Gorakhpur News : आखिर क्यों आता है 'भगवान' को गुस्सा, बीआरडी में बार-बार क्यों हो रहीं मारपीट की घटनाएं?
गोरखपुर (ब्यूरो)।बेहतरीन पढ़ाई कर इस मुकाम तक पहुंचने वाले आखिर किस वजह से अभद्र हो जाते हैं। दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने इसके पीछे की असल वजह जानने की कोशिश की तो वजह निकलकर आई वर्क प्रेशर। बीआरडी के ज्यादातर जूनियर रेजिडेंट्स को सीनियर्स की उदासीनता के बीच लगातार 36 घंटे तक ड्यूटी करनी पड़ती है। उन्हें पढ़ाई से लेकर प्रैक्टिकल तक में बैलेंस बनाने की टेंशन अलग झेलनी पड़ती है। ऊपर से मरीजों का ओवरलोड उनका शेड्यूल और भी हेक्टिक बना देता है।पढ़ाई के साथ ड्यूटी का भी बोझ
बीआरडी में गोरखपुर सहित नेपाल, बिहार व आसपास जिलों से भी बड़ी संख्या में लोग इलाज कराने आते हैं। यहां ड्यूटी करने वाले डॉक्टर्स और जूनियर रेजिडेंट्स पर काम के बोझ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां 40 से 50 मरीजों पर एक डॉक्टर है। इसमें भी ज्यादातर विभागों में जूनियर और सीनियर रेजिडेंट्स ही ड्यूटी पर तैनात रहते हैं। घंटों तक चलने वाली ड्यूटी के बीच ही इन लोगों को अपनी रेगुलर पढ़ाई के साथ ही प्रैक्टिकल की तैयारियों को भी बैलेंस करके चलना होता है। एक सीनियर रेजिडेंट ने बताया कि ज्यादातर समय उन लोगों के जिम्मे ही ओपीडी देखने से लेकर इमरजेंसी में मरीजों को भर्ती करना आदि जिम्मेदारियां होती हैं। इसी में जो वक्त बचता है उसमें अपनी पढ़ाई करते हैं, जिससे अच्छे माक्र्स आ सकें।डॉक्टर्स की कमी, रेजिडेंट्स के भरोसे व्यवस्थाबीआरडी मेडिकल कॉलेज में कंसलटेंट डॉक्टर्स बेहद कम हैं। यहां करीब 1750 बेड हैं, जिनपर वर्तमान में करीब 1200 से 1300 मरीज भर्ती हैं। 40 बेड के वार्ड में 49 से 50 मरीज भर्ती किए गए हैं। डॉक्टर्स की कमी होने के बावजूद बीआरडी जूनियर और सीनियर रेजिडेंट्स के भरोसे ही चल रहा है।सीनियर डॉक्टर्स का रवैया भी वजहरेजिडेंट्स के जरा-जरा सी बात पर आपा खो देने के पीछे यहां के विभागों की जिम्मेदारी निभाने वाले सीनियर डॉक्टर्स का रवैया भी जिम्मेदार है। जूनियर से लेकर सीनियर रेजिडेंट्स तक सभी ने दबी जुबान में सीनियर्स की उदासीनता को जूनियर डॉक्टर्स के शॉर्ट टेंपर की असल वजह बताया। नाम ना छापने की शर्त पर एक जूनियर रेजिडेंट ने बताया कि कई सीनियर डॉक्टर मरीजों को रेजिडेंट्स के भरोसे छोड़ खुद ड्यूटी से गायब रहते हैं, जिसके चलते कई मौकों पर रेजिडेंट्स को 36-36 घंटे तक लगातार ड्यूटी करनी पड़ती है। ऐसे में साफ है कि वर्क लोड इन लोगों को चिड़चिड़ा बना रहा है, जिससे वे हमेशा प्रेशर और तनाव में रहते हैं।
बीआरडी में डॉक्टर बीआरडी मेडिकल कॉलेज के नेहरू चिकित्सालय में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या अधिक है। ऐसे में जूनियर डॉक्टर्स मरीजों का इलाज करते हैं, उनकी कोशिश रहती है कि मरीज पूरी तरह से ठीक हो जाए, लेकिन बार-बार अटेंडेंट बदलने से प्रॉब्लम होती है। डॉ। राजेश कुमार राय, एसआईसी नेहरू चिकित्सालय बीआरडी बीआरडी में हुई घटनाएं - 5 अप्रैल 2023 को मेडिसीन वार्ड में मरीज के साथ आए अटेंडेंट को जूनियर डॉक्टर ने पीटा। - 1 मार्च 2023 को मेडिसीन वार्ड में एक मरीज के अटेंडेंट और जूनियर डॉक्टर्स के बीच हाथापाई से हंगामा हो गया। पुलिस ने मामले को कराया शांत। - 4 फरवरी 2023 देवरिया के मदनपुर निवासी शैला देवी का इलाज चल रहा था। अपने रिश्तेदार को देखने आए दिव्यांग को जूनियर डॉक्टर्स ने पीट दिया। वीडियो वायरल होने पर पुलिस ने की कार्रवाई। - 29 अक्टूबर 2022 को पिपराइच के घनश्याम राजभर ने डॉक्टर्स पर मरीज के इलाज में लापरवाही का आरोप लगाया तो जूनियर डॉक्टर्स ने उनकी पिटाई कर दी। - 4 अगस्त 2022 को सिद्धार्थनगर के युवक ने मरीज के इलाज में लापरवाही का आरोप लगाया तो जूनियर डॉक्टर्स ने उसे पीट दिया।