सोशल मीडिया पर चाइनीज सामान का बहिष्कार, हकीकत में कुम्हार लाचार
- दिवाली पर भी कुम्हारों के नहीं बहुरे दिन, दीयों की बिक्री में 10 फीसदी गिरावट
- चाइनीज सामानों के विरोध वाले मैसेज सोशल साइट तक, बाजार पर कोई खास असर नहीं GORAKHPUR:सीमा पर जाकर सर्जिकल स्ट्राइक की कार्रवाई किए जाने के बाद सोशल साइट्स पर चाइनीज सामानों के विरोध वाले मैसेज की बाढ़ सी आ गई थी। इन मैसेज को देखकर व्यापारी भी आशंकित हो गए थे लेकिन दिवाली के मार्केट को देखा जाए तो यही लगता है कि लोग स्वदेश की मिट्टी के दीये से ज्यादा चाइना के झालरों को ही तरजीह दे रहे हैं। कुम्हार बताते हैं कि दो दशक में ही दीये की मांग में दस फीसदी तक की गिरावट आई है। वहीं दुकानदारों की मानें तो सजावटी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के मार्केट में 10 फीसदी तक बढ़ोत्तरी हुई है। सिटी में दीयों का मार्केट जहां लाखों में सिमट गया है वहीं सजावटी बल्ब, झालर का मार्केट करोड़ों रुपए में है।
बदल रही सोच का नतीजासिटी हो गया रूरल एरिया, लोगों की सोच धीरे-धीरे बदल रही है। अब लोग उन चीजों को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं जिन्हें हैंडल करना आसान है और जो ज्यादा अट्रैक्ट करती हैं। मिट्टी के दीयों को बाजार से घर लाने में सावधानी बरतनी पड़ती है। वहीं एक-एक दीये में तेल डालना, बत्ती सजाना और फिर एक-एक दीये को जलाना लोगों को काफी जटिल लगने लगा है। वहीं इलेक्ट्रॉनिक बल्ब व झालर से घर को सजाना तो आसान होता ही है, एक ही स्विच से पूरा घर रोशन हो जाता है। लोग क्या करना सही है, क्या सुविधाजनक है पर ध्यान दे रहे हैं।
60-70 रुपए में 100 दीये ऐसा भी नहीं है कि मार्केट में इलेक्ट्रॉनिक उपकरण दीयों से सस्ते हैं। जहां महंगाई के बाद भी 60 से 70 रुपए में 100 दीये मिल जा रहे हैं वहीं इलेक्ट्रॉनिक उपकरण काफी महंगे हैं। मिट्टी के दीये बनाने वाले कुम्हारों का कहना है कि लागत बढ़ने के साथ दीये का दाम तो बढ़ा है लेकिन इसकी डिमांड कम होने के कारण इससे घर चलाने भर के लिए भी आय नहीं हो पा रही। मामूली बढ़े दाम, फिर भी नहीं डिमांडचौरहिया गोला में मिट्टी के दीये बनाने वाले मोतीलाल प्रजापति बताते हैं कि दस साल में मिट्टी के दीये का मूल्य सिर्फ 15 फीसदी तक बढ़ा है जबकि बाकी सामानों के दाम आसमान छू रहे हैं। मजदूरी भी कई गुनी बढ़ गई लेकिन कुम्हारों के दीये की कीमत लोग हमेशा कम ही लगाते हैं। वे बताते हैं कि वर्ष 2000 में दीये की कीमत 30 से 40 रुपए सैकड़ा थी जो 2005 तक रही। 2005 में एक बार दीये का मूल्य बढ़ा और 50 रुपए सैकड़ा हुआ। इस साल दाम फिर 10 से 20 रुपए की बढ़ोत्तरी हुई है। 60 से 70 रुपए सैकड़ा दीया मार्केट में बिक रहा है। वहीं फूटकर मार्केट में दीये का मूल्य 80 से 90 रुपए सैकड़ा है।
