बड़े काम की यह कुश्ती
-शारीरिक नहीं मानसिक विकास भी करती है कुश्ती
GORAKHPUR: कभी मल्ल युद्ध, कभी कुश्ती तो कभी रेसलिंग। नाम जरूर अलग है, मगर खेल एक ही है। वह भी ऐसा जो न सिर्फ बॉडी को मजबूत रखता है बल्कि स्टेमिना भी बढ़ाता है। हार्ट अटैक से मरने वालों की संख्या का आंकड़ा जहां बढ़ता जा रहा है, वहीं कुश्ती में दम दिखाने वाले इन पहलवान को यह बीमारी दूर-दूर तक टच भी नहीं करती। मिट्टी के कारण एलर्जी, दमा समेत कई बीमारियों से पीडि़त मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है, वहीं हमेशा मिट्टी में रहने वाले इन पहलवानों का यह बीमारी नहीं होती। यह कोई पहलवान नहीं बल्कि मेडिकल के एक्सपर्ट बयां करते हैं। मतलब कुश्ती से न सिर्फ बॉडी फिट रहती है बल्कि समाज में सम्मान के साथ फ्यूचर भी सेफ होता है। एक खेल और सारी बीमारी दूरडॉ। अभिषेक यादव ने बताया कि वैसे तो सभी खेल सेहत के लिए अच्छे होते हैं। मगर कुश्ती करने वाला पूरी तरह हेल्दी रहता है। क्योंकि इस गेम के खिलाड़ी जितनी कैलोरी ग्रहण करते है, उतनी ही लगभग अपनी एक्सरसाइज से खर्च करते हैं। इससे न सिर्फ उनका स्टेमिना बढ़ता है बल्कि सांस, से जुड़ी कई बीमारियां दूर होती है। कुश्ती से जुड़े लोगों को हार्ट, सांस से जुड़ी बीमारियों के साथ फैट से होने वाली गंभीर बीमारियों से दूर रहते हैं। लगातार एक्सरसाइज से जहां उनकी बॉडी में फैट नहीं रहता, नतीजा कोलेस्ट्राल नहीं बढ़ता। जिससे वर्ल्ड की सबसे खतरनाक बीमारी डायबिटीज इनको टच भी नहीं कर पाती।
फिजिकल के साथ मेंटल डेवलपमेंट भी इंडिया टीम के कोच चन्द्रविजय सिंह कहते हैं कि कुश्ती सिर्फ शारीरिक विकास नहीं करती। इससे मानसिक विकास भी होता है। कुश्ती के बदलते स्वरूप ने काफी कुछ चेंज कर दिया है। सिर्फ हैवी पर्सनालिटी से कुश्ती नहीं जीती जाती। जीतने के लिए माइंड का शॉर्पनेस होना बहुत जरूरी है। क्योंकि हर सेकेंड जीत का दांव चेंज होता है। जीतता वही है जो शारीरिक के साथ मानसिक भी मजबूत रहता है।