Gorakhpur Literary Fest 2023 : गोरखपुर लिटरेरी फेस्टिवल में लोकल सितारों ने बिखरी चमक
गोरखपुर (ब्यूरो)।इसमें बॉलिवुड प्लेबैक सिंगर बृजेश शांडिल्य, अविनाश नारायण और बॉलिवुड प्लेबैक सिंगर बालेन्दु द्विवेदी शामिल हुए, जिन्होंने अपने एक्सपीरियंस शेयर किए। इस अवसर पर निर्देशक विशाल चतुर्वेदी ने भी अपनी बातें शेयर कीं। मॉडरेशन शुभेंद्र सत्यदेव और संचालन रेनू सिंह ने किया।फुटपाथ पर भी कटी है जिंदगी : बृजेश शांडिल्य
आपकी आत्मा, आपका जमीर और आपकी जीवन यात्रा आप के संगीत की दशा और दिशा तय करते हैं। बस्ती में घर छोड़कर गोरखपुर आया। गोरखपुर ने मुझे पाला है, बड़ा किया है, म्यूजिक की नेमत दी है तथा मैंने जितना गाया है वह गोरखपुर के नाते ही संभव हो सका है। मैं चाहता हूं कि मैं दुनिया के किसी भी कोने में चला जाऊं लेकिन मेरा अंत यही गोरखपुर की धरती पर हो। यह बातें 'तनु वेड्स मनुÓ के 'बन्नो तेरा स्वैगÓ सांग देने वाले बृजेश शांडिल्य ने शेयर की। गोरखपुर की सरजमीं से कॅरियर को शुरू करने वाले बृजेश को गोरखपुर में बालेंदु जैसा दोस्त मिला, जिन्होंने उन्हें मोटीवेट किया और आज वह जिस मुकाम पर हैं, उसके लिए उन्हें हमेशा याद रखते हैं। म्यूजिक सीखने के लिए बुलाया
शांडिल्य ने बताया कि बालेन्दु से मेरी दोस्ती गोरखपुर में हुई। बालेन्दु ने ही कहा कि तुम बहुत अच्छा गाते हो। उन्होंने कहा कि मैं इलाहाबाद में तैयारी करता हूं और तुम वहां चलकर म्यूजिक सीखो और वहीं से मेरे शांडिल्य बनने की यात्रा शुरू होती है। यात्रा शुरू हुई और मुंबई की तरफ बढ़े। उन्होंने बताया कि डेढ़ साल की फुटपाथी जिंदगी भी मैंने जी है, लेकिन एक बात मन में थी कि मैं वापस नहीं जा सकता और दूसरों की नजर में खुद को साबित करने से पहले मुझे खुद की नजर में खुद को साबित करना है। स्थानीय कलाकारों को मौका नहींजहां किसी कलाकार का बचपन गुजरा हो, उसका परिवार हो, मां बाप, भाई बहन, मित्र आदि को वह छोडऩा नहीं चाहता, लेकिन शायद यह भी एक कटु सत्य है कि लोग स्थानीय लोगों को या स्थानीय कलाकारों को ज्यादा तवज्जो नहीं देते। मेरा मुंबई जाना शायद इसी अर्थ में हुआ। मुंबई में एक कल्चर है कि वहां वहां कौन किसका हाथ पकड़ ले यह निश्चित नहीं है। यह संस्कृति की एक सुंदरता है। बृजेश ने अपने स्ट्रगल के दिनों की चर्चा करते हुए कहा कि उनका पहला एल्बम गोरखपुर में ही रिकॉर्ड हुआ था। उन्होंने अपने कई गानें भी सुनाएं।दिल से निकली आवाज होती है लोकप्रिय : अविनाश नारायण
अविनाश नारायण ने कहा कि गोरखपुर आकर वह बहुत अच्छा महसूस कर रहे हैं। उन्होंने उन लोगों को विशेष साधुवाद दिया जिन्होंने उन्हें ढूंढ निकाला और एक मंच प्रदान किया। गीतों को कंपोज करने के विषय में उन्होंने कहा कि जो आवाज दिल से निकलती है तथा अनुभव के माध्यम से कलम तक पहुंचती है वो ही लोकप्रिय होती है। इस अवसर पर अविनाश नारायण ने खुद के कंपोज किए हुए गीतों, 'टूटे कोई सपना अधूरा आंखें भर आएं, जीना तो फिर भी होगा जी, जीते जाना हैÓ 'तू अपनी राहों पे चलता जाएÓ से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।साहित्य खुद को अभिव्यक्त करने का मध्यम : बालेंदु द्विवेदी
साहित्य कभी रोजगार का माध्यम नहीं बनना चाहिए। जो ऐसा सोचते हैं वह वास्तव में साहित्य के सेवक नहीं है बल्कि मजदूर हैं। मैं साहित्य में रोजगार के लिए नहीं आया या किसी शौक को पूरा करने के लिए नहीं आया। साहित्य मेरे लिए अपने-आप को अभिव्यक्त करने का माध्यम है। साहित्यिक रचनाकार की संवेदना ही वास्तव में साहित्य की जननी होती है। युवाओं पे किए गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि युवाओं को सपने बड़े देखना चाहिए और उनको जिंदा रखना चाहिए। संघर्ष करने की क्षमता, दृढ़ इच्छाशक्ति, संघर्षों से जूझने का मैनेजमेंट तथा सदैव आशावादी बने रहना ही युवाओं को लक्ष्य की प्राप्ति करवा सकता है। डॉ। प्रभा की गाई गजलों ने बांधा समांसंगीत तथा विशेष तौर पर गजलों को समर्पित इस सत्र में प्रख्यात गजल गायक तलत अजीज की शिष्या डॉ। प्रभा श्रीवास्तवा ने अपनी गजलों की प्रस्तुति दी। शाम-ए-गजल की शुरुवात 'होठों से छू लो तुमÓ के साथ हुई। इसके बाद 'तुम इतना जो मुस्कुरा रहे होÓ, 'झुकी-झुकी सी नजरÓ, 'हम तेरे शहर में आए है मुसाफिर की तरहÓ जैसी गजलें पेश कीं। संगतकार के रूप में गिटार पर राकेश आर्य, तबले पर जलज उपाध्याय तथा की-बोर्ड पर रिंकू राज मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन अमृता धीर मेहरोत्रा ने किया।