बॉक्स आबादी 13 लाख, दीये 10 लाखनगर निगम की मानें तो गोरखपुर सिटी में कुल 1 लाख 29 हजार घर हैं। जिनमें कुल 12 से 13 लाख लोग रहते हैं। दिवाली पर इन घरों को सजाने के लिए बड़ी मात्रा में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और मोमबत्तियों का उपयोग किया जाता है। बता दें कि दीये के लिए सबसे बड़ा मार्केट बक्शीपुर, असुरन चौराहा और कूड़ाघाट है। बक्शीपुर के विजय जायसवाल का कहना है कि दिवाली के समय बक्शीपुर से लगभग 80 हजार दीये बिकते हैं। इस तरह देखा जाए तो सिटी में 10 लाख भी दीये दिवाली पर सिटी में नहीं बिक पा रहे। वहीं कोतवाली रोड पर झालर बेचने वाले असलम रज्जाक का कहना है कि दशहरा से लेकर दीवाली के बीच 10 से 15 लाख रुपए का मार्केट केवल उनके वहां होता है। जबकि कोतवाली रोड पर 100, माया बाजार रोड पर 100, शाहमारूफ में 80 के लगभग थोक व्यापारी हैं। यदि इन सबका दिवाली का व्यापार जोड़ दिया जाए तो व्यापार करोड़ों में पहुंच जाएगा।
मिट्टी के दीये के फायदे - मिट्टी का दीया समय के साथ खुद समाप्त हो जाता है। - इसे जलाने से कोई अधिक हानिकारक गैस नहीं निकलती। - बरसात के मौसम में निकले हानिकारक कीट दीये की रोशनी से आकर्षित होकर उसमें जलकर समाप्त हो जाते हैं। - दीये का सौंदर्य प्राकृतिक होता है। - दीये से कई गरीब परिवारों का भरण-पोषण होता है। मिट्टी के बर्तन के मार्केट - बक्शीपुर - हड़हवा फाटक - हुमायूंपुर - हांसूपुर - बसंतपुर - साहबगंज - अलहदादपुर तिराहा - शाहपुर - असुरन - पादरी बाजार - मोहद्दीपुर - कूड़ाघाट - राजेंद्र नगर बोले कुम्हार दीपावली से लेकर छठ तक मिट्टी के बर्तनों की डिमांड रहती हे। दिवाली के लिए हम लोग दीये बनाते हैं वहीं ऑफ सीजन में मूर्ति बनाने का काम करते हैं। अब मिट्टी के बर्तन बनाने में कोई फायदा नहीं रह गया है। ओमप्रकाश प्रजापति, कुम्हार, बक्शीपुरमिट्टी के बर्तन का मार्केट अब बड़ा नहीं रह गया है। लोग बहुत जरूरी होने पर ही दीये का बर्तन खरीदते हैं। दिवाली पर भी ज्यादातर पूजा के लिए ही मिट्टी के बर्तन की डिमांड रहती है। पहले हम लोग दिवाली के बर्तन तीन माह पहले से बनाना शुरू करते थे लेकिन अब डिमांड कम होने से एक माह पहले बनाना शुरू करते हैं।
सतीश प्रजापति, कुम्हार, बक्शीपुर बोले दुकानदार मार्केट में दिवाली पर घर सजाने वाले उपकरणों की खासी डिमांड है। सुबह से लेकर शाम की कौन कहे देर रात तक मार्केट में रौनक बनी रह रही है। पिछले साल से 10 प्रतिशत अधिक का मार्केट है। - अवधेश गुप्ता, व्यापारी, इलेक्ट्रिकल सामान, कोतवाली रोड मार्केट में जबरदस्त रौनक है, स्थिति यह है कि पिछले 10 दिन से दोपहर को लंच करने का समय नहीं मिल रहा है। चाइनीज झालरों और इलेक्ट्रानिक सामानों की जबरदस्त मांग है। लोग पूछ रहे हैं कि मार्केट में नया क्या आया है। - मेहताब आलम, व्यापारी, इलेक्ट्रिकल, कोतवाली रोड बोले कस्टमर्स घरों में दीया तो जलाते ही हैं लेकिन छत पर तो झालर ही लगाते हैं। एक बैट्री से जोड़कर पूरी रात छोड़ दिया जाता है, झालर से घर जगमग रहता है। दीये में तेल डालने के लिए बीच-बीच में जगना पड़ेगा। वीरेंद्र, कस्टमर दीया तो केवल शुभ के लिए ही जलाते हैं। बाकी तो झालर ही सही रहता है। दीया जलाने के लिए बहुत परेशानी होती है, चाइनीज झालर से सबसे अधिक फायदा यह होता है कि एक बार जलाकर छोड़ देने पर फिर उसे टच करने की जरूरत नहीं होती। प्रमोद पासवान, कस्टमर