पवित्र बाल की जियारत को उमड़े अकीदतमंद
- दीवान बाजार, छोटेकाजीपुर और बड़े काजीपुर में मौजूद है पैगम्बर मुहम्मद साहब का बाल
- रबिउल अव्वल के मंथ में कराई जाती है जियारतGORAKHPUR : मुए मुबारक(पैगम्बर मोहम्मद साहब का पवित्र बाल) की जियारत सलातों सलाम के बीच रविवार को की गई। दीवान बाजार स्थित ख्वाजा नासिर अली व ख्वाजा तारिक अली के मकान पर बाद नमाज जुहर यह सिलसिला शुरू हुआ। इस दौरान बड़ी तादाद में अकीदतमंद जुटे और उन्होंने मुए मुबारक की जियारत की। इस दौरान जलसा-ए-ईदमिलादुन्नबी भी ऑर्गनाइज हुई, जिसमें मौलाना जहांगीर अहमद अजीजी ने मूए मुबारक की फजीलत हदीस की रोशनी में बयान की। वारिस अली ने नात पेश की। इसके बाद जियारत का सिलसिला शुरू हो गया। ख्वाजा तारिक व नासिर ने लोगों को जियारत करायी। इसके बाद शीरनी तकसीम की गयी। इस मौके पर एहसान फरीद, मोहम्मद फहीम, नजमुल हक मारूफी, फैजुल हक, सैयद जावेद, अशरफ आलम, इरशाद अहमद, ताहिर रजी, आदिल रजी, कमर जमील, मोहम्मद उमर, मोहम्मद आसिम सहित तमाम लोग मौजूद रहे।
शहर में तीन हजरत बल मौजूदशहर गोरखपुर में तीन हजरत बल है। जिसमें पांच मुए मुबारक कई सदियों से रखे हुये है। यह हजरत बल शहर के दीवान बाजार, छोटे काजीपुर और बड़े काजीपुर में मौजूद है। इस्लामी माह के बारह रबीउल अव्वल को बड़े काजीपुर व छोटे काजीपुर में इसकी जियारत करायी जायेगी। लोग जियारत कर मुए मुबारक के तुफैल दिली मुरादें पा सकते है। जियारत के बाद इस पूरे साल सुरक्षा में रख दिया जाता है। मुहल्ला दीवान बाजार में ख्वाजा सैयद अख्तर अली मरहूम के परिवार में जो मुए मुबारक है उसकी जियारत रबीउल अव्वल शरीफ के पहले रविवार को दोपहर की नमाज बाद करायी जाती है। यहां पर दो मुए मुबारक रखे हुये है।
कश्मीर से आया था मुए मुबारकदीवान बाजार में ख्वाजा सैयद अख्तर अली मरहूम के परिवार में मुए मुबारक को उनके दादा सैयद सज्जाद अली मुगल शासन काल में कश्मीर से लाए थे। वइ इत्र के कारोबारी थे। सैयद सज्जाद अली के बाद उनके पुत्र ख्वाजा सैयद इमदाद अली फिर ख्वाजा सैयद फसाहत अली और इनके पुत्र सैयद अख्तर अली इसकी देखभाल करते रहे। नस्ल दर नस्ल उनके पुत्र मुए मुबारक की जियारत रबीउल अव्वल शरीफ के पहले रविवार को कराते रहे। अब यह काम सैयद अख्तर के दो पुत्रों ख्वाजा सैयद तारिक अली व ख्वाजा सैयद नासिर अली देख रहे हैं। एक खास कमरे में लकड़ी की बक्से के अंदर एक दूसरा बक्सा है। जिसके अंदर चांदी की छोटी संदूकची है। जिसमें तह बा तह गिलाफ में लिपटी शीशी के अंदर मूए मुबारक रखा है। दरूल व सलाम पढ़ते हुए अकीदतमंदों के सामने कुछ देर के लिए मुए मुबारक की जियारत करायी जाती है।