काश होते इंतजाम तो बच जाती जान
- बरहुआ में बच्चों के रेस्क्यू में अक्षम नजर आया ईओसी
-सूचनाओं के प्रसार में लगे दो घंटे GORAKHPUR: बरहुआ के पास नदी में दो बालकों की जान संभवत: बचाई जा सकती थी, अगर इसमें प्रशासनिक प्रक्रिया आड़े न आई होती। इमरजेंसी ऑपरेशन सेंटर (ईओसी) सुविधाओं के अभाव में कोई कदम उठाने में अक्षम नजर आया। वहीं एनडीआरएफ के हाथ प्रशासनिक लिखापढ़ी की जटिलता ने बांध रखे थे। बिना उच्चस्तरीय आदेश के एनडीआरएफ बटालियन का मूव करना संभव नहीं था। इससे एनडीआरएफ जवान परेशान थे और खुद को बेहद लाचार महसूस कर रहे थे। हालांकि आदेश मिलने के बाद नदी तट पर पहुंच कर जवानों ने काफी तत्परता दिखाई। सिर्फ बिल्डिंग, नहीं कोई संसाधनआपदा से निपटने के लिए एनडीआरएफ की 11वीं बटालियन गोरखपुर में कैंप कर रही है। लेकिन नियम-कानून के चलते एनडीआरएफ के हाथ बंधे हुए हैं। ऐसे में जिले में स्थापित ईओसी सेंटर की भूमिका बढ़ जाती है। लेकिन संसाधनों के अभाव में ईओसी सेंटर किसी आपदा से निपटने में सक्षम नहीं है। बिल्डिंग के अलावा ईओसी के पास कुछ नहीं है। पुलिस को सूचना देने के अलावा लोगों के पास कोई विकल्प नहीं है। शनिवार को दो बच्चों के डूबने की मिलने पर जिम्मेदार अफसर सिर्फ तमाशा देखते रह गए। गांव के लोगों के आक्रोशित होने पर पुलिस-प्रशासन ने एनडीआरएफ की मदद मांगी।
ये होना चाहिए इंतजाम - ईओसी सेंटर में 24 घंटे कर्मचारियों की तैनाती - सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए वॉयरलेस सेट की व्यवस्था - विभिन्न विभागों के बीच कोआर्डिनेशन के लिए पूर्वाभ्यास - इंटरनेट और उच्च तकनीकि संसाधनों से लैस हो - 1077 नंबर हमेशा एक्टिवेट रहे। - 24 घंटे बिजली की आपूर्ति हो। - आपदा से संबंधित पुराने आंकड़े, सभी विभागों में मौजूद संसाधनों की जानकारी, कोआर्डिनेशन और नेटवर्किग का इंतजाम हो। - इमरजेंसी ऑपरेशन में घटनास्थल तक पहुंचने के लिए मैप और भोगोलिक स्थितियों की जानकारी - ईओसी के साथ इमरजेंसी सपोर्ट फंक्शन तैयार होना चाहिए जिसमें सभी की जिम्मेदारी तय होती है।