.. जा छू ले आसमान
- तारामंडल की दमपत्ति ने बिटियां को दी अपनी राहें चुनने की आजादी
- बेटी की खुशी के लिए कुछ भी कर गुजरने को पेरेंट्स रहते है तैयार GORAKHPUR: डॉक्टर बनना हो या इंजीनियर, खिलाड़ी बनने की चाहत हो या फिर म्यूजिशियन, बिटिया को जो भी बनना है, उसकी उसे पूरी आजादी है। यह मानना है सिटी के तारामंडल निवासी विजय शाही और अलका शाही का, जिन्होंने अपनी नन्हीं परी आराध्या को खुले आसमान में उड़ने के लिए छोड़ दिया है। उनका मानना है कि ससुराल जाने के बाद तो यह जिंदगी खुद की नहीं रहती, दूसरों की खुशियों के लिए अपनी खुशी को नजर अंदाज करना पड़ता है। शाही कपल का कहना है कि अभी उसके जो जी में आए, वह करने की आजादी है। जिस चीज की ख्वाहिश हो, वह पूरी होगी। रखती है इनगेजअलका शाही ने बताया कि मेरी फ्रेंड सर्किल में 80 परसेंट फ्रेंड्स के पास गर्ल्स ही हैं। वह सभी काफी खुश हैं। मेरी भी नन्हीं परी मुझे हमेशा ही इनगेज रखती है। कभी उसने उसके सिवा कुछ और सोचने का मौका ही नहीं दिया। उसके साथ हर पल काफी खुशी मिलती है। अब बेटियां किसी से कम नहीं है, बेटों से जो कुछ एस्पेक्टेशन होती है, वह बेटियां भी कर सकती हैं। मेरी लड़की है, इसलिए लड़का चाहिए ऐसा सोचने वालों को अपनी सोच बदलने की जरूरत है।
मेरे पापा भी करते थे प्रमोट अलका ने बताया कि उनके फादर एचबी सिंह भी गर्ल्स को काफी प्रमोट करते थे। उन्होंने कभी हमें कुछ करने से नहीं रोका, इसलिए मैं भी अपनी बेटी को प्रमोट करती हूं। 2008 में वह पैदा हुई, अब महज 8 साल की उम्र में ही वह डॉक्टर्स और इंजीनियर बनने के सपने देखती है, मैं भी उसे मोटीवेट करती हूं। वह छोटी है, इसलिए मेरे घर में काफी लोग डॉक्टर हैं, तो वह डॉक्टर बनने की चाहत दिखाती है। कभी कहीं डीएम वगैरा का जिक्र होता है, तो वह डीएम बनने की ख्वाहिश भी जाहिर करती है। उसके साथ हर लम्हा अच्छा गुजरता है। आगे तो अकेले ही रहना हैलोगों के मन में यह भावना होती थी कि मेरा बेटा रहेगा तो आगे का मेरा एक सहारा हो जाएगा। मगर अब यह सिर्फ पुरानी बातें ही हैं। बदलते दौर में बेटे भी मां-बाप को छोड़कर अलग हो जाते हैं तो जब फ्यूचर में अकेले ही रहना है तो ऐसे में मुझे बेटा चाहिए, इस पर जोर क्यों दिया जाए? बेटों से ज्यादा तो बेटियां अपने मां-बाप की फिक्र करती हैं। शादी के बाद तो वह उनका और भी ज्यादा ख्याल रखती हैं। उनके ऊपर ससुराल का बोझ भी होता है, बावजूद इसके वह उफ तक नहीं करती। ऐसे जमाने में भला बेटियां होने पर फक्र क्यों न किया जाए।