GORAKHPUR: भगवान, अल्लाह, गॉड या वाहे गुरु। इनका नाम लेते ही हर प्रॉब्लम दूर हो जाती है या प्रॉब्लम से लड़ने की शक्ति मिल जाती है। जब वे दुनिया के पालनहार है तो वे किसी का अहित कैसे कर सकते हैं? अब सोच रहे होंगे ये कैसा सवाल है? मगर गॉड के नाम पर उसके मैसेंजर्स ऐसा ही कर रहे हैं। इसी बात को फिल्म 'पीके' में एक्टर आमिर खान उठाया था। क्या ऐसे ही मैसेंजर हमारे शहर गोरखपुर में भी है? इसे जानने के लिए आई नेक्स्ट टीम 'पीके' की नजर से शहर को देखने निकली। मतलब हर रिपोर्टर पीके बनकर निकला। जहां फिल्म की तरह हकीकत में भी पीके के कई सवाल उठे। 'पीके' की कसौटी पर कुछ धार्मिक स्थलों को देखा, जो आम जिंदगी में लोगों के लिए परेशानी का कारण बने हुए हैं। किसी भी धर्म और उसकी सर्वोच्च सत्ता यानी गॉड कभी भी यह नहीं चाहते कि उनकी वजह से उनकी संतान को कोई कष्ट हो। फिर भला गॉड कोमानने वाले इंसान सड़क और फुटपाथ पर अतिक्रमण कर मानव जिंदगी के सामने दुश्वारियां क्यों खड़ी कर देते हैं? जब भगवान हर इंसान के अंदर है, तो क्या यह जरूरी है कि धर्म स्थल का सड़क पर निर्माण कर या अतिक्रमण कर अपनी श्रद्धा दिखाई जाए। कोई धर्म मानवता को कष्ट देकर ऊपर वाले को याद करने की अनुमति नहीं देता। फिर भला हर तरफ ऐसा हो क्यूं रहा है। 'पीके खड़ा बाजार में' कैम्पेन के जरिए यही सवाल उठाया है आई नेक्स्ट की टीम ने।

स्थान - यूनिवर्सिटी चौराहा स्थित मंदिर

टाइम - दोपहर डेढ़ बजे

रेलवे बस स्टेशन से चंद कदमों की दूरी पर यूनिवर्सिटी चौराहा है। वहां से शहर का वीवीआईपी एरिया शुरू होता है। चौराहे पर पहुंचते ही भगवान भोलेनाथ, गणेश जी और बजरंगबली की बड़ी सी मूर्ति नजर आती है। जहां से गुजरने वाला हर शख्स बिना सिर झुकाए आगे नहीं बढ़ता। पीके भी यह देख चौराहे से आगे बढ़ा और मंदिर के पास पहुंचा। पीके ने भगवान की तीनों मूर्तियों के आगे सिर झुकाया। अभी आगे बढ़ने के बारे में सोच ही रहा था कि अचानक एक बुजुर्ग सा आदमी पीछे से बाहर आया। जो हाथ में कुछ लिए था। यह देख पीके के मन में सवाल उठा। क्या मंदिर के पीछे भी कोई भगवान रहते हैं? यह जानने पीके मूर्ति के पीछे गया। जहां देखा कि एक बाबा जी का घर है। जो झाड़ू लगा रहे थे। मंदिर के अंदर घर क्या आप मंदिर के अंदर रह सकते हैं? मंदिर में चप्पल पहन कर जा सकते हैं? शायद नहीं। मगर ये बाबा जी सब कुछ वैसा ही कर रहे थे। अगर कोई शख्स घर के बाहर एक फीट भी अतिक्रमण करता है तो तुरंत कार्रवाई हो जाती है। मगर इन बाबा जी और मंदिर के कारण रोड का काम रुका हुआ है। इससे जाम की समस्या इस चौराहे की पहचान बन चुकी है। मगर बाबा जी को कोई मना नहीं करता? करें भी तो कैसे क्योंकि भगवान के डर से सभी डरते हैं।

पीके का सवाल

हमने बचपन से पढ़ा है, सुना है कि भगवान हर इंसान के अंदर रहते हैं। बस उसे याद करने की जरूरत होती है। हम कुछ भी गलत काम करते हैं तो भगवान से डर लगता है। मगर इतना गलत काम करने के बावजूद इन बाबा लोग को डर नहीं लगता। क्या उन्हें भगवान ने स्पेशल पावर दिया है, जो अधिकारी और समाज के अन्य लोग उनसे नहीं टकराते।

