इमाम जैनुल आबेदीन से सीखें समाज सेवा का सलीका : हाफिज महमूद
- 18 मोहर्रम 95 हिजरी में हुई इमाम जैनुल आबदीन की शहादत
- चिश्तिया मस्जिद बक्शीपुर और सब्जपोश हाउस मस्जिद जाफरा बाजार में ऑर्गनाइज हुई महफिलGORAKHPUR: चिश्तिया मस्जिद बक्शीपुर व सब्जपोश हाउस मस्जिद जाफरा बाजार में शनिवार को हजरत सैयदना इमाम जैनुल आबेदीन रदियल्लाहु अन्हु के शहादत दिवस पर महफिल हुई। कुरआन ख्वानी व फातिहा की गई। चिश्तिया मस्जिद के इमाम हाफिज महमूद रजा कादरी ने कहा कि हजरत इमाम जैनुल आबेदीन की पैदाइश 5 शाबान 38 हिजरी को मदीना शरीफ में हुई। आपके वालिद का नाम हजरत इमाम हुसैन व वालिदा का नाम हजरत शहर बानू है। आप अइम्मा अहले बैत के चौथे इमाम हैं। 61 हिजरी में जंगे कर्बला के मौके पर आप बहुत बीमार थे। इमाम हुसैन ने आपको खिलाफत और इमामत अता फरमाई। आपकी इबादत, इल्म, हुस्ने अख्लाक, सब्र और सखावत मशहूर है। हजरत इमाम हुसैन के पुत्र इमाम जैनुल आबेदीन जो कर्बला के मैदान में बीमारी की हालत में मौजूद थे, उन्होंने कर्बला में तमाम शहादतों के बाद वहां से शाम तक के सफर में अपने खुतबों से हजरत इमाम हुसैन के मिशन को आगे बढ़ाया।
गरीबों को पहुंचाते थे चीजेंआप की यह आदत थी कि आप पूरी रात इबादत-ए-इलाही में गुजारते और रात में पोशीदा रहकर खुद ग़रीबों और हाजतमंदों को जरुरत की चीजें पहुंचाते। आप हमेशा बुराई का बदला भी इस तरह देते थे कि खताकार शìमदा होकर अपनी खता की माफी मांग लेता और नेकी अख्तियार कर लेता। जब इमाम जैनुल आबेदीन ग़रीबों की मदद करते थे तो उस समय वह अपने चेहरे को ढांप लिया करते थे ताकि सहायता लेने वाला उनको पहचानकर लज्जित न होने पाए। जब इमाम जैनुल आबेदीन की शहादत हो गई तो उसके बाद उन लोगों को पता चला कि लंबे समय से उनकी मदद करने वाला अंजान इंसान और कोई नहीं इमाम जैनुल आबेदीन थे। इस प्रकार से उन्होंने यह सबक दिया कि मुसलमानों को अपने मुसलमान भाई का ध्यान रखना चाहिए और छिपकर उनकी मदद करनी चाहिए। हमें हजरत इमाम हुसैन व इमाम जैनुल आबेदीन के बताए हुए रास्ते पर चलकर ही हमें अपनी जिन्दगी गुजारनी चाहिए।
समाज सुधार का किया कामसब्जपोश हाउस मस्जिद के इमाम हाफिज रहमत अली निजामी ने कहा कि इमाम जैनुल आबेदीन (इमाम सज्जाद) का नाम अली था किंतु अधिक इबादत के कारण उन्हें जैनुल आबेदीन के नाम से ख्याति मिली जिसका अर्थ होता है इबादत की शोभा। उस काल की विषम परिस्थितियों में इमाम इमाम जैनुल आबेदीन ने दुआओं, उपदेशों व समाज सेवा के माध्यम से समाज सुधार का काम किया.इमाम जैनुल आबेदीन समाज में पैग़म्बरे इस्लाम हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की शिक्षाओं को प्रचलित करते रहे। यही कारण है कि जब तत्कालीन समाज में दास प्रथा को पुन? प्रचलित करने के प्रयास तेज हो गए तो इमाम जैनुल आबेदीन ने दासों को खरीदकर अल्लाह की राह में उन्हें आजाद करना शुरू किया। वह दासों के साथ उठते-बैठते और उनके साथ खाना खाते थे।
दीन को लोगों तक पहुंचायाइमाम जैनुल आबेदीन दासों को अच्छे शब्दों से संबोधित करते थे। इस प्रकार से अपनी विनम्रता और दूरदर्शीता से इमाम जैनुल आबेदीन ने अपने दौर के संवेदनशील काल में भी वास्तविक दीन-ए-इस्लाम को लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। मदीना के गवर्नर के हुक्म से आपको जहर दिया गया। जिससे आपकी शहादत 18 मोहर्रम 95 हिजरी में हुई। आपका मजार जन्नतुल बकीं मदीना मुनव्वरा में हजरत इमाम हसन अल मुज्तबा के बगल में है। अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो अमान, तरक्की, भाईचारे की दुआ मांगी गई। महफिल में मो। जैद, मो। अयान, मो। अली, मो। रुसान, मो। चांद, मो। आरिब, मुख्तार अहमद, सैयद तहसीन, शारिक अली, इमाम हसन, अब्दुल कय्यूम, फैजान अली, बब्लू, मो। अरहाम, मो। अरसलान, हाफिज सद्दाम, हाफिज मुजम्मिल रजा, हाफिज अनस रजा आदि ने शिरकत की।