Gorakhpur University News: प्रोफेसर अपनी मर्जी से ही बन गए एक्सपर्ट कमेटी के को-आर्डिनेटर
गोरखपुर (ब्यूरो)। बल्कि प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना की एजेंसी एनआरआइडीए (नेशनल रूरल इन्फ्रास्ट्रक्चर डवेलपमेंट आथारिटी) व उत्तर प्रदेश रूरल रोड डेवलपमेंट एजेंसी (यूपीआरआरडीए) के साथ भी धोखा किया है। उन्होंने विश्वविद्यालय को बिना बताए खुद को एजेंसी के तकनीकी विशेषज्ञ समिति का समन्वयक नामित करवा लिया और समिति के लिए स्वीकृति भी प्राप्त कर ली।यूनिवर्सिटी के खाते में जमा कर दी धनराशि
इतना ही नहीं धांधली पकड़ में आने के बाद भी वह अपने कारनामे को बढ़ाने से बाज नहीं आए। यूपीआरआरडीए को धोखे में रखते हुए योजना के एक डीपीआर की जांच कर रिपोर्ट भी दे दी और उसके एवज में एजेंसी की ओर से विश्वविद्यालय के खाते में धनराशि भी जमा कर दी गई। इसे लेकर विश्वविद्यालय की ओर से एजेंसी से पूछताछ तो की ही गई है, प्रोफेसर के खिलाफ कारण बताओ नोटिस भी जारी किया गया है.प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत बनाई जाने वाली सड़कों के डीपीआर की जांच का नोडल सेंटर है। इसे लेकर विश्वविद्यालय की ओर से तीन सदस्यीय तकनीकी विशेषज्ञ कमेटी बनाई जाती है, जिसमें सिविल इंजीनियङ्क्षरग विभाग के शिक्षकों को जगह दी जाती है।बनाई गई थी तीन सदस्यीय कमेटी
इसी क्रम में विश्वविद्यालय की ओर से वरिष्ठ आचार्य प्रो। जावेद के नेतृत्व में तीन सदस्यीय कमेटी बनाई गई थी। प्रो। जावेद बीते वर्ष अप्रैल में जब रिटायर हो गए तो समिति के एक अन्य सदस्य प्रो। श्रीराम चौरसिया, जो उस समय विभागाध्यक्ष भी थे, ने विश्वविद्यालय प्रशासन की अनदेखी कर अपने स्तर से नई कमेटी बना दी और खुद को उसका समन्वयक बना लिया। इतना ही नहीं अपने स्तर से ही उन्होंने एनआरआइडीए व यूपीआरआरडीए को कमेटी की स्वीकृति के लिए पत्र भी भेज दिया। दोनों एजेंसियों ने प्रो। चौरसिया के पत्र को विश्वविद्यालय का आधिकारिक पत्र मानते हुए कमेटी को स्वीकृति प्रदान करते हुए विश्वविद्यालय को इस बाबत पत्र भेजा तो उनकी धांधली सामने गई। विश्वविद्यालय प्रशासन ने मामले को गंभीरता से लेते हुए एजेंसी को पत्र लिखकर पूछताछ की तो वहां से मिले जवाब से धांधली की स्थिति और स्पष्ट हो गई। उसके बाद विश्वविद्यालय ने प्रो। चौरसिया को कारण बताओ नोटिस जारी किया। कमेटी की वैधता पर सवाल उठने के बाद भी कर दी जांच
हद तो तब हो गई, जब इन सब प्रकरण के बीच भी प्रो। चौरसिया ने अपनी कमेटी के जरिए यूपीआरआरडीए को अंधेरे में रखते हुए एक डीपीआर की जांच कर रिपोर्ट दे दी। उस जांच के बदले जब पिछले महीने विश्वविद्यालय के खाते में करीब ढाई लाख रुपये आए तो विश्वविद्यालय प्रशासन सकते में आ गया। सिविल इंजीनियङ्क्षरग विभाग के वर्तमान अध्यक्ष ने इसे घोर अनुशासनहीनता मानते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन को पत्र लिखकर प्रकरण की जांच की मांग कर दी। पत्र के जरिये विभागाध्यक्ष का कहना है कि जब कमेटी ही अधिकृत नहीं है, तो उसने किस अधिकार से डीपीआर की जांच की है। इसे लेकर कमेटी के समन्वयक व सदस्यों के खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित होनी चाहिए। हालांकि विश्वविद्यालय प्रशासन ने इसे लेकर अभी कोई निर्णय नहीं लिया है। उधर इस मामले में प्रो। चौरसिया ने इस संबंध में कुछ भी कहने से इन्कार कर दिया हैइस तरह के मामले की पूरी जानकारी नहीं है। विश्वविद्यालय के प्रोटोकाल की अनदेखी कर प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना की एजेंसियों के लिए विशेषज्ञ कमेटी के गठन का प्रकरण पिछले कुलपति प्रो। जेपी पांडेय के कार्यकाल का है। पूरी जानकारी लेकर कार्यवाही आगे बढ़ाई जाएगी। प्रो। जेपी सैनी, वीसी, एमएमयूटी