मैं दो पैरों वाला जानवर हूं साहब ..
- यूपी रोडवेज की बसों में जीव जंतुओं के आवाज निकालकर बब्बन करता है अपने परिवार का भरण-पोषण
- सरयू के घाट पर जीव-जंतुओं की आवाज निकालने की सीखी है कलाGORAKHPUR: लखनऊ जाने के लिए रोहित अपनी फैमिली के साथ गोरखपुर डिपो की बस में बैठ ही रहे थे कि अचानक से उन्हें कुत्ते, बिल्ली और बंदर की आवाज सुनाई देने लगी। जान बचाने के लिए बस के भीतर वह इधर-उधर देखने भी लगे, लेकिन उन्हें कोई जानवर नजर नहीं आया। फिर मंद मुस्कान के साथ एक शख्स खड़ा हुआ और उसने अपने हुनर को दोबारा पेश किया। इस पर लोग काफी हैरत में पड़ गए। यह शख्स हैं बब्बन, जोकि एक ही सुर में कई जानवरों की आवाजें निकालकर लोगों को चौंका देते हैं। बब्बन की मानें तो वह ऐसा किसी को डराने के लिए नहीं, बल्कि अपने परिवार के भरण पोषण के लिए पिछले कई साल से काम करते आ रहे हैं।
निकाल लेते हैं 80 जानवरों की आवाज यूपी रोडवेज गोरखपुर डिपो परपिछले 20 साल से पिपराइच क्षेत्र के करमइनी गांव का रहने वाला बब्बन बेहद गरीब परिवार से है। उसकी तीन लड़कियां और एक बेटा है। महंगाई की मार से जहां दो जून की रोटी के लिए परिवार को एक वक्त भूखे सोना पड़ता है। वहीं बब्बन के घर लौटने के बाद परिवार का पेट भरता है। वह अपने परिवार का पेट पालने के लिए लगभग 80 जीव-जंतुओं के आवाजें निकालकर यात्रियों का टाइमपास करते हैं, इसके एवज में पैसेंजर्स उन्हें कुछ पैसा दे देते हैं, जिससे उसका परिवार का गुजारा होता है।
सरयू के घाट पर सीखी थी कला बब्बन बताते हैं कि उनके पिता स्व। रशीद शाह भी यहीं काम करते थे। वे 146 जीव-जंतुओं की आवाजें निकालते थे। उन्हीं से बब्बन ने भी यह कला सीखी। वे बताते हैं कि जीव-जंतुओं की आवाज निकालना पहले उनके पिता ने फिर उन्होंने आयोध्या से सरयू घाट पर सीखी। जिससे उसका परिवार का भरण पोषण हो रहा है। बब्बन की मानें तो पिता ने इस कला की मदद से मुझे बड़ा किया। उनके इन गुणों को मैने बरकार रखने के लिए मैनें भी यह कला सीखी। ताकि बच्चों को मिल सके अच्छी शिक्षाबब्बन बताते हैं कि मंहगाई ने दोहरा काम करने के लिए मजबूर कर दिया है। खाने-खिलाना तो है ही साथ ही बच्चों की पढ़ाई भी करानी है। ऐसे में उन्हें एक्स्ट्रा काम करना ही पड़ता है। बब्बन की मानें तो इस रफ्तार भरी जिंदगी साथ अपने इकलौते बेटे को कदमताल कराने के लिए वह मेहनत कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि बस में बैठे यात्रियों को इस तरह से अपने कला का प्रदर्शन कर उनसे जो कुछ मिल जाता है, उससे बच्चे की फीस जमा कर देते हैं। तीन बेटियां हैं उन्हें भी अच्छी शिक्षा दिलाना मकसद है। कुत्ते और बंदर के आवाज से न सिर्फ बच्चे प्रसन्न होते हैं, बल्कि उनके साथ के मम्मी और पापा भी इस कला की तारीफ करते हैं। बदले में 5-10 रुपए मिल जाते हैं। कई बार रोडवेज के अधिकारियों ने इस कार्य के लिए मेरी प्रशंसा भी कर चुके हैं।