कस्टमर की आस में सुबक रहा सरस
- विकास भवन में एक साल पहले हुई शुरुआत
- रोजी कमाने का बनाया जरिया, नहीं मिल रहे ग्राहक GORAKHPUR: स्वयं सहायता समूहों की रोजी कमाने की उम्मीदें शहर आकर टूट रही हैं। बेरोजगारी का आलम यह है कि हुनरमंद हाथों को कद्रदान नहीं मिल रहे। वाजिब कीमत होने के बावजूद ग्राहक नजरें फेर ले रहे हैं। यह हाल है विकास भवन में एक साल पहले खुले सरस केंद्र का, जहां कर्मचारी रोजाना ग्राहकों की बांट जोह रहे हैं, लेकिन उनकी उम्मीदें शाम होते-होते दम तोड़ दे रही हैं। प्रॉडक्टस बेचने के लिए मिला उचित प्लेटफॉर्मगवर्नमेंट की तरफ से स्वयं सहायता समूहों का संचालन किया जाता है। बैंक से अनुदान देकर स्वयं सहायता समूहों को लघु उद्योग लगाने के लिए प्रेरित भी किया जा रहा है। इसका असर भी दिखा और कई ग्रुप्स ने प्रॉडक्ट्स बनाने भी शुरू कर दिए, लेकिन जी तोड़ मेहनत के बाद भी उसकी सेल और मार्केट न होने से उनकी परेशानी बढ़ गई। इसको देखते हुए सीडीओ कुमार प्रशांत ने पहल करते हुए सालों से बंद पड़े सरस केंद्र को खोलने की स्ट्रैटजी बनाई। विकास भवन स्थित सरस भवन का रेनोवेशन भी कराया गया। अक्टूबर 2014 में सीडीओ ने सरस शोरूम में समूहों के हाथों बने प्रॉडक्ट्स की बिक्री शुरू करा दी।
ग्राहकों की कमी से बिगड़ गई बात शोरूम में सामान बेचकर स्वयंसहायता समूहों को प्रोत्साहित किया गया। जिले के जंगल कौडि़या, भटहट, खोराबार, कैंपियरगंज सहित कई ब्लॉक के 20 से अधिक स्वयंसहायता समूहों को सरस से जोड़ा गया। समूह की तरफ से बनाए गए सामान शोरूम तक पहुंचने लगे। लेकिन ग्राहकों की कमी से लोगों की उम्मीदें टूट गई। सुबह 10 बजे से लेकर शाम पांच बजे तक कर्मचारी, ग्राहकों का इंतजार करते हैं। हाथ से बनी देसी चीजों का स्टॉक सरस शो रूम में हैंडमेड आइटम्स आसानी से अवेलबल हैं। घर सजाना हो या फिर त्योहारों पर रौनक बढ़ानी हो। किचन के सामान से लेकर कपड़े तक मौजूद हैं। अंकुरित चना, जूस, अगरबत्ती, नहाने का साबुन, मेंहदी, शहद, सजावटी सामान, डोर मैट, टेराकोटा की मूर्तियां, भुजिया चावल, अरवा चावल, चिप्स, थाल पोस, मेज पोस, बंदनवार सहित 10 रुपए से लेकर पांच सौ रुपए तक कीमत के सामान मौजूद है। जरूरत की लगभग हर चीज शोरूम में मिल जाएगी। सरकारी उदासीनता पड़ रही भारीशो रूम में सामान न बिकने से कर्मचारी भी निराश हो जाते हैं। प्रोत्साहन और प्रचार प्रसार के अभाव में गांव-कस्बों की प्रतिभाएं भी दम तोड़ रही हैं। सरस के कर्मचारियों का कहना है कि राज्य स्तर पर लगने वाले मेलों में स्टॉल लगाकर लोगों का ध्यान खींचने की कोशिश की जाती है। हैंडक्राफ्ट, गोरखनाथ, बाले मियां और किसान मेले में सरस का स्टॉल लगाया जाता है। कर्मचारियों का कहना है कि सरकारी उदासीनता से प्रचार प्रसार नहीं हो पा रहा है। इस वजह से बेरोजगारों को रोजगार देने में सरस कामयाब नहीं हो पा रहा है।
बेरोजगारों को रोजगार दिलाने के उद्देश्य से शोरूम की स्थापना की गई। सरस शोरूम को प्रोत्साहन की जरूरत है। ग्राहकों की तादाद बढ़ाने के लिए व्यापक प्रचार प्रसार की जरूरत है। कोशिश की जाएगी कि सरस को प्रोत्साहन मिल सके। कुमार प्रशांत, मुख्य विकास अधिकारी