एक रुपए की बोहनी नहीं, लाखों की दुकान खंडहर
- हासूंपुर में 1999 में बनी थी 25 दुकानें
- आवेदन आने के बाद भी अभी तक नहीं हुए आवंटित - जीएमसी की लापरवाही से खंडहर बन गई दुकानेंGORAKHPUR: नगर निगम का काम मुंगेरी लाल के सपनों से कम नहीं है। वह ऐसे सपने दिखाता है, जो लाखों रुपए पानी में बहाने के बाद भी पूरा नहीं हो पाता। ऐसा ही कुछ सपना निगम ने 1999 में दिखाया था। इसमें हांसूपुर के पास 50 दुकानों के निर्माण कार्य की प्रक्रिया शुरू हुई, जो आज तक पूरी नहीं हो सकी। नतीजा यह रहा कि इन दुकानों से नगर निगम बोहनी भी नहीं कर सका और लाखों खर्च कर बनवाई गई दुकानें खंडहर हो गई। नगर निगम से जुड़े लोगों की मानें तो बर्फखाना से लेकर पशुराम मंदिर के कुछ पहले तक 50 दुकानों की योजना बनाई गई थी, जिसमें पहले चरण में 25 और दूसरे चरण में 25 दुकानें बनाई जानी थी।
जमीनी विवाद में फंसा पेंचदुकानों की निर्माण प्रक्रिया अभी शुरू नहीं हुई थी कि यह विवाद के घेरे में आ गई। नगर निगम की लगभग 20 फीट की जमीन रोड और कब्रिस्तान के बीच में पड़ती है। इसी जमीन पर 1999 में नगर निगम ने दुकान का निर्माण कार्य शुरू किया। एक दर्जन के लगभग दुकानें भी बन गई। मगर जब आवंटन शुरू हुआ तो कब्रिस्तान कमेटी की ओर से जमीन को लेकर मुकदमा दायर कर दिया गया है। इसके बाद दुकान बनाने के साथ ही इसके आवंटन की प्रक्रिया ठप हो गई। अभी तक यह मामला वैसे ही ठप पड़ा हुआ है।
सिटी को मिलता नया मार्केट हासूंपुर बर्फखाना एरिया की यह सारी दुकानें अगर चालू हो जाती, तो सिटी को एक नया मार्केट मिल जाता है। इस मार्केट की सबसे खास बात यह होती कि खुली जगह होने की वजह से यहां लोगों को घंटो जाम के झाम से नहीं जूझना पड़ता। नगर निगम के जेई नर्वदेश्वर पांडेय का कहना है कि अगर यह दुकानें बन गई होती, तो शायद यह सिटी का सबसे बड़ा फर्नीचर मार्केट होता। इस समय यहां पर जो भी दुकानदार हैं वह अवैध रूप से दुकान संचालित हो रही है। 50 लाख हुआ था खर्च1999 हासूंपुर बर्फखाना चौराहे पर 25 दुकानों का निर्माण कार्य शुरू हुआ। अभी लगभग एक दर्जन दुकानें बनी थी, तभी से यह विवादित हो गया। इसके बाद निर्माण कार्य ठप हो गया। नगर निगम सोर्सेज की माने तो जितनी दुकानें बनी हुई हैं, उस पर नगर निगम के लगभग 50 लाख रुपए के खर्च हुए थे। नगर निगम का यह पैसा अभी तक फंसा हुआ है। अगर यह दुकानें इस समय आवंटित हो जाती तो नगर निगम को उस समय से चार गुना अधिक पैसा और किराया मिलता।
नगर निगम प्रयास कर रहा है कि यह दुकानें चालू हो जाए। इससे नगर निगम का पैसा खाली हो सके और लोगों को भी राहत मिल सके। जल्द इन दुकानों की फाइल मंगाकर देखता हूं कि आखिर क्यों अभी तक दुकान चालू नहीं हो पाई है। राजेश कुमार त्यागी, नगर आयुक्त