद्र बना रखा है। यहां भी नेपाल से लोग आ रहे हैं। जरूरत पड़ने पर ट्रेनों में एक्स्ट्रा कोच लगाकर पीडि़तों को सकुशल घर पहुंचाया जा रहा है। नेपाल से लौट रहे लोगों को इन रिलिफ सेंटर पर जहां चैन की सांस मिल रही है, वहीं उनके आंखों में भूकंप का मंजर आज भी घूम रहा है।
एक कदम पीछे रह गई मौतशाम को तकरीबन ब्.भ्0 बजे गोरखपुर डिपो की एक बस यूनिवर्सिटी अर्थक्वेक रिलीफ शेल्टर होम पहुंची। बस में ख्क् लोग मौजूद थे। बस से उतरे मेरठ के रहने वाले मो। परवेज नकवी काफी घबराए हुए थे। हाथ में बैग था और मुंह सूख रहा था। कैंप में मौजूद लोगों ने बिस्किट और पानी का गिलास दिया। दो घूंट पीकर वह फिर एक चारपाई पर शांत बैठ गए। थोड़ी देर तसल्ली करने के बाद परवेज ने बताया कि काठमांडू के पास रत्नागिरि में कपड़े की दुकान है। पिछले म् साल से वह नेपाल में बिजनेस कर रहे हैं। शनिवार को वह दुकान के सामने सड़क पर खड़े थे। तभी अचानक शरीर में कंपकंपी मची। जैसे किसी ने धक्का दिया हो। पीछे मुड़ कर देखा कोई नहीं था। कुछ सेकेंड बाद अचानक धरती तेजी से हिलने लगी। डर के मारे मैं वहां से भागा। कुछ ही दूर पहुंचा था कि अचानक एक बड़ी बिल्डिंग तेज आवाज के साथ जमींदोज हो गई। मैं घबरा गया और तेजी से भागने लगा। कुछ दूर जाकर थक गया और खड़ा हो गया। तभी एक और झटका लगा। इस बार कोई बिल्डिंग नहीं गिरी, बल्कि मेरे सामने सड़क बीच से फटने लगी। मैं इतना अधिक घबरा गया कि वहां से हिल तक नहीं सका। हालांकि खुदा ने बचा लिया और काफी दूर तक फटी सड़क मुझसे एक कदम पहले आकर रुक गई। तभी मेरा मोबाइल बजा। उठाने पर एक साथी ने मुझे तुरंत वहां से भागने को कहा। तब तक पूरा इलाका तबाह हो चुका था। पूरी रात सड़क पर बिताई। इसके बाद वहां से पहाड़ी के रास्ते होते हुए करीब म्भ् किमी का पैदल सफर तय कर मुगलीन पहुंचा। जहां प्राइवेट व्हीकल से भुटवल आया। वहां आकर इंडियन आर्मी मिली, जिसकी मदद से बार्डर तक पहुंचा और अब आपके सामने हूं। मगर वह खतरनाक मंजर अब तक दिमाग में है। अब भी लग रहा है कि भूकंप आ रहा है और मौत कभी भी अपने आगोश में ले सकती है।
सब दबे थे जमीं में, निकाला तो कभी हाथ आया तो कभी पैर नेपाल के काठमांडू, रत्नागिरी में कपड़े की दुकान पर काम करने वाले शबी हैदर अब भी उस सदमे में हैं। मुजफ्फरनगर के रहने वाले शबी हैदर ने बताया कि जब भूकंप आया तो वह दुकान के बाहर खड़े थे। अचानक धरती हिलने लगी। भाग कर सभी लोग सड़क पर आ गए, मगर तभी कई बिल्डिंग बारी-बारी से धराशायी होकर मिट्टी में मिलने लगी। इस मंजर ने सभी को हिला दिया। सब भागने लगे। कोई किसी के बारे में नहीं सोच रहा था। सिर्फ भाग रहा था। हर किसी को