अनेकता में एकता ही हमारी पहचान
- साल दर साल बीत रहे हैं, लेकिन आज भी लोगों ने ट्रेडिशन को जिंदा कर रहा है
- मौसम के हिसाब से गुनगुनाए जाते हैं गीत, वहीं शादी-विवाह में भी इस्तेमाल होते हैं ट्रेडिशनल सांगGORAKHPUR: काफी दिनों से मेरे इतिहास के पन्नों को पलटा जा रहा है। रोजाना नई कहानी मेरी जुबानी सुनने के लिए आप काफी उत्साहित भी होंगे। तो इस कड़ी में आज बात करते हैं, यहां की सांस्कृतिक विरासत की। यहां की संस्कृति अपने-आप में अदभुत है, अनेकता में एकता ही हमारी पहचान है। परंपरा और संस्कृति का संगम यहां रोजाना देखा जा सकता है। यहां सुंदर और प्रभावशाली लोक परंपराओं का पालन आज भी होता है। महिलाओं की बुनाई और कढ़ाई, लकड़ी की नक्काशी, दरवाजों और उनके शिल्प-सौन्दर्य, इमारतों के बाहर छज्जों पर छेनी-हथौड़े का बारीक काम आपको तारीफ करने के लिए मजबूर कर देगा। गोरखपुर में संस्कृति के साथ-साथ यहां का जन-जीवन बड़ा शांत और मेहनती है। देवी-देवताओं की छवियों, पत्थर पर बने बारीक कार्य देखते ही बनते हैं।
'फोक' है खास पहचानगोरखपुर संस्कृति का सबसे बड़ा हिस्सा यहां के फोक सांग और फोक डांस की परंपरा है। यह बहुत कलात्मक होने के साथ ही मेरी संस्कृति का एक अहम हिस्सा भी है। यहां के बाशिंदे सिंगिंग और डांसिंग के साथ ही काम-काज के लम्बे दिन का लुत्फ लेते हैं। वे विभिन्न मौकों पर डांस और सांग पेश कर फेस्टिवल और मौसम को सेलिब्रेट करते हैं। बारह महीने खास तौर पर बरसात और सर्दियों की रात के दौरान आल्हा, कजरी, कहरवा और फाग गाते हैं। गोरखपुर के लोग हारमोनियम, ढोलक, मंजीरा, मृदंग, नगाड़ा, थाली आदि का म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट्स के तौर पर भरपूर इस्तेमाल करते हैं। सबसे लोकप्रिय लोक-नृत्य कुछ त्योहारों व मेलों के विशेष मौकों पर पेश किए जाते हैं। शादी-विवाह के मौके पर गाने के लिए मेरी विरासत और परम्परागत डांस संस्कृति का एक अहम ि1हस्सा है।
विविध भाषाओं का इस्तेमालअब यहां के लोगों की बोली के बारे में बात की जाए। ऐसे तो प्रदेश की तरह यहां की भाषा भी हिन्दी ही है, मगर उसके बाद अंग्रेजी जगह बना पाने में नाकाम रही हैं और यहां के लोगों की जुंबा पर हिंदी के बाद भोजपुरी ही आती है। इन दोनों ही भाषाओं का इस्तेमाल देश में व्यापक तौर पर होता है। इसमें उत्तर प्रदेश के क्षेत्र में बोली जाने वाली विशेष रूप से भोजपुरी की कई बोलियां शामिल हैं। भोजपुरी संस्कृत, हिन्दी, उर्दू और अन्य भाषाओं के साथ हिन्द-आर्यन, आर्यन शब्दावली के मेल से बनी है। भोजपुरी भाषा बिहारी भाषाओं से भी संबंधित है। यह भोजपुरी भाषा ही है जो फिजी, त्रिनिदाद, टोबैगो, गुयाना, मारीशस और सूरीनाम में भी बोली जाती है।
इनकी कर्मभूमि हूं मैं प्रसिद्ध बिरहा गायक बलेसर भोजपुरी लोकगायक मनोज तिवारी मालिनी अवस्थी मैनावती इन ट्रेडिशनल इंस्ट्रूमेंट्स का होता है इस्तेमाल हारमोनियम ढोलक मंजीरा मृदंग नगाड़ा थाली यह है खास आल्हा कजरी कहरवा फाग विरहा कव्वाली गोरखपुर का सांस्कृतिक इतिहास सबसे हटकर है। यहां लोक, शास्त्रीय, पाश्चात्य का इस्तेमाल किया जाता रहा है। मगर अब फोक कम होता जा रहा है। गिने चुने लोग ही इन गानों का इस्तेमाल कर रहे हैं। गाने वालों की संख्या कम होती जा रही है। बोल-चाल की बात करें तो यहां आम बोल चाल की भाषा हिंदी है। इसमें उर्दू और अंग्रेजी भाषाओं का भी इस्तेमाल होता है। जबकि यहां की अहम भाषा भोजपुरी है, जिसे लोग बोलने से भी कतराते हैं। फाग, विरहा, कव्वाली, कजरी का भी लोग भरपूर इस्तेमाल किया करते थे। अब भी यहां इसका इस्तेमाल होता है, लेकिन इसमें थोड़ा कमी आ गई है। - ओम प्रकाश 'बच्चा', रंगकर्मी