- क्षेत्र के डाहरिया गांव में अंग्रेजों ने की थी क्रांतिकारियों पर फायरिंग

SAHJANWA: अगस्त माह आजादी की लड़ाई में हमेशा ही महत्वपूर्ण पड़ाव साबित हुआ। 15 अगस्त 1947 में आजादी मिली लेकिन इसके पहले के लंबे संघर्ष में आजादी के मतवालों की कई कहानियां इतिहास के पन्नों में कहीं खो सी गई। इंकलाब की ऐसी ही सच्ची दास्तान 1942 में सहजनवां स्थित डोहरिया के शहीदों ने लिखा थी।

एकजुटता की मिसाल

आठ अगस्त 1942 की शाम मुंबई में महात्मा गांधी ने अग्रेजों भारत छोड़ो और करो या मरो का नारा देकर बिगुल बजाया। इसका स्वागत बड़े उत्साह के साथ पूर्वाचल की धरती ने भी किया। नौ अगस्त को पूरे देश में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलन छिड़ गया। सहजनवां तहसील के डोहरिया कला में भी वीरसपूतों ने आंदोलन किया। ब्रिटिश सरकार ने उन निहत्थे लोगों पर गोलियों की बौछार कर दी। पुलिस फायरिंग में कुल नौ लोग शहीद हुए थे, जबकि 23 गंभीर रूप से घायल हुए।

ऐसे हुआ डोहरिया में कांड

नौ अगस्त 1942 को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ घोषित आंदोलन का असर सहजनवां के डोहरिया में भी देखने को मिला। आजादी के दीवानों ने भारत माता का नारा लगाते हुए तैयारियां शुरू कर दी। 23 अगस्त 1942 को डोहरिया में सुबह से ही भारी तादाद में लोग जुटने लगे। अग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगा रहे लोगों को तत्कालीन कलेक्टर एमएम मास हाकिम परगना साहब बहादुर व इंस्पेक्टर हल्का सदर ने हटाने की पूरी कोशिश की। लेकिन देशप्रेमी अपनी जिद पर अड़े हुए थे। तत्कालीन थानेदार एनुलहक ने हथियारों से लैस सिपाहियो को बुला लिया और भीड़ को गैरकानूनी बताते हुए कवायद शुरू कर दी। पुलिस ने लाठी चार्ज किया तो भीड़ ने उसका जबाब ईट पत्थरों से दिया। पुलिसवालों ने भीड़ पर गोलियों की बौछार कर दी। पुलिस की फायरिंग में नौ लोग शहीद हो गए। साथ ही 23 गंभीर रूप से घायल हुए थे। वहीं, अंग्रेजों का मन इतने से नहीं भरा तो उन्होंने डोहरिया गांव में आग लगा दी।

स्मारक पड़ा है बदहाल

क्षेत्र के वीरों की कुर्बानी को याद करने के लिए यहां स्मारक बनाया गया। हर वर्ष यहां 23 अगस्त को कार्यक्रम आयो्जत भी किया जाता है। इसके बावजूद स्मारक की देखरेख में भारी अभाव है। साफ-सफाई ले लेकर संरक्षण की कमी यहां साफ देखी जा सकती है।

Posted By: Inextlive