चंद दिनों की खुशियां बदलीं मातम में
- दोहा कतर में कमाने गया था बड़हलगंज का युवक
- एक साल बाद घर आया हड्डियों का ढांचा, घरवालों ने लौटायाGORAKHPUR : दो देशों के बीच में एक लाश उलझ गई है। गोरखपुर से कतर कमाने गए युवक की वहां मौत हो गई। वह हादसे का शिकार हुआ या फिर किसी ने जान ले ली, इसकी पड़ताल के लिए दो साल तक फैमिली मेंबर्स परेशान रहे। परिजनों के प्रयास पर कंपनी ने दो साल बाद एक ताबूत में हड्डियों का ढांचा भरकर उसी कंपनी में काम करने वाला गोरखपुर के एक युवक के हाथों भिजवा दिया। मृतक के घरवालों ने डेड बॉडी लेने से मना कर दिया। फैमिली मेंबर्स ने डीएम से डीएनए टेस्ट की मांग की। व्यवस्थाओं और नियम कायदों से बंधे गोरखपुर जिला प्रशासन ने उनकी मांग ठुकरा दी। दोनों के फेर में डेड बॉडी लेकर आने वाला युवक फंस गया। वह समझ नहीं पा रहा है कि आखिर ताबूत लेकर कहां जाए।
अरमानों पर टूटा कहरबड़हलगंज के ककराखोर निवासी शिवमूर्ति दुबे के तीन बेटे ऋषि नारायण, शशिकेश और ऋषिकेश हैं। सबसे बड़े ऋषिकेश की रेखा से शादी हुई। उन्हें एक बेटी गौरी और बेटा आदित्य हुए। औलादों की परवरिश और फैमिली का खर्च चलाना मुश्किल होने लगा। समस्याओं के बोझ तले दबे ऋषिकेश ने विदेश जाकर कमाने की सोची। रिश्तेदारों से कर्ज लेकर वर्ष ख्0क्ख् के जून मंथ में वह कतर चला गया। उसने वहां एक थ्रीसीसी कंपनी ज्वाइन कर ली। कंपनी गैस पाइप लगाने का काम करती है। ये सूचना पाकर पूरा परिवार खुशियों से झूम उठा। नौकरी मिलने के बाद उसने कुछ रुपए भेजे जिससे गृहस्थी की गाड़ी चल पड़ी। किसे पता था कि यह खुशियां चंद दिनों के बाद ही मातम में बदल जाएंगी। फैमिली के अरमानों पर नियति ने ऐसा जख्म दिया जिसका दर्द भुला पाना आसान नही। पांच जुलाई ख्0क्फ् को अचानक ऋषिकेश की मौत की सूचना घर पहुंची। सदमे में मां और पिता बीमार हो गए। उसकी पत्नी रेखा को काठ मार गया। वह समझ नहीं पा रही थी कि खुद को विधवा समझे या पति के लौटने का इंतजार करती रहे। छोटे भाईयों ने चचेरे भाई सच्चिदानंद की मदद मांगी। गोरखपुर जिला प्रशासन से लेकर एंबेंसी तक लड़ाई लड़ी। कंपनी को पत्र पर पत्र लिखे पर न तो मौत की वजह पता चली, न ही कंपनी ने कतर से डेड बॉडी भेजी। थकहार कर फैमिली ने हाईकोर्ट में गुहार लगाई। हाईकोर्ट के निर्देश पर प्रशासन जागा। इसके बाद कार्रवाई में तेजी आई।
सूचना ने बढ़ाया शक, झगड़े में की गई ऋषिकेश की हत्या
कुशीनगर जिले का युवक भी उसकी कंपनी में काम करता है। उसने ऋषिकेश के मौत को संदिग्ध बताते हुए घरवालों को सूचना दी। एक अगस्त'क्ब् को मिली नई जानकारी से घरवाले परेशान हो गए। इस बीच एक चिट्ठी भी उसके घर पहुंची जिसमें बताया गया कि एक अगस्त को ऋषिकेश ने सुसाइड कर लिया। उसकी डेड बॉडी लटकती मिली थी। बाद में पता चला कि दक्षिण भारत का एक युवक कंपनी में इंजीनियर है। किसी बात को लेकर ऋषिकेश की उससे कहासुनी हो गई जिसके बाद अचानक वह लापता हो गया। क्फ् नवंबर'क्ब् को पोस्टमार्टम रिपोर्ट की कापी भी ऋषिकेश के घर पहुंची। काफी कोशिशों के बाद आया कंकाल, पर पता नहीं किसकाबेटे की चिंता में मां, बाप की बीमारी ठीक नहीं हुई। कमाऊ पूत के गम में मां, बाप की हालत रोजाना बिगड़ती जा रही है। पत्नी और बच्चे भी बिलबिला उठे। ऋषिकेश के दोनों छोटे भाई और चेचेरे भाई लगातार डेड बॉडी वापस ले आने की कोशिश में लगे रहे। एंबेसी से लेकर सदर सांसद योगी आदित्यनाथ की मदद मांगी। हर जगह प्रयास के बाद कंपनी ने किसी तरह से डेड बॉडी भेजी। जानीपुर परसिया निवासी अश्वनी के साथ डेड बॉडी को ताबूत में रखकर गोरखपुर भेजा गया। थर्सडे को जब ताबूत घर पहुंचा तो कोहराम मच गया। ताबूत के भीतर चंद हड्डियों का ढांचा भर था। फैमिली मेंबर्स ने आशंका जताई कि कंपनी ने किसी दूसरे की हड्डियां भेजकर अपना कोरम पूरा कर लिया इसलिए फैमिली मेंबर्स ने ताबूत रिसीव करने के बजाय लौटा दिया। अश्वनी ताबूत लेकर डीएम दफ्तर पहुंच गए। फैमिली मेंबर्स ने मांग उठाई कि डीएनए जांच कराई जाए ताकि डेड बॉडी किसकी है, इसकी पुष्टि हो सके।
प्रशासन ने नहीं सुनी गुहार, परेशान हो रहा अश्वनी जिला प्रशासन ने इस मामले में कार्रवाई से मना कर दिया। प्रशासनिक अफसरों ने कहा कि यह यहां का मामला नहीं है, इसमें कोई मदद नहीं की जा सकती है। घरवालों ने डेड बॉडी से लेने से मना किया। इससे डेड बॉडी लाने वाले अश्वनी की मुसीबतें बढ़ गई। जिले का होने की वजह से कंपनी के लोगों ने डेड बॉडी उसको पहुंचाने की जिम्मेदारी दी। दोनों के पल्ला झाड़ने की वजह से वह ताबूत लेकर परेशान हो रहा है। अश्वनी ने कहा कि आखिर उसकी मदद कौन करेगा, वह ताबूत लेकर कहां जाए।कतर, दोहा और इंडियन एंबेसी ने लटकने से मौत की पुष्टि कर दी है। डेड बॉडी के साथ जरूरी कागजात आए हैं। कानूनी अड़चनों की वजह से स्थानीय प्रशासन डीएनए टेस्ट नहीं करा सकता है। डीएम ऑफिस से डेड बॉडी को घर ले जाने की सलाह दी गई है।
कुमार प्रशांत, प्रभारी जिलाधिकारी