फुंक जाए ट्रांसफॉर्मर तो बुक कीजिए डंफर
- जले ट्रांसफॉर्मर बदलवाने के लिए ग्रामीणों से मांग रहे मदद
- स्थानीय नेता ने चीफ इंजीनियर कार्यालय पर की लिखित कंप्लेन BANSGAON : ग्रामीण अंचल में अगर ट्रांसफॉर्मर फुंक जाए तो चंदा इकट्ठा करना शुरू कर दीजिए। क्योंकि बिजली विभाग ट्रांसफॉर्मर बदलने के लिए गाड़ी नहीं भेजेगा। भले ही छह-छह गाडि़यां खड़ी-खड़ी कंडम हो जाए। ये शिकायत है बांसगांव के एक स्थानीय नेता की। जिन्होंने चीफ इंजीनियर कार्यालय पर लिखित में ग्रामीण इलाकों में बिजली सप्लाई की हकीकत सामने रखी। ग्रामीण अंचल के लिए छह गाडि़यां ठेके पर रखी गई हैं। जिन्हें निश्चित भुगतान होता है लेकिन फील्ड में गाडि़या नहीं जातीं। फोन आया तब हुआ एक्शन केस 1:करीब एक माह पहले तिकोनिया जंगल में एक ट्रांसफॉर्मर जल गया। जिसे बदलने के लिए गांव के युवकों ने संबंधित जेई से संपर्क किया। जेई का जवाब था कि गाड़ी खाली नहीं है। दो दिन बाद गाड़ी खाली होगी, तब ट्रांसफॉर्मर बदला जाएगा। त्रस्त युवकों ने एसई ऑफिस पर शिकायत की। जब एसई ने जेई को फोन किया तो उन्होंने तत्काल कार्रवाई का भरोसा दिया। दो दिन की जगह ट्रांसफॉर्मर पांच दिन में बदला गया।
केस 2:तिकोनिया जंगल जैसा हाल बांसगांव के पास जले ट्रांसफॉर्मर का भी हुआ। यहां भी ट्रांसफॉर्मर जलने के बाद गांव के लोगों ने चंदा इकट्ठा किया। प्राइवेट गाड़ी किराए पर मंगाई गई, तब जाकर दूसरे दिन ट्रांसफॉर्मर बदला गया। यहां के जेई ने भी ऑफिशियल गाड़ी देने से मना कर दिया था।
कहां खर्च हो रहे तीन लाख? विद्युत वितरण निगम खंड प्रथम और द्वितीय में ट्रांसफॉर्मर सप्लाई के लिए छह गाडि़यां ठेके पर रखी गई हैं। इन गाडि़यों के लिए बिजली विभाग रोजाना 15 लीटर तेल और प्रति माह 40 हजार रुपए किराया का भुगतान करता है। ग्रामीण अंचल के लोगों का आरोप है कि अफसर कमीशन के चक्कर में खेल करते हैं। ग्रामीण अपने चंदे पर गाड़ी बुक करा ट्रांसफॉर्मर लेकर आते हैं जबकि गाडि़यां कहीं आती-जाती नहीं। ऐसे में इन गाडि़यों पर खर्च होने वाला लाखों रुपया कहां जाता है, ये बड़ा सवाल है।