तुम साथ हो जब अपने..
- हर मुश्किल घड़ी में दिया पत्नी का साथ
- घर से लेकर आउटडोर तक, सब कुछ संभाला इनके मि। राइट नेद्दह्रक्त्रन्य॥क्कक्त्र : बरसों से एक कहावत सुनते आ रहे हैं, 'हर कामयाब पुरुष के पीछे एक महिला होती है.' बीतते वक्त के साथ ये कहावत जरा धुंधली हो चली है। अब कहावत का मजमूं कुछ यूं हो चला है, 'हर कामयाब महिला के पीछे एक पुरुष होता है.' ये कहावत यूं ही नहीं बदली, इसे बदलने के लिए हमारी मेल डॉमिनेटेड सोसायटी के लिए कुछ पुरुषों ने काफी मेहनत की है। अपने हमसफर को सफल बनाने के लिए उन्होंने किचन से लेकर बच्चों तक की जिम्मेदारी उठाई। अपने सपनों को कुचला ताकि उनकी पत्नी अपने सपने पूरे कर सके। हर दुख सहा मगर चुपचाप जिससे उन्हें खबर न हो जिनके लिए वो ये सब कर रहे थे और फिर वो दिन भी आया, जब सबकुछ उनके कदमों में था। वो खुशियां जिनके लिए उन्होंने ढेरों कुर्बानियां दीं। वो सब जिसके लिए वो कई रात सोये नहीं। वो मुस्कान जिसे देखने के लिए उन पुरुषों ने सबकुछ न्योछावर कर दिया। इस विमंस डे पर उन महिलाओं की कहानी, जिनकी सफलता के पीेछे है किसी पुरुष का हाथ।
तुम्हीं मेरे मंदिर, तुम्हीं मेरी पूजाकूड़ाघाट में रहने वाली गायनकोलॉजिस्ट डॉ। रीता मिश्रा जब बीएससी कर रही थीं, तभी उनकी शादी हो गई। आंखों में डॉक्टर बनने का सपना छिपाए रीता ससुराल आ गई। बीएससी की पढ़ाई के दौरान ही रीता मां बन गई। बीएससी कंप्लीट करते के बाद रीता ने मेडिकल एंट्रेस की तैयारी शुरू की। पति डॉ। बीपी मिश्रा सपोर्टिव थे लिहाजा सेलेक्शन हो गया, लेकिन असल दिक्कत तो सामने खड़ी थी। रीता के सामने चुनौती थी कि वे अपने बच्चे की परवरिश करें या एमबीबीएस की पढ़ाई करें। ऐसी टफ सिचुएशन में उनके पति ने बखूबी उनका साथ निभाया और रीता से कहा कि बाकी सारी टेंशन छोड़ दो, बस अपने सपने पूरे करो। फिर तो समय को जैसे पंख लग गए, साढ़े पांच साल की पढ़ाई कब खत्म हो गई, पता ही नहीं चला। हालांकि रीता बताती हैं कि उन्हें सबकी चिंता सताती थी, छोटा बेटा है, पता नहीं कैसा होगा, कैसे उसकी सारी जिम्मेदारी उठाई जा रही होगी, लेकिन अपने पति पर उन्हें भरोसा था। उन्हें यकीन था कि जो उनके सपने पूरे करने के लिए इतना बड़ा डिसीजन ले सकता है, वो एक बच्चे के लिए मां-बाप, दोनों का रोल अदा कर सकता है। एमबीबीएस कंप्लीट होने के बाद डॉ। रीता का डीजीओ में सेलेक्शन हो गया, लेकिन टेंशन फिर सामने थी। डीजीओ की पढ़ाई के लिए डॉ। रीता को कम से कम दो साल और पढ़ने थे। नाजुक मोड़ पर डॉ। रीता के पति डॉ। बीपी मिश्रा ने फिर हौसलाअफजाई की और बाकी सारी जिम्मेदारियों अपने सिर ले लीं। ससुरालवालों ने भी पूरा साथ दिया। डॉ। रीता अपने पति की तारीफ करते नहीं थकतीं। वो कहती हैं कि मेरी पढ़ाई की खातिर इन्होंने अपनी एमडी की पढ़ाई छोड़ दी। शायद ही कोई हसबैंड अपने पत्नी की सफलता के लिए इतनी मेहनत करेगा, इसीलिए तो इन्हें देवता की तरह पूजती हूं।
