चिरंजीवी परशुराम के बारे में जानती ही नहीं आज की पीढ़ी
- गुरु जी भी नहीं जानते परशुराम के बारे में
- आई नेक्स्ट के सर्वे में हुआ खुलासाGORAKHPUR : परशुराम। जिन्हें पूरी दुनिया धृष्ट हैहय वंशी क्षत्रियों का पृथ्वी से ख्क् बार संहार करने के लिए जानती है। कहा जाता है कि भारत के अधिकांश गांव उन्हीं के द्वारा बसाये गये। वे एक ब्राह्मण के रूप में जन्मे अवश्य थे, लेकिन कर्म से एक क्षत्रिय थे। उनके क्रोध से मनुष्य या राक्षस ही नहीं, बल्कि देवता और भगवान तक घबराते थे। सीता स्वयंवर में धनुष टूटने के बाद जब भगवान परशुराम पहुंचे तो राजा जनक ने उन्हें शांत करने के लिए उनके पैर पकड़ लिए थे, मगर अब परशुराम के क्रोध से कोई नहीं डरता क्योंकि उनके क्रोध को शायद कोई जानता ही नहीं है। परशुराम कौन थे? अधिकांश बच्चों को ये पता ही नहीं है, गुरुजी तक उनसे अनजान हैं। परशुराम की याद में बच्चों के साथ गुरुजी सरकारी छुट्टी तो मना रहे हैं, मगर उन्हें उनके बारे में कोई जानकारी नहीं है। क्रोध का पर्याय और ब्राह्मणों के सबसे बड़े पूज्यनीय परशुराम जी को लेकर जब आई नेक्स्ट ने एक सर्वे कराया तो रिजल्ट चौंकाने वाला था। परशुराम से जुड़े सिंपल सवालों का जवाब भी लोग नहीं दे पाए, जबकि जवाब देने वालों में बच्चे या स्टूडेंट नहीं, बल्कि गुरु जी थे। सर्वे में महज एक परसेंट ऐसे मिले, जिन्हें परशुराम से जुड़े सभी पांच सवालों का जवाब मालूम था।
आप भी जानिए क्-भगवान परशुराम ऋषि जमदग्नि के बेटे थे। कठोर तपस्या के फलस्वरूप भगवान शंकर ने उन्हें एक धनुष दिया था जिसे परशुराम हमेशा अपने पास रखते थे। त्रेतायुग में जब भगवान परशुराम तपस्या के लिए हिमालय जाने लगे तो उन्हें इस शिव धनुष की चिंता सताने लगी। इस शिव धनुष को आखिर कहां रखा जाए, जिससे उसे कोई क्षति न पहुंचा सके। तब परशुराम ने इस शिव धनुष को मिथिला के राजा जनक के पास रख दिया। इस शिव धनुष को उठाना तो दूर, हिलाने की भी किसी महाबली में हिम्मत नहीं होती थी। ये वही शिव धनुष था, जिसे सीता ने उठा कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर रख दिया था। इसी शिव धनुष को लेकर सीता स्वयंवर हुआ और उसकी प्रत्यंचा चढ़ा कर भगवान राम ने सीता के स्वयंवर में विजय हासिल की।ख्-भगवान परशुराम को भगवान विष्णु का छठा अवतार कहा जाता है। उन्होंने शिव की कठोर तपस्या कर उनसे शिव धनुष भी हासिल किया था। जब भगवान राम के सामने परशुराम आए तो उन्हें दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। उन्हें पता चला कि भगवान विष्णु का अगला अवतार हो चुका है इसलिए वे सीधे तपस्या करने हिमालय चले गए।
फ्-भगवान परशुराम त्रेतायुग के साथ द्वापरयुग में भी थे। परशुराम का जिक्र दोनों युग में मिलता है। त्रेतायुग (रामायण) में जहां भगवान परशुराम ने सीता स्वयंवर के बाद क्रोधित होकर भगवान राम को भी युद्ध करने की चेतावनी दे दी थी। वहीं द्वापरयुग (महाभारत) में भी इनका जिक्र मिलता है। भगवान परशुराम से ही देवव्रत मतलब भीष्म, पांडवों और कौरवों के गुरु द्रोणाचार्य के साथ कर्ण ने शिक्षा प्राप्त की थी। हालांकि कर्ण और भीष्म शिक्षा पाने वाले सिर्फ ऐसे दो शिष्य थे, जो ब्राह्मण नहीं थे। मालूम पड़ने पर परशुराम ने जहां भीष्म को ललकारा और युद्ध किया था। भीष्म को वे इच्छामृत्यु के वरदान के कारण नहीं हरा पाए थे। वहीं कर्ण को श्राप दिया था कि जरूरत पड़ने पर वह अपनी शस्त्रविद्या भूल जाएगा। ब्-परशुराम की माता का नाम रेणुका था। ऋषि जमदग्नि और रेणुका के पांच बेटे थे जिनमें परशुराम सबसे छोटे और आज्ञाकारी थे। परशुराम के अलावा रेणुका के अन्य चार पुत्र रुक्मवान, सुखेण, वसु, विश्वानस थे।भ्-परशुराम वैसे तो ब्राह्मण वंश के थे, मगर उनके कर्म क्षत्रिय वंश के रहे। राजा सहस्त्रार्जुन ने परशुराम के पिता जमदग्नि की हत्या कर दी। इससे क्रोधित परशुराम ने सहस्त्रार्जुन और उसकी सेना को अकेले खत्म कर दिया। परशुराम का गुस्सा यही नहीं खत्म हुआ। उन्होंने सहस्त्रार्जुन, उसके बेटे और पौत्र को खत्म करने के साथ ख्क् बार हहैयवंश को धरती से मिटा दिया। तभी परशुराम को जन्म से ब्राह्मण और कर्म से क्षत्रिय कहा जाता है।