पिछले 3 साल में कोई नहीं हुआ जिला बदर
- गुडवर्क के चक्कर में पुलिस बढ़ा रही बोझ
- डीएम कोर्ट में लंबित पड़े हैं चार सौ मामले द्दह्रक्त्रन्य॥क्कक्त्र : जिले में करीब चार सौ गुंडा एलीमेंट्स पुलिस के सिरदर्द बने फिर रहे हैं। पुलिस की लापरवाही ने जिले में गुंडों की संख्या बढ़ा दी है। विभिन्न मामलों में आरोप दर्ज होने पर पुलिस ने इनको गुंडा बनाया है, लेकिन इन पर लगाम कसने में पुलिस नाकाम हो रही। पैरवी के अभाव में गुंडा एक्ट की कार्रवाई के बावजूद बदमाश जिला बदर (तड़ीपार) नहीं हो पा रहे। सालों से पुलिस ने किसी गुंडे को तड़ीपार नहीं कराया। ऐसा हम नहीं, बल्कि पुलिस-प्रशासन के आंकड़े बता रहे हैं। अफसरों का कहना है कि गुंडा एक्ट के मामले में पैरवी की जाएगी। ताकि दोष सिद्ध कराकर संबंधित बदमाशों को तड़ीपार किया जा सके।वर्ष कुल मामलों की संख्या लंबित
देहात सिटी देहात सिटी 2012 306 361 222 324 2013 316 438 119 367 2014 264 275 115 285 नोट- 2014 के आंकड़े लभगभ में हैं. क्या हैं गुंडा एक्ट की कार्रवाईअपराध करके समाज में भय फैलाने वाले लोगों के खिलाफ गुंडा एक्ट की कार्रवाई की जाती है। पेशेवर अपराध में लिप्त लोगों के खिलाफ पुलिस चालानी रिपोर्ट भेजती है। ऐसा व्यक्ति जो कि अपराध करने का अभ्यस्त हो चुका हो, उसके खिलाफ कम से कम दो मुकदमे दर्ज हों। संबंधित थाना पर चालान बनाकर सीओ, एसपी और एसएसपी को फाइल भेजी जाती है। एसएसपी की संस्तुति पर फाइल डीएम के पास पहुंचती है। डीएम के कोर्ट में इस मामले में मुकदमा चलता है। दोष सिद्ध होने पर प्रशासन आरोपी को गुंडा एक्ट में जिला बदर यानि कि तड़ीपार करने का आदेश देता है। इसके तहत छह माह तक अभियुक्त अपने गृह जनपद में निवास नहीं कर सकता है। अपने जिले में आने-जाने के लिए उस पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है। जिला बदर किया गया अपराधी निर्धारित जिले में तय थाने पर रोजाना हाजिरी लगाता है। हैरत की बात है कि पिछले तीन साल से जिले में किसी के खिलाफ जिला बदर की कार्रवाई नहीं हुई।
पुलिस की लापरवाही ने पैदा किए गुंडेगुंडा एक्ट की प्रक्रिया का पुलिस दुरुपयोग करने लगती है। खेत-मेड़ के झगड़े, नाली पानी के विवाद सहित ऐसे मामलों में गुंडा एक्ट की कार्रवाई करती है जिनका आधार नहीं होता। कई बार पेशेवर बदमाशों के प्रभाव में पुलिस उन पर ध्यान नहीं देती। ऐसे में तमाम ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई हो जाती है जो मामूली विवादों से संबंधित होते हैं। उनका समाज में किसी पेशेवर अपराध से कोई लेना देना नहीं होता। चिलुआताल, गुलरिहा सहित अन्य थाना क्षेत्रों में इस तरह के मुकदमे विचाराधीन हैं। इस वजह से किसी भी क्रिमिनल को तड़ीपार नहीं किया जा सका। नियमानुसार किसी व्यक्ति पर गुंडा एक्ट लगाने के बाद पुलिस को कोर्ट में पैरवी करते हुए आरोपी को जिलाबदर (तड़ीपार) करवाना होता है। लेकिन पुलिस लापरवाही दिखाते हुए पैरवी नहीं करती, जिससे गुंडों की संख्या बढ़ती जाती है।
जनवरी से दिसंबर तक चिन्हित हुए 400 गुंडे एक जनवरी से लेकर दिसंबर मंथ तक 400 से ज्यादा लोगों को बतौर गुंडा चिन्हित किया गया। उनके खिलाफ जिले के विभिन्न थाना क्षेत्रों में आपराधिक मामले दर्ज हैं। उनके खिलाफ चालानी रिपोर्ट बनाकर पुलिस ने प्रशासन को भेज दी है। गोरखपुर जिले में कुल 26 थाना हैं। महिला थाना के अलावा अन्य 25 थाना क्षेत्रों में गुंडा एक्ट की चालानी होती है। सिटी के सभी थानों के मुकदमे डीएम और देहात से संबंधितमुकदमे एडीएम प्रशासन की कोर्ट में देखे जाते हैं।गुंडों पर लगाम नहीं, कर लिया कोरम पूरा
मामलों की पैरवी में लापरवाही से बदमाशों को फायदा मिलता है। कानूनी प्रक्रिया में खामियों का फायदा उठाकर अपराधी बच निकलते हैं। कई बार पुलिस अपना कोरम पूरा करने के चक्कर में बेवजह की कार्रवाई कर देती है। मामूली झगड़ों और विवादों में मुकदमा दर्ज करके गुंडा एक्ट की चालानी कर देती है। ऐसे में कई बार पीडि़त को हाईकोर्ट से राहत मिली है। गुलरिहा के सरहरी निवासी एक व्यक्ति के खिलाफ गंभीर अपराध का मुकदमा नहीं था, लेकिन पुलिस का विरोध करने की वजह से पुलिस ने उसको गुंडा एक्ट में चालान कर दिया। हाईकोर्ट में मामला पहुंचने पीडि़त को राहत मिली।