प्लास्टिक यानी स्लो पॉयजन
-प्लास्टिक के कारण सिटी के 18 परसेंट एरिया में होता है जलजमाव
-राप्ती और रोहिन नदी पर भी पड़ रहा पॉलिथीन का असरGORAKHPUR : पर्यावरण के लिए मुसीबत बनी प्लास्टिक की थैलियों का यूज अपनी रोजमर्रा की जिदंगी में करते हैं, वे बाद में कूड़े के रूप मे पर्यावरण के लिए संकट बनते हैं। साल ख्0क्फ् में पूरे देश में फ्ख् लाख टन प्लास्टिक कचरा था। एक रिपोर्ट के मुताबिक पूरे संसार हर साल क्00 मिलियन टन से भी ज्यादा प्लास्टिक का उत्पादन होता है। वहींदेश में हर साल फ्0-ब्0 लाख टन प्लास्टिक का उत्पादन किया जाता है। इसमें से आधा ही यानी ख्0 लाख टन प्लास्टिक ही रिसाइकिल हो पाता है। यही हाल सिटी का है। चारों तरफ पॉलिथीन नजर आती है। कहींसड़कें प्लास्टिक की थैलियों से पटी नजर आती हैं तो कहींनालियां चोक नजर आती हैं। कहींकहींतो प्लास्टिक के कूड़े का बांध ही बना दिया गया है। पॉलिथीन के कारण सिटी के क्8 प्रतिशत एरिया जल जमाव जूझते हैं, खासकर बारिश के दिनों में नालियों का पानी सड़कों पर आ जाता है। वहीं पॉलिथीन के कारण सिटी का अंडर ग्राउंड वाटर और लेवल दोनों ही डिस्टर्ब होने लगा है। बता दें कि पॉलिथीन में फ्भ् ऐसे खतरनाक केमिकल निकलते हैं जो कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी का कारण बनते हैं।
ख्000 किलो प्लास्टिक का यूज गोरखपुर सिटी में परडे ख्000 किलो पॉलिथीन का यूज होता है। एक शोध की मानें तो सिटी में हर साल ख्ख्,08,ख्भ्,000 पॉलिथीन बैग का यूज होता है। एक एनजीओ के आंकड़ाें मानें तो अध्ययन में यह पाया गया है कि ब्म्.7 प्रतिशत परिवार प्रतिदिन ब् से 7 पॉलिथीन बैग का यूज करते हैं। यदि आर्थिक आधार पर देखें तो मध्यम वर्ग सबसे ज्यादा पॉलिथीन बैग भ्ब् प्रतिशत का इस्तेमाल किया जाता है। सुविधाजनक और मुफ्त में मिलने की वजह से इसका यूज काफी होता है। सबसे ज्यादा फ्फ् प्रतिशत प्लास्टिक बैग सब्जी व फल खरीदने में यूज किए जाते हैं। जबकि ख्9 प्रतिशत प्लास्टिक बैग किराने की दुकानों में यूज किए जाते हैं। वहीं शहर में कुल उपयोग किये जाने वाले पॉलिथीन में से 7भ् परसेंट को कूड़े में फेंक दिया जाता है। इसमें से क्0 से ख्0 परसेंट प्लास्टिक थैलियों को कूड़ा बीनने वाले ले जाते हैं। नगर निगम की मानें तो लगभग क्000 किलो प्लास्टिकसे बने आइटम्स जैसे गलास और प्लेट कूड़े के साथ इधर उधर बिखरे रहते हैं। क्8 प्रतिशत एरिया में जल जमावगोरखपुर नगर निगम में कुल 70 वार्ड हैं। इसमें भ्9 वार्ड में बारिश बीतने के ब् महीने बाद भी जल जमाव स्थिति रहती है। इसके कारण इन एरिया में डायरिया, डेंगू, पीलिया, जेई जैसी जल जनित बीमारियों का प्रकोप बना रहता है। मार्केट में जलजमाव होने की वजह से कारोबारियों को भी नुकसान होता है। महानगर में जल-जमाव का मुख्य कारण जल निकासी की उचित व्यवस्था न होना है। यहां की 90 फीसदी नालियां या तो टूटी हुई हैं या फिर सिल्ट भरी हैं।
लगन के दिन क्0 कुंतल निकलता है पॉलिथीन कूड़ा नगर निगम के आंकड़ों की मानें तो सिटी में सामान्य दिनों की अपेक्षा लगन सीजन में प्रतिदिन क् हजार किलो पॉलिथीन कूड़ा निकलता है। इसमें लगभग 700 किलो कूड़ा तो उठा लिया जाता है, लेकिन फ्00 किलो पॉलिथीन कूड़ा पड़ा रह जाता है। पृथ्वी को बचाना है तो हमें पॉलिथीन का कम से कम यूज करना होगा। पॉलिथीन का यूज जिस तेजी से हो रहा है, अगर इसको रोका नहीं गया तो आने वाले दिन में इसका असर पर्यावरण पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ेगा। डॉ। सत्या पांडेय, मेयरनगर निगम कार्यकारिणी ने सिटी में भ् माइक्रान से नीचे के पॉलिथीन पर बैन लगा दिया है। शहर में जिस तरह से पॉलिथीन का यूज बढ़ रहा है। यह बहुत ही हानिकारक है, लोगों को भी जागरूक होकर इसके उपयोग को बंद करना होगा।
जियाउल इस्लाम, पूर्व उपसभापति क्या हैं प्लास्टिक के थैलों से नुकसान? प्लास्टिक के थैले रंग और रंजक, धातुओं और अन्य तमाम प्रकार के अकार्बनिक रसायनों को मिलाकर बनाए जाते हैं। रंग और रंजक एक प्रकार के औद्योगिक उत्पाद होते हैं, जिनका इस्तेमाल प्लास्टिक थैलों को चमकाने के लिए यूज होता है। इनमें से कुछ पदार्थ कैंसर को जन्म देते हैं। कुछ पदार्थ खाद्य पदाथरें को जहरीला बनाने का काम करते हैं। पहले ऐसे हालात नहीं थे। इसका कारण यह है कि पहले जो प्लास्टिक की थैलियां बनती थी, उनकी पर्त की मोटाई ख्0-ख्भ् माइक्रॉन थी और लोग उन्हें एक बार प्रयोग करके फेंकते नहीं थे, लेकिन पॉलीमर कैमिस्ट्री में हुई तरक्की के बाद बाजार में म् माइक्रॉन मोटाई की पतली थैलियां आ गई जो इतनी सस्ती पड़ती हैं कि दुकानदार ग्राहकों को उन्हें मुफ्त में ही देने लगे हैं। आज हर जगह यही प्लास्टिक दिखाई देता है और यही सबसे खतरनाक है। पशुओं और पौधों के लिए और भी घातकप्लास्टिक के संपर्क में आने से पौधों की जड़ें जल जाती हैं और पौधे पनपने से पहले ही मर जाते हैं। आवारा पशु गाय और भैंस आदि सड़कों पर घूमने वाले जानवर प्लास्टिक की थैलियां निगल जाते हैं। कई बार लोग प्लास्टिक की थैली में सब्जी के छिलके बांध कर कूड़े दान में डाल देते हैं जिसे भूखे पशु खा लेते हैं। प्लास्टिक की थैली जलाने से जहरीली गैसें निकलती हैं, जो पूरी वायु को प्रदूषित कर देती हैं।