Hindi Diwas 2022: गोरखपुर को दिलाई अलग पहचान, बनाया हिंदी की बिंदी
गोरखपुर (ब्यूरो).गोरखपुर की धरती से भी हिंदी के कुछ ऐसे विद्वान निकले जिन्होंने पूरे विश्व में हिंदी का मान बढ़ाया है। ये ऐसे लोग हैं जिन्होंने गोरखपुर को हिंदी की बिंदी बनाया है और आज भी हिंदी का नाम आने पर एक बार गोरखपुर की ओर मुड़कर जरूर देखते हैं। मुंशी प्रेमचंदधनपत राय 'मुंशी प्रेमचंदÓ का गोरखपुर से गहरा नाता रहा है। उनको उपन्यास एवं कहानियों का सम्राट भी कहा जाता है। गोरखपुर उनकी कर्मभूमि भी कही जाती है। वह जब नौकरी के दौरान गोरखपुर आए तो शहर के बेतियाहाता स्थित निकेतन में पांच साल रहकर उन्होंने अपनी दो मशहूर कहानियां लिखी थीं। यह कहानियां थीं, ईदगाह और नमक का दारोगा। ईदगाह की पृष्ठभूमि उन्हें निकेतन के ठीक पीछे मौजूद हजरत मुबारक खां शहीद के दरगाह के सामने की ईदगाह से मिली थी तो नमक का दारोगा की पृष्ठभूमि राप्ती नदी के घाट से।
डॉ। विश्वनाथ प्रसाद तिवारी
20 जून 1940 को कुशीनगर के रायपुर भैंसही-भेडिहारी गांव में जन्मे आचार्य विश्वनाथ प्रसाद तिवारी एक लोकप्रिय शिक्षक रहे हैं। वह एक फेमस हिंदी साहित्यकार हैं और 2013 से 2017 तक साहित्य अकादमी के अध्यक्ष रहे हैं। प्रो। तिवारी गोरखपुर यूनिवर्सिटी हिंदी विभाग के अध्यक्ष पद से साल 2001 में रिटायर हुए। वह गोरखपुर से प्रकाशित होने वाली पत्रिका 'दस्तावेजÓ के संस्थापक-संपादक भी हैं। 2011 में उन्हें व्यास सम्मान और 2019 में ज्ञानपीठ के मूर्तिदेवी सम्मान से भी सम्मानित किया जा चुका है। इसके साथ ही इनके शोध व आलोचना के 13 ग्रंथ, 7 कविता संग्रह, 04 यात्रा संस्मरण, तीन लेखक-संस्मरण व चार साक्षात्कार पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है। उनकी डायरी और आत्मकथा 'अस्ति और भवतिÓ भी प्रकाशित हो चुकी है। डॉ। रामदेव शुक्लअक्टूबर 1936 में कुशीनगर के शाहपुर कुरमौटा में जन्मे डॉ। रामदेव शुक्ल का हिंदी भाषा में काफी बड़ा योगदान है। वह 1995 से 1998 तक गोरखपुर यूनिवर्सिटी में हिंदी विभाग के अध्यक्ष रहे। ग्राम देवता, विकल्प, संकल्प, मनदर्पण, गिद्यलोक इनकी प्रमुख रचनाएं हैं। इसके साथ ही अपहरण, नीलामधर समेत 6 कहानी संग्रह हैं जो काफी फेमस हैं। डॉ। शुक्ल वर्तमान में मुंशी प्रेमचंद संस्थान के अध्यक्ष भी हैं। इनको शिखर सम्मान, विद्या भूषण और हिंदी गौरव जैसे कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। आचार्य रामचंद्र तिवारी
आचार्य रामचंद्र तिवारी का जन्म बनारस में 4 जून 1924 में हुआ। इनकी हाई स्कूल की पढ़ाई बनारस में हुई इसके बाद वह लखनऊ चले गए। वहां लखनऊ यूनिवर्सिटी से पीएचडी की पढ़ाई पूरी करने के बाद गोरखपुर आ गए। 1984 वह गोरखपुर यूनिवर्सिटी के हिंदी विभाग के आचार्य और अध्यक्ष के पद से रिटायर हुए। इनका 'हिंदी का गद्य साहित्यÓ और कबीर मिमांसा काफी फेमस रचनाएं हैं। इनकी कुछ आलोचनाएं भी काफी फेमस हैं। इनके उत्कृष्ट कार्य के लिए इन्हें 1996 में साहित्य भूषण और 2004 में हिंदी गौरव सेे भी सम्मानित किया जा चुका है। क्यों मनाया जाता है?हिंदी दिवस देशभर में 14 सितंबर को मनाया जाता है। इसको मनाने का उद्देश्य लोगों को हिंदी भाषा के प्रति जागरुक करना है। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से निर्णय लिया था कि हिंदी भारत की राजभाषा होगी। उस समय के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस दिन के महत्व देखते हुए हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाए जाने का ऐलान किया। पहला हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 को मनाया गया था।हिंदी से मेरा काफी लगाव है। यह एक भाषा नहीं बल्कि जीवनशैली है। वैचारिकी और जीवनशैली में अंतर होता है। एकदिवसीय 'हिंदी उत्थानÓ भाषण वैचारिक प्रलाप भर हैं, इसके अलावा कुछ नहीं। इसलिए बुद्धिजीविता सिद्ध करने के खोल से बाहर आकर हिंदी को जीवनशैली का अंग बनाने की आवश्यकता है। हिंदी से भी भविष्य उज्ज्वल हो सकता है। - आशुतोष तिवारी, हिंदी स्कॉलर
हिन्दी बचपन से ही मेरा प्रिय विषय रहा है। तुलसीदास की चौपाईयां, कबीरदास के दोहे, निराला की कविताएं मुझे अधिक प्रभावित करती रहीं हैं। हिंदी का विद्यार्थी होना मेरा सौभाग्य है। आज के युवा पीढ़ी से निवेदन है कि वे कविता, कहानी, उपन्यास (गोदान, त्यागपत्र, रागदरबारी आदि) को पढ़ें और विकृत होते समाज को बचाने में अहम भूमिका निभाएं।- शिवेंद्र मणि त्रिपाठी, हिंदी स्कॉलर