दुर्लभ प्रजाति का मिला उल्लू
-तेंदुआ, गिद्ध, फिशिंग कैट के बाद मिला उल्लू
-बिछिया में मिला सफेद मुंह वाला उल्लू दुर्लभ प्रजाति का GORAKHPUR: चिलुआताल में तेंदुआ, खोराबार में गिद्ध, पीपीगंज में फिशिंग कैट के बाद मंडे को शाहपुर के बिछिया इलाके में दुर्लभ प्रजाति का उल्लू देखने को मिला, जिसे मोहल्ले के युवकों ने कड़ी मशक्कत के बाद पकड़ लिया। सफेद मुंह वाला उल्लू न सिर्फ देखने में अद्भुत है बल्कि वन विभाग के मुताबिक इससे पहले गोरखपुर में कभी ऐसा उल्लू न तो देखा गया है और न ही इसके बारे में सुना गया। दुर्लभ प्रजाति का है उल्लूशाहपुर के बिछिया में रहने वाले सुलभ सिंह ने बताया कि रोज की तरह वे मंडे को जब घर के बाहर निकले तो सामने एक अद्भुत पक्षी देख चौंक गए। पास जाकर देखा तो उन्हें उल्लू टाइप का लगा, मगर वे क्लियर नहीं थे। उन्होंने परिवार के अन्य सदस्य और प्रशांत शुक्ला की हेल्प से उस उल्लू को पकड़ लिया। उल्लू काफी बड़ा है। लोगों ने बताया कि इस तरह का उल्लू कभी नहीं देखा है। इंडिया में उल्लू करीब फ्0 प्रजाति का मिलता है। जिसमें से करीब क्भ् प्रजाति के उल्लू जंगल में मिलते है। वैसे तो उल्लू की अधिकांश प्रजाति खत्म होती जा रही है। इससे अब सभी दुर्लभ हो गए हैं, मगर यह सफेद मुंह वाला उल्लू काफी दुर्लभ है।
मनुष्य को लाभ पहुंचाता है ये उल्लू एक रिसर्च के मुताबिक सफेद मुंह वाला उल्लू बॉर्न उल्लू कहलाता है। यह पक्षी मनुष्य को आर्थिक लाभ पहुंचाता है। इसकी वर्ल्ड में क्म् उपप्रजाति है, जिसमें से तीन उपप्रजाति इंडिया में पाई जाती है। यह जंगली कौए की तरह लगता है। पीठ की ओर से गोल्डन और भूरे रंग का होता है। नीचे पेट की तरफ सफेद रंग का होता है। इनका चेहरा मास्क के समान लगता है। ये सूखी जगह, पुराने मकान, घर और खंडहर के साथ पुराने किलों में निवास करते हैं। ये पक्षी पीपल, बरगद, गूलर जैसे बड़े पेड़ों पर खोखले भाग में भी निवास करते हैं। इस उल्लू को वर्ल्ड में कई नाम से जाना जाता है। कहीं इसे मंकी फेस्ड आउल कहीं इसे गोल्डेन आउल तो कहीं इसे डेथ आउल और स्कीच आउल के नाम से जाना जाता है। बॉर्न आउल फसलों के लिए शुभ माना जाता है, क्योंकि यह चूहे और उन कीटों को अपना भोजन बनाता है, जो फसल के लिए हानिकारक होते हैं। दीपावाली में बढ़ जाती है डिमांडआम सीजन में साधारण पक्षी समझे जाने वाले उल्लू की डिमांड अचानक दिवाली आते ही बढ़ जाती है। दिवाली में तांत्रिक उल्लू की पूजा करते हैं। इससे न सिर्फ इनकी डिमांड बढ़ती है बल्कि इनकी कीमत भी कई गुना बढ़ जाती है। उल्लू जितना दुर्लभ प्रजाति का होता है, कीमत भी उतनी अधिक लगती है। इसी कारण दिन बीतने के साथ उल्लू की तादाद लगातार कम होती जा रही है। अन्य जानवरों की तरह उल्लू भी धीरे-धीरे विलुप्त होने की कगार पर पहुंच रहा है, जबकि कुछ साल पहले तक गांव में अधिक संख्या में उल्लू पाए जाते थे।
उल्लू मिलने की कोई जानकारी नहीं है। अगर सफेद मुंह वाला उल्लू है तो यह काफी दुर्लभ प्रजाति का होता है। मेरी जानकारी के मुताबिक इससे पहले कभी गोरखपुर में ऐसा उल्लू नहीं मिला है और न ही सुना गया है। डॉ। जनार्दन, डिस्ट्रिक्ट फॉरेस्ट ऑफिसर