बारगाहे इलाही में दुआओं के लिए उठे हाथ
- तिलावत और नमाजों में गुजरी शबे कद्र की पहली रात
- रविवार को एतकाफ में बैठे मुकामी बाशिंदेGORAKHPUR: सूरज डूबने के साथ ही शहर की छोटी-बड़ी मस्जिदों में एतकाफ शुरू हो गया। खुदा की रजा के लिए दस दिनों के एतकाफ की नियत से लोग मस्जिद में दाखिल हुए। एतिकाफ करने वाले इबादत इलाही में मशगूल हो गए। यह सिलसिला ईद का चांद देखने तक यूं ही चलता रहा है। शहर की अलग-अलग मस्जिदों में किसी में एक तो कहीं पर अधिक संख्या में लोगों ने एतकाफ शुरू कर दिया। जहन्नम से आजादी के इस अशरे में लोग बढ़चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। इस्माइलपुर स्थित काजी जी की मस्जिद में बड़ी संख्या में लोग एतकाफ में बैठे हैं, तो वहीं मस्जिद उंचवा में भी इमाम के साथ कुछ और लोग एतकाफ की नियत से मस्जिद में दाखिल हुए। इसी तरह शहर की दूसरी मस्जिदों में कहीं बुजुर्ग तो कहीं नौजवानों ने एतकाफ शुरू किया है।
शुरू हुआ शबे कद्र का सिलसिलारमजान के तीसरा अशरा शुरू होने से पहले रविवार को शब-ए-कद्र की शुरुआत हो गई। पहली ताक रात में बंदो ने मगरिब की नमाज पढ़कर नफिल नमाजों और तिलावते कुरआन के साथ रब को राजी करने की कोशिश में जुट गए। घरों व मस्जिदों में इबादत का सिलसिला पूरी रात तक चलता रहा। खत्मे सहर और नमाजे फज्र के बाद लोग अपने घरों को लौटे। अब शब-ए-कद्र को रमजान की 23, 25, 27, 29 वीं की ताक रात में तलाशा जाएगा।
सुन्नत है एतकाफ मुफ्ती अख्तर हुसैन अजहर मन्नानी ने बताया कि शब-ए-कद्र को पाने के लिए नबी ए पाक ने रमजान पाक का पूरा महीना एतकाफ फरमाया है। आखिरी दस दिन तो आप ने कभी तर्क नहीं किया। आखिरी अशरे का एतकाफ सुन्नत है। शबे कद्र आखिरी अशरे में है। बहर हाल सुन्नतों के दीवानों अगर कोई खास मजबूरी न हो तो माहे रमजान के आखिरी अशरह के एतकाफ की सआदत हरगिज नहीं छोड़नी चाहिए। कम से कम जिन्दगी में एक बार तो हर मोमिन को रमजान के आखिरी अशरह का एतकाफ करना ही चाहिए। हदीस में है कि एतकाफ करने वाले को हज व उमरा का सवाब मिलता हैं।