महिलाओं के लिए पीड़ादायी पीरियड्स में टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम भी प्रभावित करता है. टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम में ब्लड प्रेशर तेजी से कम होने लगता है. इसकी वजह से शरीर में सही तरीके से ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाता है जिससे मौत भी हो सकती है.


गोरखपुर (सुनील त्रिगुणायत)।अवेयरनेस और हाइजीन मेनटेन करने के कारण अब ये मामले करीब-करीब खत्म हो गए हैं। बीआरडी मेडिकल कॉलेज के स्त्री रोग विशेषज्ञों की मानें तो पहले जहां दो से तीन केस इस तरह के डेली आते थे। वहीं, अब अवेयनेस की वजह से सिटी से लेकर रूरल एरिया तक की महिलाओं में इसमें काफी कमी आई है। क्या है टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम महिलाओं में होने वाली एक मेडिकल कंडीशन है। इसकी आशंका हर उम्र में रहती है, लेकिन माहवारी या मेनोपॉज में हाइजीन न होने की आशंका अधिक रहती है। हालांकि, इसमें शरीर में हानिकारक रसायनों के बढऩे से कई गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। इन परिस्थितयों में होता टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम


टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम की स्थिति तब बनती है, जब पीरियड्स, मेनोपाज या फिर किसी घाव या सर्जरी के कारण बाहरी बैक्टीरिया शरीर में आ जाते हैं। इसमें ब्लड टॉक्सिक होने लगता है, जो धीरे-धीरे लिवर, किडनी, फेफड़ों में इंफेक्शन का कारण बनता हैं। इसमें अचानक से ब्लड प्रेशर असंतुलित हो जाता है। संभावित कारण

टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम स्टैंफिलोकोकस, ऑरियस और क्लोस्ट्रोडियम सोइली नामक बैक्टीरिया से होता है, जो बाहरी रूप से शरीर में आते हैं। माहवारी के दौरान टैम्पोन लगने रहने देना या पैड समय पर न बदलना इसके मुख्य कारण हैं। ये बैक्टीरिया यूट्रस से शरीर में पहुंचते और ब्लड में टॉक्सिक छोड़कर संक्रमण करते हैं। संभावित लक्षण अचानक तेज बुखार, अल्टी-दस्त, चक्कर, बेचैनी, अनियमित रूप से डिस्चार्ज होना, ज्यादा थकान, कमजोरी, बीपी का घटना बढऩा, जोड़ों में दर्द, हथेलियों और तलवों का रंग पीला पडऩा आदि। संभव है इलाज आमतौर पर टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम का इलाज एंटीबायोटिक से किया जा सकता है। ब्लड प्रेशर नियंत्रित करने की दवाएं और शरीर में पानी की मात्रा बढ़ाने के लिए तरल पदार्थ भी दिए जा सकते हैं। इसका इलाज बहुत हद तक इस पर निर्भर करता है कि शरीर में ये सिंड्रोम अपने किस स्टेज पर है। इसलिए टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम के शुरुआती लक्षणों पर ध्यान देने की जरूरत है। माहवारी के दौरान खराब हाइजीन से टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम की आशंका बनी रहती है। गंदा कपड़ा यूज करने से इंफेक्शन का भी खतरा रहता है। महिलाएं जागरूक हुई हैं। इसलिए मेडिकल कॉलेज की गायनी ओपीडी में एक महीने में एक से दो केस सामने आते हैं, जिनका इलाज किया जाता है। डॉ। सुधीर गुप्ता, स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ बीआरडी मेडिकल कॉलेज

चार साल पहले माहवारी के दौरान टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम के एक दो मामले सामने आते थे। लेकिन अब महिलाएं भी शिक्षित हैं और उनमें जागरुकता बढ़ी है। अब ये मामले करीब-करीब खत्म हो गए हैं। डॉ। सुरहीता करीम, स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ

Posted By: Inextlive