i-survey: बच्चों को मोबाइल देने में खराबी नहीं, पर करते रहें निगरानी
गोरखपुर (ब्यूरो)। दैनिक जागरण आईनेक्स्ट के सर्वे में लोगों ने सवालों के जवाब तो दिए ही। साथ ही मैसेज कर अपनी बातें भी रखीं। लोगों का कहना है कि अब कोविड पीरियड खत्म हो गया है तो ऐसे में ऑनलाइन क्लासेज के नाम पर बच्चों को मोबाइल देना ठीक नहीं हैं। स्कूल्स को भी चाहिए कि वह बजाय ऑनलाइन क्लास के ऑफलाइन क्लासेस पर ही फोकस करें, जिससे बच्चों की पढ़ाई प्रॉपर वे में हो सके और मोबाइल के साइड इफेक्ट से भी उन्हें दो-चार न होना पड़े। इतना ही नहीं अगर बच्चों को किसी मजबूरी के तहत मोबाइल दिया भी जा रहा है तो उसकी प्रॉपर निगरानी की जाए, जिससे कि बच्चों को गलत रास्ते पर जाने से पहले ही रोका जा सके।सभी की होनी चाहिए जिम्मेदारी
इन दिनों न्यूक्लियर फैमिली होने की वजह से मोबाइल देकर खुद को फ्री करने का चलन हो गया है। ऐसे में बच्चे मोबाइल के लती जल्दी हो जा रहे हैं। ऐसी फैमिली में तो मां-बाप को ही अपने बच्चों की निगरानी करनी होगी। लेकिन अगर फैमिली ज्वाइंट है तो इस कंडीशन में मां-बाप के अलावा वहां रहने वाले हर शख्स की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह मॉनिटर करें कि बच्चे सही राह पर चल रहे हैं। अगर ऐसा नहीं है तो वह उन्हें टोकें और अगर टोक नहीं सकते हैं तो कम से कम बच्चों के मां-बाप को इसकी जानकारी जरूर दे दें।मां-बाप हैं जिम्मेदारदैनिक जागरण आईनेक्स्ट के सर्वे की बात करें तो इसमें सवालों के जवाब में यह बातें सामने आई है कि कोविड कमजोर पड़ा है। बच्चों को मोबाइल देना अब ठीक नहीं है। 80.5 परसेंट लोगों का ऐसा मानना है। वहीं लखनऊ जैसी घटनाओं के लिए उन्होंने माता-पिता, बच्चों के साथ ही परिवार के अन्य सदस्यों को भी जिम्मेदार माना है। बच्चों को मोबाइल की इस लत से कैसे बचाया जा सकता है, इसके जवाब में 33.3 परसेंट लोगों ने गतिविधियों पर निगरानी की बात कही है। वहीं 15.2 परसेंट लोगों का मानना है कि अगर उन्हें आउटडोर गेम्स के लिए भेजा जाए तो मोबाइल की लत छूट सकती है। सबके बीच में डांट कर उनकी इंसल्ट करने को भी 3 फीसद लोगों ने वजह माना है। जबकि 48.5 परसेंट लोगों ने इन तीनों ही तरीकों को सही माना है। यह रहा है सर्वे का रिजल्ट सवाल - जब कोविड पीरियड खत्म हो गया है तो बच्चों को स्टडी या गेमिंग के लिए मोबाइल देना चाहिए?जवाब - हां - 15.6 परसेंट
नहीं - 80.5 परसेंटकह नहीं सकते - 3.9 परसेंटसवाल - लखनऊ जैसी घटनाओं के लिए जवाबदेह कौन है?जवाब - माता-पिता - 39.7 परसेंटबच्चे - 2.9 परसेंटपरिवार के अन्य सदस्य - 5.9 परसेंटउपरोक्त सभी - 51.5 परसेंट सवाल - मोबाइल से बच्चों को कैसे बचा सकते हैं?जवाब - गतिविधियों पर ध्यान देकर - 33.3 परसेंटफील्ड स्पोट्र्स बढ़ाकर - 15.2 परसेंटसबके बीच न डाटें - 3 परसेंटउपरोक्त सभी - 48.5 परसेंटजब एक बार कोविड के दौर में बच्चों को पढ़ाई के लिए मोबाइल दिया जा चुका है तो अब उनसे इसे छीनना उचित नही है। बच्चे मिट्टी के घड़े के समान होते हैं और उनके अंदर सामाजिक मर्यादाओं की समझ बनाने और चरित्र निर्माण में बहुत सजगता की जरूरत होती है। जरूरत के अनुसार सख्ती और दुलार दोनों जरूरी हैं।अजीत राय, प्रोफेशनलकोरोनाकाल में जब सभी शिक्षण संस्थाएं बन्द चल रही थीं तब मोबाइल के माध्यम से ही ऑनलाइन क्लास ली जा रही थी। हर क्षेत्र में प्रगति के लिए मोबाइल आवश्यक हो गया है। लेकिन निगरानी और नियंत्रण के साथ ही बच्चों को मोबाइल देना चाहिए।संजय कुमार श्रीवास्तव, कार्यवाहक प्रधानाध्यापक , कन्हैया जूनियर हाईस्कूल, शाहपुर
बच्चों में हिंसा की प्रवृत्ति का सबसे बड़ा कारण है मोबाइल गेम्स। वह नहीं समझते कि यह एक अमानवीय कार्य है। इस वजह से बच्चों के अंदर संवेदनाएं समाप्त होती जा रही है और झुंझलाहट तथा हिंसात्मक प्रवृत्ति ज्यादा हो रही है। अब जरूरी है कि आउटडोर गेम्स और पुस्तकों के प्रति उनमें रुचि जगाई गए। आरती प्रियदर्शिनी, सोशल वर्कर मोबाइल बच्चों के लिए हर तरह से हानिकारक सिद्ध हो रहा है। उनकी सुरक्षा और शिक्षा को ध्यान में रखते हुए मोबाइल और बच्चों के बीच दूरी जरूरी है। अगर देते भी हैं तो बच्चे उसमें क्या देख रहे हैं या कर रहे हैं उसकी जानकारी जरूर रखें।मनीष कुमार सिन्हा, गवर्नमेंट इम्पलाई हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। मोबाइल जहां बच्चों को असीमित जानकारी देता है, वहीं अवांछित बातों से भी अवगत करा देता है, जोकि हानिकारक है। अब मोबाइल शिक्षा और सुरक्षा से भी जुड़ चुका है, इसलिए उसे छीन भी नहीं सकते है, लेकिन इस पर पेरेंट्स की निगरानी जरूरी है।- शन्नो श्रीवास्तव, सोशल वर्कर