आईडी प्रूफ नहीं तो एचआईवी से मर जाइए
-एड्स पीडि़ता को नियम की दे रहे दुहाई
-दवा के लिए एआरटी सेंटर का लगा रही चक्कर -मेडिकल कॉलेज में बच्ची का चल रहा इलाज GORAKHPUR: अगर कोई एचआईवी से पीडि़त है और बीआरडी मेडिकल कॉलेज में इलाज कराने गया है तो उसे इलाज बाद में मिलेगा, पहले आईडी प्रूफ दिखाना होगा। यह हम नहीं कह रहे हैं, खुद और अपने बच्चे का इलाज कराने यहां आई एक एचआईवी पीडि़ता यह दर्द भुगत रही है। सिर्फ आईडी प्रूफ न होने के चलते वह अपने बच्ची के साथ मेडिकल कॉलेज में आठ दिनों से पड़ी है। दवा के लिए अफसरों के दफ्तरों का चक्कर लगा रही है, लेकिन उसका इलाज कराने के बजाए, उससे आईडी प्रूफ मांगा जा रहा है। नहीं आया रहमबलरामपुर जिले की रागिनी (बदला हुआ नाम) की चार साल बच्ची प्रियंका की हालत काफी खराब है। रागिनी ने अपने बच्ची को आठ दिन पहले एनआरसी बाल रोग विभाग में एडमिट कराया। यहां दोनों की एचआईवी जांच की गई तो रिपोर्ट पॉजिटिव आई। इसके बाद मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने सभी दवाएं व जांच नि:शुल्क कर दी। लेकिन एआरटी सेंटर से मिलने वाली हेल्प सिर्फ इसलिए नहींमिल रही क्योंकि उसके पास आईडी प्रूफ नहीं है। वह मेडिकल कॉलेज में बेड हेड टिकट लेकर अफसरों के कार्यालय का चक्कर लगा रही है लेकिन उसकी हालत पर किसी को कोई रहम नहीं आ रहा।
दर्द बयां करते रो पड़ी रागिनी आई नेक्स्ट रिपोर्ट एड्स पीडि़ता की हकीकत जानने के लिए बुधवार की दोपहर एनआरसी बाल रोग वार्ड में पहुंचा। पता चला वह एक्सरे कराने गई है। वहां वह अपनी चार साल की बच्ची को गोद में लेकर किनारे खड़ी थी। उसकी दर्दभरी कहानी हैरान करने वाली थी। उसने बताया कि चार साल पहले उसके पति कमाने के लिए मुंबई गए थे। दो साल के बाद वह घर आए। कुछ ही दिन रहने के बाद वह दोबारा मुंबई चले गए। इसके बाद से ही उनकी तबीयत खराब रहने लगी। हालत काफी बिगड़ने पर वह घर लौट आए.उन्हें इलाज के लिए पास के अस्पताल में एडमिट कराया। जहां जांच हुई तो एचआईवी पॉजीटिव रिपोर्ट मिली। इसी दौरान उसने एक बच्ची को जन्म दिया। चार माह पहले हुई मौतरागिनी ने बताया कि हालत खराब होने के चार माह पहले उनकी मौत हो गई। इसके बाद मेरी भी तबियत खराब हो गई। जांच में एचआईवी पॉजीटिव आया। बच्ची भी इस बीमारी से ग्रसित हो गई। यह जानकारी परिवार वालों को हुई तो उसे घर से बेघर कर दिए। चार साल की बच्ची को लेकर इधर-उधर भटकती रही। पेट पालने के लिए कुछ लोगों के घर चौका-बर्तन करने लगी। उससे दो पैसे मिलते तो अपने बच्ची का परवरिश कर रही थी। अचानक उसकी हालत खराब हो गई। बीमारी के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, लेकिन फिर भी उसे पास के जिला अस्पताल में एडमिट कराया। जहां डॉक्टर्स ने हायर सेंटर पर ले जाने को कहां। कुछ लोगों ने गोरखपुर बीआरडी मेडिकल जाने की सलाह दी। सभी सलाह पर मैं मेडिकल कॉलेज में बच्ची को भर्ती कराया।
इलाज के लिए पैसे नहीं रागिनी ने बताया कि बच्ची की इलाज के लिए मेरे पास एक फूटी कौड़ी तक नहीं है। सभी से सहयोग लेकर उसका इलाज करा रही हूं। सास, ससुर और घर के अन्य सदस्यों ने भी मेरा साथ छोड़ दिया है। बच्ची को लेकर आठ दिनों से इधर-उधर भटक रही हूं। दर्द बयां करते हुए रागिनी ने बताया कि पति की मौत के बाद घर वाले आए दिन उसे प्रताडि़त करते रहते हैं। विरोध करने पर उन्होंने आग के हवाले कर दिया। इलाज के बाद जब ठीक हुई तो दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। उसकी आंखों से आंसू थम नहीं रहे थे।