मुश्किलों के बावजूद रखा तंत्र में विश्वास
GORAKHPUR: डॉ। राजेंद्र प्रसाद ने ख्म् जनवरी क्9भ्0 को आजाद भारत के पहले राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेते वक्त गणतंत्र के उद्देश्य के बारे में बताया था। उन्होंने कहा, 'हमारे गणराज्य का उद्देश्य है इसके नागरिकों के लिए न्याय, स्वतंत्रता और समता प्राप्त करना.' गणतंत्र का अर्थ होता है हमारा संविधान जिसमें हमारी सरकार, हमारे कर्त्तव्य, हमारा अधिकार, सबके बारे में लिखित रूप से दर्ज है। आज हम आपको ऐसे ही कुछ गणों के बारे में बताएंगे जिन्होंने राह में आने वाले अवरोधों के बावजूद इस तंत्र में अपना विश्वास बनाए रखा है। जो अपने अधिकारों को लेकर सजग हैं, कर्त्तव्यों का पालन करते हैं और भारत के महान गणतंत्र के आभूषण बने हुए हैं। ऐसे लोगों की भी कमी नहीं हो, जो पूरे कानून के साथ चलते हैं। फिर चाहे उन्हें लंबी लड़ाई लड़नी पड़े, चंद रुपयों के फायदे के बजाए हजारों रुपए खर्च करने पड़े या फिर सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने पड़े।
आरटीआई से दिलाया सैकड़ों को न्यायगवर्नमेंट ऑफिसेज और करप्शन का नाता काफी पुराना है। अपना काम पूरा कराने के लिए कई स्तर पर लोगों की हथेली गर्म करनी पड़ती है। जो इससे इंकार करता है, उसका काम लटका दिया जाता है। भ्रष्टाचार के इस दानव को रोकने के लिए आरटीआई एक कारगर हथियार है, लेकिन ज्यादातर को इसकी जानकारी नहीं है। सिटी के प्रेम गर्ग ऐसे शख्स हैं जिन्हें शायद ही कोई ऐसा सरकार दफ्तर हो जहां इन्हें कोई जानता न हो। करप्शन के खिलाफ प्रेम गर्ग ने ख्007 से ही झंडा बुलंद कर रखा है। क्या गर्मी, क्या सर्दी, अगर किसी के साथ अन्याय हो रहा है, तो वह चुप नहीं बैठते। गोरखपुर में जीडीए, नगर निगम, डीएम ऑफिस, बैंक्स और बीएसएनएल ऑफिसेस में आरटीआई के थ्रू इन्होंने न सिर्फ करप्शन करने वालों की नाक में दम किया है, बल्कि ऐसे बहुत से लोग जो न्याय की आस छोड़ चुके थे, उन्हें न्याय दिलवाया है। प्रेम अब तक 700 से ज्यादा आरटीआई लगा चुके हैं, जिससे सैकड़ों लोगों को फायदा हुआ है। प्रेम गर्ग का मानना है कि अब जो भी गवर्नमेंट अंडरटेकिंग कंपनीज हैं, उन्हें भी आरटीआई के दायरे में लाने की जरूरत है। वह इसलिए कि उनकी डायरेक्ट डीलिंग पब्लिक से होती है, जिसकी वजह से चूना पब्लिक को ही लगता है, लेकिन उनसे हिसाब लेने के सभी तरीके नाकाफी हैं, जिसकी वजह से उनकी मनमानी बढ़ती ही जा रही है।
भेज दिया सर्विस प्रोवाइडर को लीगल नोटिसआप जो नंबर यूज करते हैं, उसका सिम बंद हो जाए तो क्या करेंग? मोबाइल कंपनी के पास जाएंगे और दूसरा सिम खरीद लेंगे। इसके बाद भी समस्या खत्म नहीं हुई तो शायद आप कंपनी बदल देंगे, मगर मोहद्दीपुर के रहने वाले तरनजीत सिंह कोहली ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने कानूनी लड़ाई को अपना हथियार बनाया। तरनजीत ने बताया कि म् जनवरी को उसकी आंख का आपरेशन था। आपरेशन के बाद अचानक मोबाइल पर एक मैसेज आया जिसमें लिखा था कि आपकी रिक्वेस्ट पर सिम ब्लॉक किया जाता है। आपरेशन कराने के बाव तरनजीत शाम को जीएसएम सर्विस प्रोवाइडर कंपनी के ऑफिस गए। पूरी प्रॉब्लम बताई, तुरंत कंपनी के जोनल मैनेजर ने दोबारा आईडी लेकर रसीद कटाई और नया सिम दे दिया, मगर वह सिम भी 7 जनवरी की शाम बंद हो गया। तरनजीत अगले दिन फिर पहुंचे, फिर वही प्रॉसेस कर नया सिम थमा दिया गया, ये सिम भी 9 जनवरी की शाम को सिम बंद हो गया। तरनजीत ने जीएसएम सर्विस प्रोवाइडर कंपनी को एक नोटिस भेज दिया। नोटिस मिलते ही क्0 जनवरी को कंपनी ने तरनजीत को बुलाया। उन्होंने नोटिस वापस लेने के साथ सिम खो जाने की बात कही और जल्द प्रॉब्लम सॉल्व करने का आश्वासन दिया। सात दिन तक जब प्रॉब्लम खत्म नहीं हुई तो ख्फ् जनवरी को तरनजीत ने कंपनी को लीगल नोटिस भेज दिया। तनरजीत ने कहा कि कंपनी की इस गलती से उनकी पूरी लाइफ रुक गई है। सभी बैंक, बिजनेस समेत जॉब में यही नंबर दिया है। इसके बंद होने से उन्हें एक भी जानकारी नहीं मिल रही है। दिल्ली में होने वाली कंपनी की एक मीटिंग में न जाने से उनकी जॉब जाते-जाते बच गई। बेटी की पहली लोहड़ी होने के बावजूद रिश्तेदारों की बधाई नहीं आई। इतनी प्रॉब्लम के बावजूद तरनजीत ने कहा कि वे कानून की लड़ाई लड़ेंगे और जीत पाएंगे।
