फगुआ की मस्ती में सराबोर गोरखपुराइट्स
- फाग की मस्ती में सजती है सांझ
- गुम होती परंपरा में युवाओं ने फूंकी जान GORAKHPUR : वसंत पंचमी के बाद भी मौसम सुहाना होने लगता है। जगह-जगह होलिका लग जाती है। गोरखपुर और आसपास के एरिया में होलिका 'सम्मत' गड़ने के बाद फगुआ का रिवाज रहा है। शाम को लोग इकट्ठा होकर होली तक फागुन के गीत गाते थे। हाईटेक होते कल्चर से इस परंपरा पर संकट खड़ा हो गया। ऐसे में सिटी के कुछ यूथ्स और प्रोफेशनल इस परंपरा को आगे में बढ़ाने में लगे हैं। कई जगहों पर होली के पारंपरिक गीतों की सांझ सजती है। भजन के बाद बिखरते हैं गीतों के रंगसिटी में देवी, देवताओं के मंदिरों पर फाग गाने वाले जुटते हैं। रोजाना शाम को सात बजे आने वाले लोगों की टोली अपने साथ ढोल-मजीरा लेकर आती है। सबसे पहले लोग देवी मां की पूजा अर्चना करते हैं। कम से कम दो राउंड भगवान के भजन के दौर चलता है। इसके बाद हारमोनियम की धुन पर ढोलक की थाप में फगुओं की मस्ती घुलती है। सिटी में बक्शीपुर प्राचीन काली मंदिर, शीतला माता स्थान, हट्ठी माई स्थान, काली माई का मंदिर अंधियारी बाग, महादेव झारखंडी सहित कई जगहों पर टोली गीत गाती है।
सुरों से निकलती है माटी की खुशबू
फाग गाने वाली महफिल में सुरों से माटी की खुशबू निकलती है। गीतों की धुन सुनकर अगल-बगल से गुजरने वाले लोग बरबस ही ठिठक जाते हैं। धीरे-धीरे लोगों की तादाद बढ़ती चलती जाती है। शाम सात बजे से शुरू हुई महफिल उमंग में सराबोर होकर रात के क्0 बजे तक चलती है। होली के गीतों में कृष्ण और राधा, अवध की होली के साथ-साथ पूर्वाचल के लोक गीतों की धुन सुनाई पड़ती है। ख्7 साल पहले पीएसी ने शुरू की परंपरा बक्शीपुर स्थित प्राचीन काली मंदिर पर करीब ख्7 साल पहले यहां परंपरा शुरू हुई। मोहल्ले के राकेश अस्थाना ने बताया कि मंदिर के पास ही एक मजार बनी है। होली करीब आने पर कोई विवाद हो गया। इससे मोहल्ले में पीएसी लगा दी गई। पीएसी जवानों ने मंदिर पर भजन कीर्तन के साथ फगुआ गाने की परपंरा शुरू की। हट्ठी माई स्थान पर करीब क्भ् साल से होली पर फाग गाने की परंपरा चल रही है। यहां पर गल्ला मंडी से लोग गाने आते हैं। इन गीतों से भाव विभोर होता है मन होली खेले रघुवीरा अवध में आज बिरज में होली रे रसिया कन्हैया छेड़ न हमरा केगौरा देहिया पर रंगवा
राधा संग कान्हा खेलत होरी सदा आनंद रहे इहे द्वारे होली पर एक माह से गीत की परंपरा रही है। आज की पीढ़ी इसको भूलती जा रही है इसलिए हम लोग कुछ देर यहां आकर जरूर बिताते हैं। शिव कुमार अग्रहरी, गल्ला कारोबारी, यहां आने के बाद बचपन की याद ताजा हो जाती है। लोगों के बीच बढ़ते द्वेष से यह परंपरा खत्म होने लगी है। प्रमोद मोदनवाल, साहबगंज सभी त्योहारों पर फिल्मों का रंग चढ़ता जा रहा है। होली में एक माह यहां आकर पूर्वाचल के फगुआ का आनंद लेते हैं। ऐसे में कुछ देर ही सही, अपनी थाती पर गर्व करते हैं। अजय भाटिया, आपरेशन थियेटर टेक्नीशियन यह प्रोग्राम हम लोग अपनी मर्जी से आर्गनाइज करते हैं। इसमें पिंटू प्रीतम, हरी शर्मा, सोनू, सुनील और मुकेश की टीम रोजाना शामिल होती है। इसमें हम लोग सिर्फ पारंपरिक गीतों को गाते हैं। हमारी संस्कृति में फूहड़ता की कोई जगह नहीं। विवेक कुमार, बिजनेसमैन