ऐसे तो मंडी की पहचान बन जाएगी गंदगी और बदबू
- पूर्वाचल की मेन मंडी महेवा में सुविधा के नाम पर कुछ नहीं
- दूर-दराज से हजारों लोग आते हैं डेली खरीदारी करने - खुले नाले, फैली गंदगी, टूटे चैंबर, आवारा जानवर बने पहचानGORAKHPUR : पूर्वाचल की अहम मंडी महेवा की पहचान अब सब्जी, फल या गल्ला से नहीं है, बल्कि अब गंदगी और बदबू इसकी पहचान बन रही है। विभाग की लापरवाही ने पूरी मंडी की पहचान को ही बदल दिया है। दुकानों का प्लास्टर टूट रहा है और पूरी मंडी में गंदगी का अंबार लगा है। मेनहोल खुले हैं तो नाले के चैंबर टूटे पड़े हैं। आवारा जानवरों का आतंक है। व्यापारियों का ध्यान व्यापार करने से अधिक खुद को सेफ रखने में रहता है। डेली खरीदारी करने आने वाले हजारों लोगों में से कोई न कोई घायल जरूर होता है। कारण कभी आवारा जानवर होते हैं तो कभी सड़कों पर पड़ी सिल्ट, नाले का पानी, बेकार सब्जी-फल, या खुले चैंबर। कई बार कंप्लेन के बावजूद न तो मंडी प्रशासन की नींद खुल रही है और न ही जिला प्रशासन की।
क्0 जिलों से अधिक जगह जाता है सामानगोरखपुर नहीं बल्कि आसपास के क्0 जिलों के अलावा बिहार तक यहां की सब्जी, फल, गल्ला जाता है। शासन की नई योजना के तहत महेवा में नई मंडी बनाई गई थी। यह मंडी करीब क्7 एकड़ में फैली है। यहां सब्जी, फल, आलू, गल्ला समेत सभी चीज की अलग-अलग मंडी है। मंडी खुलने के साथ अनेक तरह की सुविधा देने की बात कही गई थी, मगर आज तक कुछ भी नहीं है। सफाई की जिम्मेदारी नगर निगम की है। महीनों से झाड़ू नहीं लगी और सालों से नालों की सफाई नहीं हुई। दुकान के बाहर बजबजाती नाली और सिल्ट है। दुकानों में रिपेयरिंग की जिम्मेदारी मंडी प्रशासन की है, मगर हकीकत ये है कि दुकान बनने के बाद दोबारा कभी रिपेयरिंग नहीं हुई जिसका नतीजा गिरता हुआ छत का प्लास्टर है। आवारा जानवरों को रोकने के बारे में शायद अब तक किसी ने सोचा भी नहीं है। हालांकि ये प्रॉब्लम ऐसी है जिसके बारे में मंडी के व्यापारी कई बार कंप्लेन कर चुके हैं, विरोध कर चुके हैं, मगर नतीजा जीरो है।
मंडी में गोरखपुर ही नहीं बल्कि आसपास के क्0 जिलों के साथ-साथ बिहार से भी हजारों लोग डेली आते हैं। यह सबसे बड़ी मंडी है, मगर लगातार हो रही अनदेखी से सभी परेशान हैं। पहले मंडी को कम स्पेस मिला और अब अन्य सुविधाएं भी छिनती जा रही हैं। कई बार विरोध किया, मगर समस्या से छुटकारा नहीं मिला।
फिरोज अहमद राईन, सेक्रेटरी, थोक आलू-प्याज विक्रेता एसोसिएशन गोरखपुर मंडी में स्पेस बहुत कम है। प्रदेश के अन्य जिलों में मंडियां करीब भ्0 एकड़ में फैली है, जबकि गोरखपुर में महज क्7 एकड़ में है। इससे परेशानी अधिक है। गंदगी की समस्या बड़ी है। जल्द इसे दूर किया जाएगा। रिपेयरिंग के लिए प्रस्ताव भेजा गया है। एमसी गंगवार, डिप्टी डायरेक्टर, मंडी