जाम देखते ही संभालने लगते हैं ट्रैफिकगोरखपुर में जाम की समस्या विकराल रूप में दिखाई देती है। सिटी के कई ऐसे एरियाज हैं जहां से गुजरने पर गोरखपुराइट्स को जाम का सामना करना ही पड़ता है। ऐसे में एक शहरी प्रखर अग्रवाल ने जाम के झाम को खत्म करने का बीड़ा उठाया है। प्रखर ने सिटी के सबसे व्यस्त रेती चौक पर लगने वाले जाम से लोगों को निजात दिलाई। उन्होंने कई बार शहर की ट्रैफिक व्यवस्था पर जायज सवाल उठाए, सुधार न होने पर खुद ही ट्रैफिक संभालने में लग गए। सिटी के कई चौराहों पर लगने वाले जाम से निपटते उन्हें आसानी से देखा जा सकता है। ट्रैफिक को लेकर वे अपने जानने वालों को मोटिवेट करते रहते हैं। वह चाहते हैं कि एक दिन सभी ट्रैफिक का जो सिस्टम बना है, उसे फॉलो करें जिससे किसी और को असुविधा न हो।
उम्मीद की किरण बन गए फिरोज पांच अगस्त ख्0क्0 की वो काली शाम फिरोज को ताउम्र नहीं भूलेगी। उनका छह साल का बेट वाहिद, चार साल का जाहिद खेलने निकले। दोनों पक्का मस्जिद के पास खेलने गए और अचानक लापता हो गए। देर शाम तक वे दोनों घर नहीं पहुंचे लोगों को चिंता हुई। काफी तलाश के बाद भी बच्चों का पता नहीं चला। म् अगस्त को फोन पर बच्चों की वापसी के लिए किसी ने दो लाख की फिरौती मांगी। फिरोज के फैमिली मेंबर्स दो लाख की रकम देने को तैयार हो गए। फिरोज के बहनोई तालिब अली ने गोरखनाथ पुलिस को सूचना दी। शुरूआती दौर में पुलिस मामले में हीलाहवाली करती रही। व्यापार के लिए फिरोज ने चौरीचौरा के गणेश से भ्0 हजार लिए थे। ब्याज के पैसों को लेकर गणेश ने फिरोज को उठवाकर पिटवाया था इसलिए बच्चों के अपहरण का पहला शक गणेश पर जताया गया। बाद में पता चला कि बच्चों का मामा अनवर अंतिम बार बच्चों के साथ देखा गया था। छानबीन में अनवर और उसकी करीबी महिला हसीना को पुलिस ने अरेस्ट किया। पुलिस ने बताया हसीना का अपने पति से विवाद चल रहा था। उसके पहले पति से एक बच्चा था। पंचायत में फिरोज ने हसीना के बच्चे को उसके पहले पति को दिलवा दिया। इसको लेकर हसीना की फिरोज से खटक गई। इस वजह से उसने बच्चों का अपहरण कराकर नेपाल में छिपा दिया। इसका मुकदमा चार साल तक चला। अदालत ने दोषियों को सजा दी। फैसला आया तो फिरोज उन लोगों के लिए उम्मीद की किरण बन गए जो अपने बच्चों के अपहरण से निराशा के अंधेरे में गुम हो गए हैं। हालांकि फिरोज के मासूम बच्चों का पता अभी तक पुलिस नहीं लगा सकी है। कब तक बचेंगे सिस्टम का फायदा उठाने वाले संविधान ने सबको अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने के अधिकार दिए हैं। हालांकि ज्यादातर लोग अपने अधिकारों को लेकर जागरूक नहीं है, लेकिन कुछ ऐसे जीवट होते हैं जो किसी भी हद तक अपने अधिकारों के लिए लड़ते हैं। ऐसी ही जीवटता दिखाई सिटी के एक व्यापारी प्रमोद टिबड़ेवाल ने। अक्टूबर ख्0क्क् में इनकी दुकान पर लगा बिजली मीटर खराब हो गया। नये मीटर के लिए प्रमोद से क्ख्00 रुपए की मांग की गई और रसीद देने से भी इंकार कर दिया गया। प्रमोद ने टोल फ्री कंप्लेन नंबर पर इसकी शिकायत कर दी। शिकायत के बाद मीटर तो बदला गया, लेकिन मीटर बहुत तेज दौड़ने लगा। उन्होंने मीटर चेक कराने के लिए बिजली विभाग को भ्0 रुपए पे किये। पांच महीनों तक उनका मीटर चेक नहीं किया गया उल्टे उन्हें भ्फ्ब्ख् रुपए का बिल थमा दिया गया। तीन बार कोशिश करने के बाद भी जब मीटर चेकिंग नहीं हुई और न ही उसे बदला गया तो सितंबर ख्0क्ख् में प्रमोट ने कोर्ट?में पेटीशन फाइल कर दी। जनवरी ख्0क्ब् में कोर्ट?ने महानगर विद्युत वितरण निगम-डिविजन फर्स्ट के एक्सईएन और एसडीओ ऑफिस की कुर्की का आदेश सुना दिया। फैसले के बाद बाद भी प्रमोद को बिजली विभाग न्याय देने की जगह कागजों पत्रों में उलझा रहा है।