शब्दों में पिरोकर लिख दी 'शहर की दास्तान'
- गोरखपुर में ही पहली बार महात्मा गांधी से हुए थे प्रभावित
- चार कहानियों में दिखता है गोरखपुर का अक्स GORAKHPUR: कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद का गोरखपुर से गहरा नाता है। उनकी एक-दो नहीं बल्कि चार कहानियां ऐसी हैं, जो गोरखपुर में रहने वालों के इर्द-गिर्द घूमती हैं। उन्होंने गोरखपुर की चंद हकीकत को अपने शब्दों में पिरोकर कहानी की शक्ल दे दी। इसके लिए यहां से चुने गए कैरेक्टर को अमर कर दिया, साथ ही हिन्दी कथा साहित्य में गोरखपुर का योगदान भी अविस्मरणीय रहेगा। आज गोरखपुर इस महान कथाकार को अपनी श्रद्धांजलि दे रहा है। रामलीला ने बनाई अलग पहचानमुंशी प्रेमचंद ने गोरखपुर के बर्डघाट में होने वाले रामलीला को शब्दों में पिरोकर लोगों के सामने पेश किया। जिससे लोगों के सामने आई उनकी सबसे प्रसिद्ध कहानी रामलीला। वहीं मुबारक खां शहीद दरगाह की दास्तान को उन्होंने 'ईदगाह' में जगह दी। वहीं उस भ्रष्टाचार पर चोट करते हुए लिखी कहानी 'नमक का दरोगा' भी राजघाट के पुल की दास्तां बयां करती है। मोहल्लों में घर-घर काम करने वाली काकी को अपने कहानी बुढ्ढी काकी के माध्यम से लोगों के सामने पेश किया।
गोरखपुर ने आजादी का बनाया योद्धामुंशी प्रेमचंद कहानी और उपन्यास के बादशाह थे। इसके साथ ही वह गोरखपुर में सहायक अध्यापक पद पर काम करते रहते हैं। गोरखपुर के साहित्यकार रविंद्र प्रसाद श्रीवास्तव जुगानी भाई का कहना है कि मुंशी प्रेमचंद के जीवन में गोरखपुर का बहुत अलग महत्व रहा है। उन्होंने बचपन में ही अपनी पहली कहानी लिखने के साथ ही साथ, आजादी की लड़ाई में अहम रोल प्ले किया। उन्होंने खुद को आजादी के योद्धा के रूप में तैयार किया। 1922 में महात्मा गांधी, बाले मियां के मैदान में आजादी के लिए भाषण दे रहे थे। उनके भाषण प्रभावित होकर मुंशी प्रेमचंद सरकारी नौकरी छोड़कर आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। यही नहीं गोरखपुर में ही वह उनको पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।