केवल अपनी जान की पड़ी थी। हर मिनट पर आ रहे भूकंप के झटके मौत से रूबरू करा रहे थे। समय बीतता गया और रात हो गई, तब हमें लगा कि हम सुरक्षित है। घर और दुकान का सोचना तो बहुत दूर की बात थी, किसी तरह जान बचाकर इंडिया पहुंचने की जल्दी थी। बिल्डिंग के मलबे में सैकड़ों लोग दबे हुए थे। हर कहीं चीखें और मदद की गुहार सुनाई दे रही थी। कुछ लोग तो सलामत बाहर आ गए, मगर कुछ के हाथ ही बाहर आया तो कुछ का सिर्फ पैर। नेपाल की ओर से कोई मदद नहीं हुई। मेरे कई साथी भी बिछड़ गए, मगर किसी ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। रत्नागिरी में भूकंप के साथ वहां एक और डर सता रहा था। वह था टाइगर का। रत्नागिरी की हाडि़यों में बहुत टाइगर है। लोग चिल्ला रहे थे किभूकंप के झटके से टाइगर भी सड़क पर आग गए है। ऐसे में किसी तरह जान बचाकर हम लोग इंडिया आए। सिर्फ बिस्किट खाकर बिताया दो दिन कोलकाता का रहने वाला बबलू रोजगार के लिए म् साल पहले नेपाल के भुटवल गए थे। वहां सोना-चांदी की दुकान पर काम करते थे। बबलू ने बताया कि सैटर्डे को वह दुकान में बैठे थे। तभी अचानक धरती कांपने लगी। कुछ समझ नहीं आया तो देखने के लिए बाहर निकले। तभी एक बार फिर धरती कांप उठी। तब समझ आया कि भूकंप आया है। मैं डर के मारे भागने लगा। तभी अचानक दोबारा धरती कांप उठी और बिल्डिंग धड़धड़ा कर गिरने लगी। मैं काफी डर गया और तेजी से भागने लगा। तभी अचानक सामने एक दीवार भूकंप के झटके से गिर गई जिससे मेरे सीने में काफी चोट आई, मगर मौत के आगे वह दर्द भी कम था। मैं सिर्फ भागता रहा। पूरी रात सड़क पर काटी। खाने के लिए कुछ नहीं था। सिर्फ बिस्किट खाकर दो दिन काटे। मंडे को आर्मी ने जब बॉर्डर पर भेजा तो वहां बस मिली। जिससे यहां कैंप तक पहुंचा। नेपाल में सब तबाह हो गया है। जो बिल्डिंग बची है, वह नई बनी है। पुरानी एक भी बिल्डिंग इस भूकंप में नहीं बच पाई हैं। टूट गए दोनों पैर, साथियों ने बचाई जान रिलीफ शेल्टर होम पर आई बस से एक व्यक्ति को बड़ी मुश्किल से निकाला जा सका क्योंकि उसके दोनों पांव पर प्लास्टर चढ़ा था। वह दर्द से कराह रहा था। पूछने पर पता चला कि इसका नाम प्रदीप है और यह नेपाल में ज्वेलरी की दुकान पर काम करता है। प्रदीप मूलत: कोलकाता के बराकपुर का रहने वाला है। जब प्रदीप से टूटे पांवों के बारे में पूछा तो उसके आंखों से आंसू निकल आए। उसने आसमां की तरफ देखते हुए बताया कि वह सैटर्डे के दिन अपने दुकान के अंदर कस्टमर को ज्वेलरी दिखा रहा था। तभी अचानक हाथ कांपने लगे और ज्वेलरी हाथ से छूट कर नीचे गिर गई। मुझे लगा चक्कर आया। तभी देखा कि सब भागने लगे और भूकंप-भूकंप चिल्ला रहे