स्थान - तरंग क्रांसिंग स्थित मजार

टाइम - दोपहर ढाई बजे

शहर में घूमते-घूमते पीके गोरखनाथ की ओर निकल पड़ा। अभी तरंग क्रांसिंग के पास ही पहुंचा था कि अचानक उसकी नजर रोड पर बनी मजार पर पड़ी। तरंग क्रांसिंग के पास जाम लगा था। जबकि यह नजारा तब था, जब पुलिस ने ट्रैफिक डायवर्ट कर रखा था। अब सोचने वाली बात है कि अगर ट्रैफिक नॉर्मल रहे तो कितना जाम रहेगा। यह तरंग क्रांसिंग के पास रहने और वहां से गुजरने वाले हर लोग जानते हैं। इस मजार के पास अक्सर एंबुलेंस फंसती है। क्योंकि यह मेन गोरखनाथ रोड है। इस रोड से डेली करीब भ्0 से अधिक एंबुलेंस गुजरती है।

पीके का सवाल - मजार उसी की बनती है, जिसने महान काम किया हो। जो महान काम करते है, वह कभी किसी को नुकसान नहीं करते। जब उन्होंने जीते जी किसी को दुख न दिया हो तो मरने के बाद कैसे देंगे। जरूर उनके चाहने वालों ने यह किया है।

टाइम - शाम ब्.00 बजे

प्लेस - दीपू शिव सिंह क्षेत्री मार्ग

चारफाटक ओवर ब्रिज के समाप्त होते ही जैसे 'पीके' दीपू शिव सिंह क्षेत्री मार्ग पर पहुंचा। वैसे ही दीपू शिव सिंह क्षेत्री मार्ग के एक तरफ भगवान शिव के पिंडी रख दिए गए हैं। पेड़ पर भगवान की चार फोटो भी टांग दी गई हैं। हालांकि 'पीके' की नजर जब शिव जी के पिंडी पर गई तो देखा कि उसके आसपास के एरिया को काफी साफ सुथरा रखा गया है। स्थानीय लोगों की मानें तो यहां पर पहले मंदिर नहींथा। इसे कुछ लोगों ने स्थापित किया है।

पीके का सवाल - 'पीके' ने जब स्थानीय लोगों से इसके बारे में पूछा तो मंदिर के पास खड़े लोगों ने चुप्पी साध ली। जिसने भी जुबान खोली वह यही बोला कि वह बस यही बोला कि यह रेलवे की जमीन थी। इसे कुछ लोगों ने मंदिर का रूप देने का प्रयास किया है। अब इसे आस्था का मंदिर कहें या फिर कुछ और?

टाइम - शाम ब्.फ्0 बजे

प्लेस - बिछिया रेलवे कॉलोनी

बिछिया स्थित रेलवे कॉलोनी के पास जब पीके पहुंचा तो देखा कि रेलवे क्वार्टर में रहने वाले लोगों ने रेलवे की ही जमीन पर मंदिर बना लिया है। कॉलोनीवालों के लिए यह आस्था का केंद्र बन चुका है। चाहे जमीन राज्य सरकार की हो या फिर रेलवे की। ज्यादातर जगहों पर आस्था के केंद्र नजर आ जाएंगे, लेकिन इस आस्था के मंदिर में मौजूद भगवान भी क्या सोचते होंग? भगवान कुछ भी सोचे, अपना काम बनता तो भाड़ में जाए जनता। कुछ इसी थीम पर लोग सरकारी जमीनों को भी अपनी जागीर बना लेते हैं।

पीके का सवाल - पीके न जब कॉलोनी के लोगों से मंदिर के बारे में पूछा तो सभी ने एक सुर में यही बोला कि मंदिर किसी के नाम की नहीं होती। यह आस्था का केंद्र है। इसलिए पूजा-पाठ करना हमारा नैतिक धर्म है। पीके कुछ देर खड़े रहने के बाद वहां से आगे बढ़ा तो कुछ लोगों ने यह भी कहा कि मंदिर निर्माण के आड़ में जमीनों पर कब्जे भी होते हैं।

समय - ख् बजे

स्थान- गोरखनाथ मंदिर

सिटी में जब पीके निकला तो उसे दिखा कि मार्केट में दुख दूर करने वाले पत्थर से लेकर भगवान की मूर्तियां तक बेची जा रही है। आई नेक्स्ट का रिपोर्टर जब पीके बनकर बाजार पहुंचा तो देखा कि दुकान और ठेले पर 'भगवान' बेचे जा रहे हैं। जब पीके ने दुकानदार से पूछा तो उसने बताया कि जितने दिन का मेला है उससे एक माह का खर्च निकल जाएगा। वहीं भगवान खरीदने वाले ने अपनी अपनी आस्था की बात कह कर टाल दिया। पीके वहां ख्0 मिनट खड़ा रहा, इतने कम समय में दुकानदार ने ख्0 से अधिक भगवान की फोटो बेच दी।

पीके का सवाल- अगर दुकान पर ही भगवान मिलते तो लोगों को मंदिर, मस्जिद और चर्च जाने की क्या जरूरत पड़ती। गॉड का दर्शन के लिए घंटों लाइन में लगने की क्या जरूरत होती?

Posted By: Inextlive