गोरखपुर में 30 परसेंट यंगस्टर्स डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं. इनकी उम्र 18 से 36 साल है. इसका मुख्य वजह एजुकेशन करियर एकोनामिक ईशू और पर्सनल इशू आदि है. बिजी लाइफस्टाइल शेड्यूल के चलते लोगों को अपनी प्रॉब्लम दोस्तों और परिजनों से शेयर करने का समय ही नहीं मिलता है. वहीं कई लोग ऐसे होते हैं जो अपनी प्रॉब्लम्स को दूसरों से यह सोचकर शेयर ही नहीं करना चाहते हैं कि लोग सोचेंगे क्या.

गोरखपुर: इसका असर यंगस्टर्स की लाइफ पर ज्यादा देखने को मिल रहा है। बहुत से यंगस्टर्स करियर और अफेयर को लेकर परेशान रहते हैं। अपनी बात दूसरों से न कह पाने के चलते वे कई बार डिप्रेशन का भी शिकार हो जाते हैं। जिला अस्पताल के मानसिक रोग विभाग की ओपीडी में प्रतिदिन 11 केसेज आ रहे हैं। काउंसलर की तरफ से मन कक्ष में ऐसे पेशेंट्स की काउंसलिग कराई जाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि कुछ तो दवा से ठीक हो जाते हैँ तो कुछ काउंसलिंग और दवा दोनों से ठीक होते हैं।

ओवररिएक्शन का डर


साइकोलॉजिस्ट ने बताया कि अक्सर हमारी इंडियन फैमिली रिलेशनशिप मैटर पर ओवर रिएक्शन देती है, जिसकी वजह से यूथ्स अपनी प्रॉब्लम परिवार से शेयर करने से डरते हैं, क्योंकि उन्हे पाता होता है कि उनकी फैमिली उनके मेंटल कंडीशन समझने के बजाय उनको ही डाटेगी। साइकोलॉजिस्ट का कहना है कि ऐसे कंडीशन में फैमिली, फ्र ंड्स का सपोर्ट सबसे ज्यादा इम्पॉर्टेंट होता है। यह समय पर न मिलने पर हालात और खराब हो जाते हैं।

डिप्रेशन की ओर


साइकोलॉजिस्ट के अनुसार उनके पास सबसे ज्यादा काउंसलिंग के लिए वो यूथ्स आ रहे हैं जिनके डिप्रेशन की वजह ब्रेकअप और करियर में आगे बढने का स्ट्रेस था। जिनमें केसेज की संख्या इस प्रकार थी। 160 यूथ्स में करियर का स्ट्रेस देखने को मिला, वहीं 125 यूथ्स में ब्रेकअप को लेकर स्ट्रेस था।

18 से 36 साल के लोग


साइकोलॉजिस्ट के अनुसार इस तरह की प्रॉब्लम 18 से 30 साल के युथ्स में अधिक देखने को मिल रही है। समय पर अगर ऐसे लोगों की काउंसलिंग न कराई जाए तो समस्या और बढ़ जाती है। साइकोलॉजिस्ट ने बताया कि लोगों में आज भी हिचक रहती है कि वो कांउसलिंग के लिए जाएंगे तो उन्हे लोग नार्मल कंसीडर नहीं करेंगे। जिसकह वजह से यह बहुत खतरनाक साबित हो जाती है। इसके लिए अवेयरनेस बहुत जरूरी है। ऐसे मरीजों को मन कक्ष में जाना चाहिए ताकि उनका अच्छे तरीके से मानसिक रोग विशेषज्ञ द्वारा इलाज हो सके और वह ठीक हो सकें।

केस-1
मास्टर्स की स्टूडेंट प्रीती अपने घर में सबसे बड़ी है। वह मिडिल क्लास फैमली को बिलांग करती है। उसके ऊपर फाइनेंशियल बर्डन भी है। वह यह सोचने लगी कि बड़ी होने के कारण उसे सक्सेसफुल होना ही है। कुछ अच्छा करना है जिससे वह अपनी फैमली को सपोर्ट कर सके। यही सोचते-सोचते वह डिप्रेशन का शिकार हो गई। पांच माह तक लगातार डिप्रेशन में रहने के कारण उसकी मेंटल स्टेब्लिटी खत्म होने लगी और उनके मन में सुसाइड जैसे थॉट्स आने लगे। इसके बाद उसने काउंसलिंग कराना स्टार्ट किया। अब वह इलाज से पूरी तरह स्वस्थ हैं।

केस 2
कुशल एक स्टूडेंट है। वह पांच माह तक एक लड़की के साथ रिलेशनशिप में रहा। बाद में धीरे-धीरे उन दोनों में झगड़ा होने लगा और कुछ दिन बाद ब्रेकअप भी हो गया। जिसकी वजह से कुशल डिप्रेशन में चला गया। उसके बिहेवियर में चेंज आने लगा। उसे एंग्जाएटी और पैनिक अटैक आते थे। लेकिन अपनी इस प्रॉब्लम को वह फैमिली से शेयर नहीं करता था। उसे लगता था कि यह सुनकर परिवार के लोग गुस्सा करेंगे। एक दिन उसने एक साइकोलॉजिस्ट के पास जाकर अपनी समस्या बताई और कहा, उसके मन में सुसाइड करने की बात आती है। काउंसलिंग करने के बाद उसका ट्रीटमेंट शुरू किया गया।

अधिक दिखते लक्षण


18 से 36 साल के लोगों में डिप्रेशन एक मानसिक स्वास्थ्य समस्या है जो किसी भी आयु में हो सकती है, लेकिन 18 से 36 साल के आयु वर्ग में इसके लक्षण अधिक देखे जाते हैं।

आयु के अनुसार के आंकड़े
18-24 साल-25 परसेंट
25-34 साल-30 परसेंट
35-44 साल-25 परसेंट

डिप्रेशन के कारण


- जीवनशैली में बदलाव
- शिक्षा और करियर का दबाव
- रिश्तों में समस्याएं
- मानसिक स्वास्थ्य की उपेक्षा
- जेनेटिक कारक

डिप्रेशन के लक्षण
- उदासी
- थकान
- भूख में कमी
- नींद की समस्या
- आत्मविश्वास की कमी
- रुचि की कमी

डिप्रेशन से कैसे निपटें
- मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर से परामर्श
- दवाएं
- थेरेपी
- जीवनशैली में बदलाव
- समर्थन समूह

यदि आप या आपके किसी परिचित को डिप्रेशन के लक्षण हैं तो तुरंत मानसिक स्वास्थ्य मनकक्ष गोरखपुर मानसिक रोग विशेषज्ञ या मनोवैज्ञानिक से संपर्क करें।
रमेन्द्र त्रिपाठी, नैदानिक मनोवैज्ञानिक

डिप्रेशन के 17 से 18 परसेंट यंगस्टर मानसिक रोग विभाग की ओपीडी में आते हैं। इसमें से ज्यादातर ठीक हो जाते हैं लेकिन कुछ ऐसे पेशेंट्स भी होते हैं जो दवा समय पर नहीं लेते हैं और बीच में ही छोड़ देते हैं। इसके चलते प्रॉब्लम और बढ़ जाती है। अस्पताल के मन कक्ष में काउंसलर की तरफ से इनकी काउसलिंग कराई जाती है।
डॉ। अमित शाही, मानसिक रोग विशेषज्ञ

Posted By: Inextlive