प्रेमचंद के साहित्य में सारे हिंदुस्तान की जिंदगी नजर आती हैं
- सेंट एंड्रयूज कॉलेज में प्रेमचंद पर ऑर्गनाइज हुआ इंटरनेशनल सेमिनार
- देश-विदेश के डेलीगेट्स ने किया पार्टिसिपेट GORAKHPUR: मुंशी प्रेमचंद की रचनाएं 'वर्ल्ड लिटरेचर' हैं। उनकी रचनाओं को किसी एक जबान या वर्ग में बांटना दुरूस्त नहीं है। वह जहां हिन्दी के बड़े साहित्यकार थे, वहीं उर्दू में आज तक कोई अफसाना निगार उनसा पैदा नहीं हुआ। यह बातें इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस कलीमुल्लाह खां ने कही। वह सेंट एंड्रयूज कॉलेज के असम्बेली हॉल में गोरखपुर जॉब इंफार्मेशन एंड ट्रेनिंग सेंटर व उर्दू विभाग की ओर से ऑर्गनाइज मुंशी प्रेमचंद शताबदी स्मरण के अंतर्गत एक इंटरनेशनल सेमिनार में लोगों से रूबरू थे। उन्होंने कहा कि मुंशी जी ने आम आदमी के दुख-दर्द और उनकी समस्याओं को पुरजोर तरीके से सामने लाया है, बल्कि स्वराज्य की अवधारणा को पेश कर जेहनों को आजाद करने पर जोर दिया। दिखती है गंगा-जमुनी तहजीबडीडीयू के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो। केसी लाल ने बताया कि मुंशी जी राष्ट्रीयता के सच्चे हामी थे। इसका सबसे बड़ा सबूत यह है कि उन्होंने अपनी रचनाओं में हिन्दुस्तान की गंगा-जमुनी तहजीब को जोरदार तरीके से पेश किया। उनके अलफाजों में हिंदू-मुस्लिम एक दूसरे से रचे बसे दिखाई देते हैं। उन्होंने यह सवाल उठाया कि आखिर हम किसी ओर जा रहे है जहां हिन्दुस्तान की मिली जुली तहजीब खत्म होती नजर आती है। कुवैत से आए डॉ। अफरोज आलम ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद ने अपने अफसानों में देहात की जो तस्वीर पेश की हैं, वह आज भी बरकरार है। उनके अफसाने उस वक्त तक जिंदा रहेंगे जब तक देहात की प्रॉब्लम सॉल्व नहीं हो पाती।
कहानियों में आम आदमी का दर्द नेपाल के खदीजतुल कुब्रा गर्ल्स स्कूल के डायरेक्टर मौलना जाहिद आजाद ने कहा कि प्रेमचंद की व्यक्तित्व उर्दू दुनिया के लिए भुलाया नहीं जा सकता। वह वाहिद ऐसे रचनाकार हैं, जिन्होंने आम आदमी के दर्द को न सिर्फ महसूस किया, बल्कि अपनी कहानियों के जरिए उसका हल भी पेश किया। कुवैत के डॉ। सईद रौशन ने प्रेमचंद के पंद्रह नॉवेल्स को रिसर्च की रोशनी में बढ़ाया। नेपाल उर्दू अकादमी के चेयरमैन डॉ। साकिब हारूनी ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद व फिराक गोरखपुरी ने गोरखपुर की तारीख में चार चांद लगाया। डीडीयू हिंदी विभाग के प्रो। अनिल राय ने कहा कि हमारे देश का राष्ट्रवाद और भूख पर आधारित होगा न कि मजहब और साम्प्रदायिकता पर, क्योंकि अभी तक कोई ऐसा इंसान नहीं बना है जो रोटी के बगैर जिंदा रह सके। कद्रदानों की हो गई कमीसीनियर फिजिशियन व प्रोग्राम के संयोजक डा। अजीज अहमद ने गेस्ट का वेलकम किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि गोरखपुर एक ऐसी सरजमीं है, जहां से फिराक, मजनू, प्रेमंचद, रेयाज खैराबादी, शमसुर्रहमान फारूकी, मलिक जादा मंजूर अहमद, जफर गोरखपुरी जैसे नामवर शायर व अदीब पैदा हुए और उन्होंने पूरी दुनिया में नाम रौशन किया। संचालन डॉ। कलीम कैसर ने किया। मौके पर अशफाक अहमद की लिखी किताब का विमोचन किया गया। धन्यवाद ज्ञापन कालेज के उर्दू डिपार्टमेंट के एचओडी डॉ। साजिद हुसैन ने किया। इस मौके पर कालेज के प्रिंसिपल डॉ। जेके लाल, शहर काजी मुफ्ती वलीउल्लाह, डॉ। शमसाद, डॉ। सुशील राय, आसिम रऊफ, अब्दुल्लाह, रोशन सिद्दीकी, अशोक चौधरी, मनोज सिंह के अलावा बड़ी तादाद में छात्र-छात्राएं व टीचर्स मौजूद रहे।