यह बीआरडी है.. टिटनस हो जाए तो यहां न आएं
- मेडिकल कॉलेज में टिटनस के मरीजों को कर देते हैं जिला अस्पताल रेफर
- पूर्वाचल के सबसे बड़े अस्पताल में पांच साल पहले बंद हो गया 12 बेड वाला वार्ड GORAKHPUR: पूर्वाचल के सबसे बड़े अस्पताल बीआरडी मेडिकल कॉलेज में टिटनस के मरीजों के इलाज की कोई व्यवस्था नहीं है। टिटनस मरीजों के लिए बनाया गया 12 बेड वाला वार्ड 5 साल पहले ही बंद हो गया। बीआरडी में डॉक्टर्स टिटनस के मरीज को बिना देखे ही जिला अस्पताल रेफर कर देते हैं। यहां से रोज ही कुछ मरीज लौटाए जाते हैं। उनके तिमारदारों का कहना है कि मेडिकल कॉलेज जाकर जिला अस्पताल रेफर होने से अच्छा है कि क्यों न सीधे जिला अस्पताल ही जाएं। भला उन्हें क्या पता था कि इतने बड़े अस्पताल में टिटनस का इलाज नहीं हो पाएगा। पांच दिन में आए 4 पेशेंट्सपिछले पांच दिनों में ही मेडिकल कॉलेज से 4 पेशेंट्स जिला अस्पताल रेफर किए गए हैं। यानी औसतन प्रतिदिन एक पेशेंट को मेडिकल कॉलेज से रेफर किया जा रहा है। इन सभी पेशेंट्स का इलाज जिला अस्पताल के टिटनस वार्ड में चल रहा है।
जिम्मेदारों का ध्यान नहींमेडिकल कॉलेज के जिम्मेदारों का टिटनस वार्ड की तरफ कोई ध्यान नहीं है। इस कारण वार्ड बंद हो गया। अव्वल तो यह कि फिर वार्ड को चालू करने के लिए कोई पहल नहीं हुई। रोज रेफर हो रहे पेशेंट्स व तिमारदार के दर्द को समझने वाला यहां कोई नहीं है। बताते हैं कि रोज यहां दो-चार मरीज आते हैं लेकिन उन्हें बाहर से ही इलाज की व्यवस्था नहीं होने की बात कहकर वापस कर दिया जाता है। आई नेक्स्ट रिपोर्टर को एक तिमारदार ने बताया कि वह गंभीर हालत में मरीज को लेकर पहुंचा था लेकिन उसे यह कह कर वापस कर दिया गया कि वहां टिटनेस के इलाज के लिए किसी प्रकार की व्यवस्था नहीं है।
दो दिन पहले शाम को अपनी बहन गीता कुमारी कुशवाहा के साथ मेडिकल कॉलेज पहुंचा। यहां पता चला कि उसे टिटनस हो गया है। डॉक्टर्स ने तुरंत जिला अस्पताल के लिए रेफर कर दिया। कह दिया कि यहां पर टिटनस वार्ड नहीं है इसलिए इलाज हो पाना संभव नहीं है। इसके बाद जिला अस्पताल ले जाना पड़ा। गीता के पैर में बांस की लकड़ी धंसने की वजह से चोट लगी थी। इसके बाद से ही उसकी हालत खराब होने लगी थी। -रामनरेश कुशवाहा, पटहेरवा, कुशीनगर संक्रामक रोग है टिटनसडॉ। । बताते हैं कि टिटनस एक संक्रामक रोग है, जिसमें कंकालपेशियों को नियंत्रित करने वाली तंत्रिका-कोशिकाएं प्रभावित हो जाती हैं। कंकालपेशियों के लम्बे समय तक खिंचे रह जाने से यह स्थिति बनती है। यह रोग मिट्टी में रहने वाले बैक्टीरिया से घावों के प्रदूषित होने के कारण होता है। इस बैक्टीरिया को बैक्टीरियम क्लोस्ट्रीडियम कहा जाता है। यह दीमक के समान मिट्टी में लंबी अवधि तक छेद बना कर रह सकता है। जब कोई घाव इस छेदनुमा घर में रहने वाले दीमक रूपी बैक्टीरिया से प्रदूषित होता है तो टिटनेस बीमारी पैदा होती है। जब ये बैक्टीरिया सक्रिय होकर तेजी से बढ़ने लगते हैं और मांसपेशियों को प्रभावित करने वाला जहर पैदा करने लगते हैं, तो टिटनस का संक्रमण फैलता है। टिटनस आमतौर पर मिट्टी, धूल और जानवरों के मल में पाया जाता है। शरीर में बैक्टीरिया के प्रवेश का रास्ता फटा हुआ घाव होता है जो जंग लगी कीलों, धातु के टुकड़ों या कीड़ों के काटने, जलने या त्वचा के फटने से बनता है।
लक्षण - रोग धीरे-धीरे शरीर पर अधिकार जमाता है। जबड़े खिंच जाते हैं, गर्दन अकड़ जाती है, मुंह खोलने में कठिनाई होती है। -कोई वस्तु खाने-पीने, निगलने में कष्ट होता है।- पीठ में अकड़न हो जाती है, वह पीछे की ओर धनुषाकार मुड़ जाती है, ऐंठन का दौरा पड़ने लगता है, पेट बहुत कड़ा पड़ जाता है।
-चेतना रहती है, बेहोशी नहीं आती। -भौंह और मुंह का सिरा बाहर की ओर खिंच जाता है, जिससे चेहरा सिकुड़ा हुआ लगता है। - दौरों के पड़ने का क्रम चालू होता है। रोग की तीव्रावस्था में दो दौरों के बीच का समय कम होता जाता है। पेशियों में कड़ापन आ जाता है। -रोगी को छूने, हिलाने-डुलाने से या शोरगुल से आक्षेप का दौरा पड़ जाता है। - आंखें ऊपर चढ़ जाती हैं। हालत बिगड़ने पर दौरा जल्दी-जल्दी पड़ने लग जाते हैं। - निमोनिया से, अत्यधिक ज्वर से या हृदयाघात से 4-5 दिनों में मृत्यु हो सकती है। टीकाकरण से बचाव - टीकाकरण करवाएं - चोट लगने के बाद टिटनेस का इंजेक्शन जरूर लगवाएं। -टिटनेस का टीका हर जगह आसानी से उपलब्ध है। -वयस्क चार से छह सप्ताह के अंतराल पर लगवाएं टिटनस का टीका - गर्म व नम वातावरण वाले बाहरी देशों में जाने वाले को बूस्टर का टीका जरूर लगवाना चाहिए। -धूल या गोबर की खाद के बीच काम करने वाले खेतिहर मजदूर को विशेष ध्यान देना चाहिए।- प्रसव के दौरान महिला को टिटनस का टीका जरूर लगवाएं ।
इलाज - कहीं भी चोट लग जाने पर घाव को हाइड्रोजन पराक्साइड या डेटॉल आदि से धोना चाहिए। - जल्दी टिटनस का इंजेक्शन लेना चाहिए। - शीतल, शांत, अंधेरे कमरे में रोगी को रखना चाहिए। - समय नष्ट न करके, योग्य चिकित्सक की देखरेख में तुरंत उपचार प्रारम्भ कर देना चाहिए।