सिविल लाइन निवासी संजय अपने बेटे की ड्रेस लेने गोलघर गए. वहां नहीं मिली तो बक्शीपुर गए फिर उन्हें असुरन भी जाना पड़ा.


गोरखपुर (ब्यूरो)।तभी दुकानदार ने संजय से पूछा कि स्कूल से कोई कार्ड या पर्ची तो बच्चे को नहीं मिली है। इस पर संजय ने एक कार्ड दुकानदार को दिखाया। तब दुकानदार ने उन्हें बताया कि ये ड्रेस वहीं मिलेगी। इसके अलावा आपको कहीं नहीं मिलेगी। संजय भी ये सुनकर हैरत में पड़ गए। लेकिन यही सही है। एक तरफ स्कूल यूनिफॉर्म के रेट में इजाफा हो गया है। दूसरी तरफ स्कूल और दुकानों के बीच कमीशन का खेल अलग ही पेरेंटस का परेशान कर रहा है। स्कूल में बच्चों को मिलती है पर्ची


पेरेंट्स का कहना है कि कई प्राइवेट स्कूल ऐसे हैं, जहां पर नए सेशन में एडमिशन लेने वालों को फीस रसीद के साथ ही ड्रेस के लिए एक दुकान का कार्ड भी थमाया जाता है। कार्ड पर लिखी दुकान के अलावा अगर गार्जियन हाथ पांव मारते भी हैं तो उन्हें निराशा ही हाथ लगती है। इसलिए थक-हारकर उन्हें उसी दुकान पर जाना पड़ता है, जहां का स्कूल ने कार्ड या पर्ची दी थी। वहीं भी दुकानदार के अलग ही नखरे होते हैं। गलती से भी अगर गार्जियन ने ये कह दिया कि भइया दो बच्चे हैं कुछ कम कर दीजिए। इस दुकानदार तीखा जवाब देते हैं कि कम नहीं होगा लेना है तो लीजिए वरना टाइम ना बर्बाद कीजिए। लेनी पड़ती हैं दो सेट ड्रेसशाहपुर एरिया की अमृता ने बताया कि उनके दो बच्चे एक लड़का और लड़की हैं। उन्होंने बताया कि नए सेशन में मैंने बच्चे का एडमिशन करवा दिया है। ड्रेस छोटी हो गई है। उसे भी खरीदना पड़ा। उन्होंने बताया कि स्कूलों में ड्रेस के अलावा हाउस यूनिफॉर्म और स्पोट्र्स के लिए ट्रैक सूट भी लेना पड़ा। वहीं एक सेट ड्रेस से काम नहीं चलता है इसलिए दो यूनिफॉर्म खरीदी हैं। जिसमे काफी पैसे खर्च हो गए। 20 परसेंट तक बढ़े ड्रेस के दामगोलघर के एक दुकानदार रमेश ने बताया कि इस साल यूनिफॉर्म के रेट में 10-20 परसेंट वृद्धि हुई है। मेरी दुकान पर सबसे छोटे बच्चे की डे्रस की शुरुआत 350-400 रुपए से होती थी। इस बार 100-150 रुपए छोटे बच्चे के ड्रेस पर दाम बढ़े हैं। इसी तरह बड़े साइज पर भी रेट बढ़े हैं। एक सेट डे्रसड्रेस 1500हाउस ड्रेस 1400ट्रैक सूट 1100जूता 500मोजा 100टाई-बेल्ट 300

एडमिशन के समय दुकानों की चांदी

मार्च अप्रैल एडमिशन का समय होता है। इस समय गोलघर, बक्शीपुर, असुरन एरिया में कुछ स्कूलों की पसंदीदा दुकानें हैं। जहां पर बच्चों और पेरेंट्स की खूब भीड़ जमा हो रही है। इतना ही नहीं बच्चे का ड्रेस लेने के लिए भी उन्हें अपनी बारी का इंतजार करना पड़ रहा है।इस साल मैंने अपने बच्चे का सिविल लाइन स्थित स्कूल में एडमिशन कराया है। फीस कॉपी किताब में काफी पैसे खर्च हो गए। ड्रेस में भी पैसे खर्च हो गए। अब तो घर इस महीने घर के खर्च में कटौती करनी पड़ेगी।श्रृंखला उपाध्याय, पेरेंट तारामंडलबच्चों की पढ़ाई का असली पता मार्च और अप्रैल माह में चलता है। इन मंथ में पेरेंट्स को एग्जाम से गुजरना पड़ता है। ये सोचना पड़ता है कि पहले ड्रेस खरीदें या फिर स्कूल की फीस जमा करें। विनीता शुक्ला, पेरेंट पुराना गोरखपुर अप्रैल माह अपने साथ फीस वृद्धि का बोझ और महंगे कॉपी किताबों का बोझ लेकर आता है। प्रतिवर्ष किताबों के मुख्य पृष्ठ बदल दिए जाते हैं। इस कारण नई किताब खरीदना मजबूरी हो जाती है। ड्रेस तक फिक्स दुकानों से बिकवाई जा रही है। गुंजन श्रीवास्तव, पेरेंट शिवपुर सहबाजगंज

Posted By: Inextlive