संग संग यू चलूं तेरे जैसे तेरा आसमांमहीनों कोख में रखकर पालने के बाद तीन प्रीमैच्योर बेबीज में से दो को खोकर रुचि अरोड़ा पूरी तरह टूट चुकी थीं। ये उनके लिए किसी सदमे से कम नहीं था। रुचि काफी टेंशन में थी। दिन रात आंसुओं में ही गुजरते थे। जो कुछ भी उन पर गुजरी थी, उसका उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था। वो धीरे-धीरे डिप्रेशन की ओर बढ़ती जा रही थीं। ऐसे में रुचि के पति मोहित अरोड़ा ने उन्हें डिप्रेशन से निकाला। उन्हें समझाया कि जो होना था, वो हो गया। उन्होंने रुचि के मन में जीने की आस जगाई। रुचि की जिंदगी के नए रंग भरे। रुचि की उदासी देख मोहित ने किड्स कैंप स्कूल खोला। मोहित का मानना था कि इससे रुचि का मन अपने दुख से हटेगा और बच्चों की खुशियों में वो अपनी खुशी ढूंढ लेंगी। उनकी खिलखिलाहट के साथ रुचि भी खिलखिला उठेंगी और हुआ भी यही, नन्हें मुन्ने बच्चों के बीच रुचि ने जीने की वजह ढूंढ ली थी। बच्चों को बेहतर एजुकेशन देना अब उनकी जिंदगी का मकसद है। रुचि मानती हैं कि मोहित ने बड़े गुपचुप तरीके से उनकी पूरी जिंदगी को संभाल लिया। दो बच्चों को खोने के बावजूद मोहित ने न खुद हिम्मत हारी और न रुचि को हारने दी। मोहित ने अपने बेटे मानव की बखूबी परवरिश की और रुचि को भी संभाला। रुचि तो यहां तक कहती हैं कि आज वो जो कुछ भी हैं, बस अपने पति मोहित की बदौलत।
फिक्र क्यों करती हो, मैं हूं नाबेसिकली गुजरात से बिलांग करने वाली हीरल अग्रवाल अपनी सक्सेस का सारा क्रेडिट अपने पति अमित अग्रवाल हो देती हैं। अलीनगर में रहने वाली हीरल शादी के बाद गोरखपुर आई। पतिदेव खाने-पीने के शौकीन थे, इसलिए हीरल नई-नई डिशेज ट्राई करती थीं। एक दिन अमित ने?टीवी पर एक कुकिंग कॉम्प्टीशन का एड देखा और हीरल को बिना बताए रजिस्ट्रेशन करा दिया। जब हीरल को ये बात पता चली तो वो परेशान हो गई। तीन महीने का शेड्यूल था, मुंबई में रहना था वो भी बिना मोबाइल। हीरल परेशान थीं कि ये सब कैसे हो पाएगा। तब अमित ने हीरल को समझाया, फिक्र क्यों करती हो, मैं हूं ना अमित ने हीरल को न सिर्फ मुंबई भेजा, बल्कि पूरे कॉम्प्टीशन के दौरान दोनों बच्चों आर्ना और निर्वी को संभाला। अमित रोज सुबह उठकर बच्चों को तैयार करके स्कूल भेजते थे। अपने हाथों से उनका टिफिन बनाते और खाना खिलाते थे। अमित ने पूरे सफर में कभी भी बच्चों को मां की कमी नहीं खलने दी। जब हीरल कॉम्प्टीशन से लौटकर आई तो उनके कुकिंग के शौक को देखते हुए अमित ने उनके लिए 'केक-आ-हालिक्स' शॉप बतौर सरप्राइज ओपन कराई। अब हीरल अपने पति के सपोर्ट?से अपने कुकिंग के शौक को गोरखपुराइट्स में फैला रही हैं और सबसे अपने पति के सपोर्ट?की चर्चा जरूर करती हैं।