- 2 अगस्त 2022 को सहजनवां निवासी कुंवर को एक्सपायर ब्लड चढ़ा दिया गया। जब उन्होंने इसका विरोध किया तो उनकी डॉक्टर्स ने पिटाई कर दी। - 21 अगस्त 2021 को जूनियर डॉक्टर एक व्यक्ति की पिटाई कर रहे थे। उनकी बेटी जब इसका वीडियो बनाने लगी तो जूनियर डॉक्टर्स ने युवती की भी पिटाई की।- 25 जुलाई 2019 को मेडिसीन वार्ड नंबर 9 में भर्ती रामदुलारे को जूनियर डॉक्टर्स ने दौड़ाकर पीटा। 12 जुलाई 2019 की इलाज के दौरान आनंद कुमार चौरसिया की मौत हो गई। परिवार के लोगों ने दोबारा जांच की मांग की तो जूनियर डॉक्टर्स ने दौड़ाकर पीटा।- 22 अप्रैल 2029 को इलाज के दौरान अंशु नामक मरीज की मौत हो गई। परिजनों ने लापरवाही का आरोप लगाया तो डॉक्टर्स ने परिवार के लोगों को पीट दिया।- 6 सितंबर 2019 को सर्जरी वार्ड नंबर 4 में भर्ती मरीज आकांक्षा के पिता कोमल को जूनियर डॉक्टर्स ने पीटा था।- 12 सितंबर 2018 को मेडिसीन वार्ड में भर्ती मरीज को देखने आई देवरिया की महिला को डॉक्टर्स ने पीटा था।- 8 नवंबर 2018 को ट्रामा सेंटर में भर्ती मरीज खुशबू के परिवार के लोगों को जूनियर डॉक्टर्स ने पीटा था।
कंसलटेंट डॉक्टर - 70सीनियर रेजीडेंट - 30जूनियर रेजीडेंट - 80एमबीबीएस प्रथम, द्वितीय, तृतीय वर्ष के स्टूडेंट - 500इंटर्नशिप करने वाले डॉक्टर - 50बीआरडी में बेड - 1750प्रतिदिन ओपीडी की संख्या - 5000प्रतिदिन इमरजेंसी में भर्ती होने वाले मरीज - 300मेडिकल कॉलेज के विभिन्न वार्ड में भर्ती मरीज-1200-1300 रेजिडेंट्स पर इन कामों का बोझ- रिसर्च का वर्क- ओपीडी के मरीजों को देखना- इमरजेंसी केस वाले मरीजों को भर्ती करना- पोस्ट ऑपरेटिव मरीजों को भर्ती करना- कंसलटेंट के साथ वार्ड का राउंड लेना- क्लीनिकल, रिसर्च, थीसीस, मरीजों का इलाज, सेमिनार, प्रेजेटेंशन आदि का वर्क लोड - वार्ड मैनेज करना- आईसीयू, ट्रॉमा सेंटर में आने वाले मरीजों कों देखना- मेडिकोलीगल करना
दूरदराज से पेशेंट्स के साथ अटेंडेंट आते हैं। वह कई बार एक ही सवाल पूछते हैं और बार-बार उसका उत्तर देना होता है। साथ ही वर्क का सबसे अधिक दबाव होता है। मरीज के अटेंडेंट चाहते हैं कि उनका इलाज तत्काल हो जाए, लेकिन जब तक जांच रिपोर्ट नहीं मिलती तब तक इलाज करना असंभव होता है। लोगों को समझना चाहिए। हमारी पहली प्राथमिकता मरीज की जान बचाना है। अगर हमारे ऊपर भरोसा किया जाए तो मरीज को फायदा होगा। मगर अटेंडेंट कुछ भी समझना नहीं चाहते हैं। यदि सभी से मरीज को ब्लड देने की बात की जाती है तो वह मौके से भाग खड़े होते हैं। इसके बाद हमें खुद ब्लड उपलब्ध कराना होता है। अटेंडेंट के बार-बार पूछने पर गुस्सा आता है। डॉक्टर्स की ड्यूटी निर्धारित की जाए। एक पेशेंट के साथ दो ही अटेंडेंट को उनके साथ रहने की अनुमति दी जाए। साथ ही डॉक्टर्स के मनोरंजन की व्यवस्था की जाए। डॉ। पल्लवी सिंह सबल, वाइस प्रेसिडेंट जेआर बीआरडी डॉक्टर्स से हमेशा धैर्य की उम्मीद की जाती है, लेकिन काम का जरूरत से ज्यादा बोझ उन्हें भी चिड़चिड़ा बना सकता है। बीआरडी मेडिकल कॉलेज के रेजिडेंट्स भी इसी समस्या से जूझ रहे हैं। वे काम के बोझ के तले दबे होते हैं। दूसरों को कैसे समझाएं। इसलिए शब्दों का चयन ठीक से नहीं कर पाते। यही वजह है कि जरा-जरा सी बात पर उन्हें गुस्सा आ जाता है। डॉ। अमित शाही, मानसिक रोग विशेषज्ञ