बिना हथियार लड़ रहे इंसेफेलाइटिस से जंग
- वॉटर क्वालिटी टेस्टिंग के लिए जरूरी फील्ड टेस्टिंग किट ही मौजूद नहीं
- सिर्फ बैक्टेरिया की टेस्टिंग कर वॉटर क्वालिटी मॉनीटरिंग का हो रहा कोरम GORAKHPUR: ड्रिंकिंग वॉटर की प्योरिटी न सिर्फ गोरखपुर बल्कि देश की भी अहम समस्या है। दूषित पानी से लोगों को बीमारियां मिल रही हैं। गोरखपुर की बात की जाए तो दूषित पानी का सबसे अधिक असर मासूमों पर पड़ रहा है। खराब पानी की वजह से इंसेफेलाइटिस जैसी खतरनाक बीमारी लगातार पांव पसार रही है, जिससे बच्चे मौत की आगोश में पहुंच रहे हैं। बावजूद इसके पानी की क्वालिटी को बेहतर करना तो दूर इसकी जांच करने के लिए भी जिम्मेदारों के पास कोई इंतजाम नहीं है। सिर्फ बैक्टेरिया की जांच कर वॉटर क्वालिटी की रिपोर्ट भेज दी जा रही है। एफटीके किट ही नहींवॉटर क्वालिटी जांच के लिए फील्ड टेस्टिंग किट की जरूरत पड़ती है। इससे न सिर्फ बैक्टेरिया बल्कि कई केमिकल्स और एलिमेंट्स भी पानी में मौजूद हैं या नहीं, इसका पता चलता है। मगर गोरखपुर में ऐसा कोई किट ही नहीं मौजूद है, जिससे प्रॉपर वे में वॉटर क्वालिटी की जांच की जा सके। जांच के लिए यहां एच2एस वॉयल का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे सिर्फ बैक्टेरिया की ही जांच हो सकती है, बाकी पानी में कौन से केमिकल मौजूद हैं, इसकी जांच नहीं हो पाती।
जांच करने पर फील्ड में ही रिजल्ट एफटीके की बात करें तो इसकी खासियत यह है कि यह कम वक्त में एक्युरेट रिजल्ट प्रोवाइड करता है। इसको लेकर फील्ड में जाने वाले सर्वेयर्स वॉटर क्वालिटी की जांच तुरंत कर लेते हैं, जिसका रिजल्ट भी फौरन ही मिल जाता है। इसके अलावा इसमें फिजिकल, केमिकल और बैक्टेरियोलॉजिकल तीनों तरह के टेस्ट की सुविधा होती है, जिससे अलग-अलग किट लेकर मार्केट में नहीं जाना पड़ता है। बॉक्स एच2एस वॉयल से सिर्फ बैक्टेरिया की जांच सिटी में पेय जल स्वच्छता मिशन के तहत जो सर्वे कराया जा रहा है, उनके पास फील्ड टेस्टिंग किट अवेलबल ही नहीं है। इसकी वजह से सर्वेयर्स एच2एस वॉयल के थ्रू टेस्ट कर रहे हैं। इस मेथाड से टेस्ट करने में बैक्टेरिया की प्रेजेंस और एबसेंस का पता चलता है, जबकि वॉटर क्वालिटी मापने के लिए दिए पैमानों में यह सिर्फ एक प्वाइंट भर है। एच2एस वॉयल में नल से डायरेक्ट पानी कलेक्ट कर 24 घंटे के लिए छोड़ दिया जाता है। इसके बाद अगर उसमें बैक्टेरिया मौजूद रहते हैं, तो पानी का कलर चेंज हो जाता है। तीन तरह के होते हैं टेस्ट फिजिकल केमिकल बैक्टेरियोलॉजिकलवॉटर क्वालिटी के लिए मानक
फ्लोराइड - 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर आर्सेनिक - 0.01 मिलीग्राम प्रति लीटर नाइट्रेट - 50 मिलीग्राम प्रति लीटर आइरन - 0.3 मिलीग्राम प्रति लीटर रेसिडुअल क्लोरीन - 5 मिलीग्राम प्रति लीटर क्लोराइड - 250 मिलीग्राम प्रति लीटर अल्केलिनिटी - 200 मिलीग्राम प्रति लीटर बैक्टेरियोलॉजिकल - पीएच - 6.5 से 8.5 हार्डनेस - 300 मिलीग्राम प्रति लीटर ज्यादा होने पर क्या हो सकता है नुकसान फ्लोराइड - फ्लोरोसिस आर्सेनिक - पानी को जहरीला बनाता है। नाइट्रेट - मेथेमोग्लोबिमेनिया को बढ़ावा देता है। आइरन - इस्तेमाल के एडवर्स इफेक्ट, बैक्टेरिया को बढ़ावा देता है रेसिडुअल क्लोरीन - ऑर्गेनो क्लोरीन बनाता है, तो काफी खतरनाक हैं क्लोराइड - टेस्ट पर इफेक्ट, जंग अल्केलिनिटी - टेस्ट खराब हो जाता है। बैक्टेरियोलॉजिकल - पीएच - अफेक्ट म्यूकस मेंबरेन, मुंह कड़वा, जंग, एक्वेटिक लाइफ के लिए डेंजर हार्डनेस - पपड़ी बन जाती है वर्जनड्रिंकिंग वॉटर क्वालिटी में मानक से जरा भी डिफरेंस कोई प्रॉब्लम खड़ी कर सकता है। इसके लिए पानी की फील्ड टेस्टिंग किट के थ्रू प्रॉपर जांच की जाती है। जिसमें ड्रिंकिंग वॉटर के वह सभी मानक पूरे हो जाते हैं, जो वॉटर क्वालिटी जांच के लिए बेहद जरूरी होते हैं। यहां पर एफटीके के लिए सुझाव दिया गया था, मगर इसे क्यों नहीं भेजा गया, यह नहीं मालूम। वैसे कई प्राइवेट संस्थाओं और एनजीओ ने यह किट खरीद रखा है, जिसके थ्रू वह वॉटर क्वालिटी की जांच करते हैं।
- डॉ। गोविंद पांडेय, एनवायनमेंटलिस्ट/मेंबर, वॉटर क्वालिटी कंट्रोल प्रोग्राम ------- इंसेफेलाइटिस से मौत के आंकड़े