हैं। डर के मारे मैं भी भागा। जैसे ही सड़क पर पहुंचा कि कुछ दूर स्थित एक बिल्डिंग धड़धड़ा कर जमीन में मिल गई। इसके बाद भूकंप के झटके हर थोड़ी देर में आने लगे और बिल्डिंगें धराशायी होने लगी। उस तबाही को देखने के बाद मुझे लगा कि अब मौत से बचना मुश्किल है, फिर भी किसी तरह वहां से भागा। मगर कुछ दूर आने के बाद एक बार फिर झटका आया और मैं गिर पड़ा। तभी एक दीवार भी ढह गई। जिससे मेरे दोनों पैर फैक्चर हो गए। हालांकि अनजान साथियों ने मुझे तुरंत उठाया और खुली सड़क की ओर ले गए। जहां एक प्राइवेट डॉक्टर ने मेरा प्राथमिक इलाज किया। इसके बाद आर्मी की मदद से बॉर्डर तक पहुंचा और फिर गोरखपुर आया। मगर उस मौत के मंजर ने मेरे दिल में दहशत भर दी है। अब भी लग रहा है कि भूकंप आ रहा है। स्टार्ट हुआ ऑपरेशन रेस्क्यू जानलेवा जलजले से फौरी राहत मिलने के बाद अब रेस्क्यू ऑपरेशन स्टार्ट हो चुका है। जिला प्रशासन के साथ ही रेलवेज ने भी पीडि़तों को फैसिलिटी मुहैया कराने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। सैटर्डे से लेकर अब तक करीब ख्80 से ज्यादा भूकंप पीडि़तों को उनके घरों के लिए भेजा जा चुका है, वहीं देर रात तक नेपाल से आने वाले पीडि़तों को भेजे जाने का सिलसिला जारी है। गोरखपुर जंक्शन पर रेलवे की ओर से हेल्पलाइन काउंटर ओपन किया गया है। रेलवे ने मेडिकल असिस्टेंस के लिए मेडिकल बूथ भी बनाया है। गंभीर मरीजों के लिए एंबुलेंस की फैसिलिटी भी अवेलबल है। इतना ही नहीं रेलवे के ललित नारायण हॉस्पिटल को भी हाई अलर्ट कर दिया गया है और नेपाल से आने वाले पीडि़तों के इलाज के भी निर्देश दिए गए हैं। इन ट्रेंस से भेजे गए पैसेंजर्स ख्म् अप्रैल - ट्रेन नंबर एंड नेम पैसेंजर्स क्9ख्70 पोरबंदर एक्सप्रेस 70 क्भ्00ब् चौरीचौरा एक्सप्रेस क्क् क्भ्9क्0 अवध आसाम 0ब् क्भ्909 अवध आसाम 0ख् ख्7 अप्रैल - ट्रेंस पैसेंजर्स क्भ्0क्भ् गोरखपुर-यशवंतपुर 97 क्भ्0ब्8 पूर्वाचल एक्सप्रेस ख्म् क्ख्भ्भ्ब् वैशाली एक्सप्रेस 0फ् क्ख्ख्0फ् गरीब रथ एक्सप्रेस 08 0ब्ब्09 बरौनी-नई दिल्ली क्म् क्ब्म्7ब् शहीद एक्सप्रेस क्0 क्90फ्8 अवध एक्सप्रेस क्8 क्ख्भ्87 अमरनाथ एक्सप्रेस 0भ् क्भ्ख्7फ् सत्याग्रह एक्सप्रेस 0फ् क्ख्भ्भ्भ् गोरखधाम एक्सप्रेस 07 हेल्पलाइन नंबर - 0भ्भ्क्-ख्ख्0ब्8फ्9 (बीएसएनएल) म्भ्9फ्7 (रेलवे) भूकंप पीडि़तों को मदद के इरादे से रेलवे ने हेल्पलाइन काउंटर ओपन किए गए हैं। वहीं मेडिकल बूथ और एंबुलेंस की व्यवस्था के साथ रेलवे हॉस्पिटल को भी अलर्ट कर दिया गया है। इसके साथ ही डिफरेंट ट्रेंस से उन्हें घर भेजने की व्यवस्था भी की जा रही है। - आलोक कुमार सिंह, सीपीआरओ, एनईआर