गोरखपुर के दशानन जले तो बात बने
इंट्रो-हर साल हम दशहरा पर दशानन का दहन करते हैं। लेकिन शहर के भीतर बसे समस्या रूपी दशानन का दहन नहीं हो पाता है। ये दशानन लोगों को सालों से परेशान कर रहे हैं। फिर भी जिम्मेदार कुछ नहीं कर रहे, सिवाय राजनीतिक रोटी सेंकने के। दशाहरा के मौके पर आई नेक्स्ट बता रहा शहर के दस दशानन को, जिसको जलाने से अपना गोरखपुर भी स्मार्ट सिटी बन सकता है।
जानलेवा सड़कें घटिया सामग्री, 6 महीने भी नहीं टिकती सड़कशहर की सड़कें जानलेवा हो गई है.ं सालों तक इनकी मरम्मत नहीं होती है। टूटी सड़कों पर लोगों का चलना मुश्किल हो जाता है। इससे रोज किसी न किसी एरिया में टूटी दो से तीन लोग घायल होकर हॉस्पिटल पहुंचते हैं। बारिश के समय तो रास्तों पर कीचड़ फैल जाता है। शहर में तीन विभाग की सड़कें हैं। शहर की प्रमुख सड़क पीडब्ल्यूडी की है, जिसकी लंबाई लगभग 250 किमी है। जो साल में दो बार बनती है। जीडीए की सड़क की लंबाई लगभग 700 किमी है, जो कॉलोनियों में है। इनकी मरम्मत करीब 10 से नहीं हुई है। नगर निगम की 1500 किमी लंबी सड़क है, जिसमें 157 किमी लंबी सड़क आज भी पगडंडी है।
कालिंगशहर की सड़कों का कोई माई-बाप नहीं है। सड़कें बन जाती है और जब टूट जाती है तो उसको पूछने वाला कोई नहीं है। गलियों की सड़क बनाने की तो कोई सोचता ही नहीं है। बारिश के बाद स्थिति और खराब हो जाती है।
प्रेम लता, हाउसवाइफ लोकल फॉल्ट का झटका 310 मेगावाट चाहिए, मिलता है 280 गोरखपुर का दुर्भाग्य है कि हर बार जनप्रतिनिधि और अधिकारी दावा करते हैं, लेकिन जब बिजली देने की बात सामने आती है तो गुल हो जाती है। गर्मी में कटौती का कोई निश्चित समय नहीं है। लोकल फॉल्ट कब होगा, कोई जान नहीं सकता है। शहर में प्रत्येक दिन 300 से लेकर 310 मेगावाट बिजली की आवश्यकता होती है, जबकि 270 से लेकर 280 मेगावाट बिजली मिलती है। बिजली न मिलने के कारण शहर में 1000 हजार से अधिक जनरेटर धुआं उगलते हैं, वहीं बड़ी मात्रा में ऑफिस और छोटे-छोटे उद्योग बंद रहते हैं। 16 घंटे चलने वाले बुनकर उद्योग डेली 13 से 14 घंटे तक ही चलते है। कालिंग शहर में बिजली की बहुत प्रॉब्लम है। शाम को पढ़ने के समय बिजली नहीं रहती, रात को बिजली कटौती हो जाएगी कहा नहीं जा सकता। दिन में भी बिजली गुल हो जाती है। -कंवलजीत सिंह काका, स्टूडेंट्स, बीटेक गंदगीशहर में ही होता है कचरा डंप
शहर के जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की उदासीनता के कारण आज कूड़ा निस्तारण शहर की सबसे बड़ी प्रॉब्लम बन गई है। कोई भी गली हो या कॉलोनी, कोई भी रोड हो कूड़ा का ढेर दिख जाएगा। पब्लिक हंगामा करती है, अधिकारी दौरा करते हैं और फटकार लगाते हैं, लेकिन हकीकत यह है कि एक दिन शहर की सफाई होती है और दूसरे दिन फिर से सड़कों पर कूड़ा डंप होने लगता है। 2009 में सालिड वेस्ट मैनेजमेंट योजना को स्वीकृत मिली, लेकिन कागजी हवा-हवाई में शामिल यह योजना की केवल बैठक होती है हकीकत में कुछ होता नहीं है। शहर में डेली 601 मीट्रिक टन कूड़ा निकलता है, जिसमें डेली 500 मीट्रिक टन कूड़ा का निस्तारण हो जाता है, जबकि 100 मीट्रिक टन सड़कों पर फैला रहता है। सड़कों के किनारे, खाली प्लाटों में भी कूड़ा डंप होने लगाता है और शहर में गंदगी की समस्या विकराल रूप लेती जाती है। कालिंगकिसी भी एरिया में सफाई की हालत बहुत बेहतर नहीं है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है नगर निगम के पास कोई योजना नहीं है। नगर निगम के अधिकारी हो या कर्मचारी मनमाने रूप से सफाई कराते और करते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि किसी गली में डेली सफाई होती है और किसी एरिया में महीनों बाद भी सफाई कर्मी जाता ही नहीं है।
