यूं कब तक करते रहेंगे खेतीबारी
- जेल में नहीं शुरू हो सके लघु उद्योग
- 10 एकड़ भूमि में सब्जी की खेती कर रहे बंदी GORAKHPUR : फिल्मों में जेल के बंदी काम करते हैं। कोई फर्नीचर बनाता नजर आता है तो कोई कढ़ाई-बुनाई में बिजी रहता है, लेकिन गोरखपुर जेल के बंदी सिर्फ मौज काट रहे हैं। उनके पास कमाई का कोई जरिया नहीं। जेल प्रशासन उनके खर्च का बोझ सरकारी बजट से उठा रहा है। जिला कारागार में उद्योग स्थापित न होने से यह नौबत आई है। जेल प्रशासन से लेकर गवर्नमेंट तक, इस मामले में गंभीर नहीं हुई। वरिष्ठ जेल अधीक्षक का कहना है कि एक बार प्रपोजल भेजा गया था जिसे गवर्नमेंट ने रिजेक्ट कर दिया। सिर्फ खेती किसानी के भरोसे गोरखपुर जेलगोरखपुर में करीब साढ़े 12सौ बंदी हैं। इनके पास सालभर का कोई रोजगार नहीं है। कुछ बंदियों को जेल की 10 एकड़ भूमि पर खेती करने में लगाया जाता है। जेल प्रशासन बंदियों की मदद से हर साल करीब पांच सौ कुंतल आलू उपजा रहा है। इसके अलावा मौसमी सब्जियां उगाई जा रही हैं, लेकिन उनका उत्पादन इतना नहीं होता कि बाजार में बेचकर लाभ कमाया जा सके। जेल से जुड़े लोगों का कहना है उद्योग-धंधे के अभाव में जेल सिर्फ खेती किसानी के भरोसे रह गई है। वर्ष 2014 में गोरखपुर से डेढ़ सौ कुंतल आलू जेल प्रशासन ने आजमगढ़ जेल को भेजा था।
मुख्यधारा में जोड़ने के लिए सिखाया जाता है काम प्रदेश की कई जेलों में बंदियों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने की कोशिश हो रही है। कामकाज के गुर सीखकर बंदी जेल से बाहर आने के बाद अपना रोजगार कर सकते हैं। लेकिन गोरखपुर जेल में बंदियों के ऐसा कोई इंतजाम नहीं हो सका जिससे वह कोई उद्योग धंधा लगा सकें। जेल अधिकारियों का कहना है कि जेल में किसी तरह का प्रोडक्शन होने पर उसका लाभ मिलता है। बंदी जहां खुद प्रोडक्ट से इनकम करते हैं। वहीं मार्केट में सामान बेचकर जेल प्रशासन अपने लिए खर्च जुटा लेता है। इन जेलों में यह है सुविधा केंद्रीय कारागार आगरा - साबुन, फिनायल, जूता, चप्पल, दरी बुनाई, सिलाई उद्योग बंदी वस्त्र बंदी रक्षक वर्दी केंद्रीय कारागार नैनी, इलाहाबाद - कंबल दरी, कपड़ा बुनाई, साबुन, फिनायल, फर्नीचर, लौह उद्योग, सिलाई उद्योग केंद्रीय कारागार बरेली - कंबल दरी उद्योग, फर्नीचर, लौह उद्योग, पेंट, सिलाई उद्योग, केंद्रीय कारागार वाराणसी - पीतल, स्टील बर्तन उद्योग, दरी, कपड़ा, बुनाई, सिलाई बुनाईकेंद्रीय कारागार फतेहगढ़ - तंबू उद्योग, रंगाई छपाई, निवाठ, लौह, काष्ठ, दरी, पावरलूम, सिलाई,
आदर्श कारागार लखनऊ - पावरलूम उद्योग, चादर, हस्त निर्मित कागज, प्रिंटिंग पे्रस, सिलाई उद्योग नारी बंदी निकेतन लखनऊ - कढ़ाई, बुनाई, सिलाई, मसाला पिसाई जिला कारागार उन्नाव - सिलाई उद्योग, बंदी, दरी उद्योग गवर्नमेंट ने लौटाया प्रपोजल, सिर्फ हो रही सिलाई पांच साल पूर्व जिला जेल में साबुन और फिनायल बनाने का उद्योग लगाने की बात शुरू हुई। तत्कालीन जेल अफसरों ने इसका प्रपोजल बनाकर यूपी गवर्नमेंट को भेजा, लेकिन गवर्नमेंट ने प्रपोजल लौटा दिया। इसके बाद दोबारा जेल में उद्योग लगाने के लिए कोई प्रयास नहीं हुए। जेल में 15 सिलाई मशीनों का इंतजाम किया गया है। महिला और पुरुष बंदियों के कपड़े और वर्दी सिलने में मशीन इस्तेमाल की जा रही है। सिलाई का काम जानने वाली बंदी ही अपनी क्षमता का उपयोग कर पा रहे हैं। जेल में सिलाई के सिवा कोई अन्य उद्योग धंधे की सुविधा मौजूद नहीं है। जेल की भूमि पर सब्जी की अच्छी पैदावार हो रही है। गोरखपुर से आजमगढ़ जेल के बंदियों के लिए आलू की सप्लाई की गई थी। जेल में अन्य उद्योग धंधों के लिए प्रयास किया जाएगा। एसके शर्मा, वरिष्ठ जेल अधीक्षक