लालदेव यादव, कोच कागजों में जल निकासी की योजना शहर के 70 वार्ड हैं, अगर हल्की बारिश हो जाती है तो जल जमाव की स्थिति बन जाती है। एक एनजीओ के सर्वे पर नजर डाले तो शहर के 70 वार्ड में से 30 वार्ड ऐसे हैं, जहां से पानी बारिश बंद होने के एक से दो घंटे में निकल जाता है, लेकिन 22 वार्ड हैं, जहां बारिश बंद होने के एक से दो दिन में पानी निकल जाता है, वहीं शहर के 18 वार्ड ऐसे हैं तो जहां साल के चार माह जल जमाव की हालत बनी रहती है। शहर में 1956 में बने सीवरेज सिस्टम के भरोसे शहर का कुछ एरिया है। यह भी सीवरेज उस समय के आबादी के अनुसार बनाया गया था, जबकि अब की आबादी उस समय से दस गुनी हो गई है।शहर के लिए कोई सोचने वाला नहीं है, इसलिए तो बारिश होते ही शहर में जल जमाव शुरू हो जाता है। यही नहीं कई एरिया ऐसे हैं जहां गर्मी के मौसम में ही जल जमाव की हालत बन जाती है।
मीना देवी, हाउसवाइफ, कूड़ाघाट आवारा जानवार रोड बना तबेला नगर निगम के रिकार्ड- 2300 आवारा जानवर हकीकत में - 7500 से अधिक आवारा जानवर गोरखपुर की सड़कों पर 7500 से अधिक आवारा जानवर घूमते हैं, जिसके कारण शहर का हर व्यक्ति परेशान है। इनके कारण आए दिन शहर का कोई न कोई चौराहा जाम के कारण परेशान तो होता ही है, कई बार तो यह आवारा जानवर इतनी बड़ी दुर्घटना कर देते हैं। पिछले दो साल में एक दर्जन लोगों को यह आवारा जानवर मारकर घायल हो चुके हैं। वहीं चार लोगों की मौत भी हो चुकी है। नगर निगम योजना बनता है और योजना की हवा खुद ही निकाल देता है। यही कारण है कि पिछले दो से तीन साल हो गया है, लेकिन आज तक शहर से बाहर कांजी हाउस बनाने के लिए जमीन की तलाश नहीं कर पाए हैं। वहीं फर्टिलाइजर में एक कांजी हाउस है, जिसकी क्षमता 175 जानवर की रखने की है। कालिंग शहर की सबसे बड़ी प्रॉब्लम है, किसी भी रास्ते पर चलाना मुश्किल हो जाता है। खास कर शाम के समय सब्जी मार्केट में या सब्जी लेकर झोले में आने के दौरान होती है। पता नहीं कौन सा जानवर सब्जी के लालच में हमला कर दे और घायल हो जाए। सुनीत कोहली, प्रिंसिपल, आरएसपी एकेडमी पार्किंग पार्किंग है ही नहीं शहर में नगर निगम, जीडीए हो या जिला प्रशासन। इनकी योजना से पार्किंग शब्द गायब हैं। इसलिए तो आज तक किसी ने शहर में एक उचित पार्किंग की व्यवस्था नहीं की। पूर्व कमिश्नर के दबाव में नगर निगम ने दो जगह पार्किंग स्थान तो बना दिया, लेकिन हवा-हवाई इस योजना ने भी शहर को जाम से निजात नहीं दिला पाया। गोलघर में पीली पट्टी लगाकर प्रशासन से गाड़ी खड़ी करने के लिए जगह चिह्नित की तो पुलिस ने उस पर ठेला खड़ा करवा दिया। स्थिति यह है कि गोलघर के कई एरिया में बीच रोड पर ही गाड़ी खड़ी करने के लिए लोग मजबूर होते हैं। बक्शीपुर, रेती, नखास, शाहमारूफ और घंटाघर में पतली सड़कों पर यहां के व्यापारियों ने खुद ही आपसी समझौते से गाडि़यां खड़ी कर रहे हैं। पार्किंग न होने से कई बार शहर में निकले के पहले सोचना पड़ता है। यही नहीं कई बार ऐसी स्थिति कि शहर कहां गाड़ी खड़ी करें, इसके लिए कई किमी का चक्कर लग जाता है। रोड किनारे गाड़ी खड़ी करें तो पता चलता है कि पुलिस उठाकर लेकर चली गई और उसके बाद ट्रैपिक ऑफिस तक चक्कर लगाईए। शशिभूषण, स्टूडेंट्स जाम से कब मिलेगी निजात शहर में ट्रैफिक जाम की प्रॉब्लम साल्व होने के बजाय बढ़ती जा रही है। शहर में सोमवार से लेकर शनिवार तक लोगों को ट्रैफिक की भारी समस्या से जूझना पड़ता है। सोमवार को हर दिन की अपेक्षा लोगों की ज्यादा भीड़ होती है। इसके लिए आईजी मोहित अग्रवाल ने हर अधिकारी की ड्यूटी लगा दी है। बावजूद इसके सोमवार को लोगों को जाम की समस्या से जूझना पड़ता है। ट्रैफिक सेंस की कमी, इनक्रोचमेंट और ट्रैफिक मैनेजमेंट के अभाव में समस्या खत्म नहीं हो पा रही। कॉलिंग शहर में जाम की समस्या काफी परेशान करती है। किसी जरूरत पर कार लेकर निकलने में डर लगता है। न जाने किस चौराहे पर जाम अचानक मिल जाए। इससे कई परेशानी खड़ी हो जाती है। कई बार अस्पताल जाने, किसी जरूरी काम से निकलने पर जाम रुला देता है। संजय कुमार, बिजनेसमैन