मैं नाम दिया गोरखपुर को
- गुरु गोरक्षनाथ के नाम पर पड़ा गोरखपुर नाम
- जंगल को शहर बसाने तक की कहानी छुपा है मेरे में GORAKHPUR: मैं गोरखपुर। अभी बात चल रही है मेरी पहचान मेरे धरोहरों की। जिसने मुझे देश व दुनिया के मानचित्र पर पहचान दिलाई है उसमें एक है गोरक्षनाथ मंदिर। शिव के साक्षात स्वरूप गुरु गोरक्षनाथ की तपस्या स्थली। गोरक्षनाथ हर युग में रहे हैं। सतयुग में पेशावर (जो अब पाकिस्तान में है), त्रेतायुग में गोरखपुर, द्वापर युग में हरमुज व द्वारिका के पास तथा कलियुग में गोरखमधी, सौराष्ट्र में आविर्भूत होकर अपनी तपस्या की। यहां ये त्रेतायुग में आए। शास्त्रों की मानें तो ज्वालादेवी के स्थान से निकलकर अपने लिए तपस्थली खोजते हुए वे राप्ती के तट पर पहुंचे। उस समय यह एरिया पूरा जंगल हुआ करता था। शांति तपस्या के लिए अच्छी जगह मिलने के बाद यहीं पर उन्होंने तपस्या शुरू कर दी।तपस्या करते और आसपास की बस्तियों में धुनी रमाता रहते थे। धीरे-धीरे नाथ योगी गुरु गोरक्षनाथ के रूप में प्रसिद्ध होते गए और तपस्थली गोरखपुर के नाम पर से प्रसिद्ध हो गई.
कहानी कुछ यूं हैआज आप लोग जो गोरखनाथ मंदिर और गोरखपुर देख रहे हैं कभी यह एरिया जंगल था। यहां एक संन्यासी गुरु गोरक्षनाथ ने त्रेतायुग में तपस्या शुरू की। जिस स्थान पर उन्होंने तपस्या की आज उसी स्थान पर मंदिर बना है। आज जो भव्य मंदिर दिखता है वह महंत दिग्विजयनाथ की देन है। 1968 में महंत दिग्विजयनाथ ने इस मंदिर के नव निर्माण का कार्य शुरू किया, जो 1994 तक चला। मंदिर के कार्यालय प्रभारी द्वारिका प्रसाद तिवारी का कहना है कि जो पुराना मंदिर है वह आज भी है। वर्तमान समय में नया मंदिर परिसर लगभग 52 एकड़ में फैला है।
मुश्किलें झेलकर खड़ा है मंदिरलोगों को आज गोरखनाथ मंदिर भले ही मन मोहता हो, लेकिन आज काफी मुश्किलों को झेलकर यहां पर खड़ा हुआ है। गोरखनाथ मंदिर देश के कई शासकों के निशाने पर रहा है। इसकी प्रसिद्ध को देखते हुए कई बार इस मठ पर भी आक्रमण हुए और मठ को नष्ट किया गया। विक्रमी चौदहवीं सदी में मुस्लिम शासक अलाउद्दीन खिलजी ने मठ नष्ट कर दिया और साधक योगी बलपूर्वक निष्कासित किए गए। उसके बाद योगी ने पुनर्निर्माण किया। विक्रमी 17वीं और 18वीं सदी में मुगल शासक औरंगजेब ने फिर मठ को नष्ट किया, लेकिन शिव गोरक्ष द्वारा त्रेतायुग में जलाई गई अखंड ज्योति नहीं बुझ पाई और हारकर मुगल शासक की सेना वापस चली गई। यह अखंड ज्योति गोरखनाथ मंदिर के अंतरवर्ती भाग में प्रज्जवलित है।
मंदिर के भीतर देव प्रतिमाएं मंदिर के भीतरी कक्ष में मुख्य वेदी पर शिवावतार अमरकाय योगी गुरु गोरखनाथ श्वेत संगमरमर की दिव्य मूर्ति ध्यान मुद्रा में प्रतिष्ठित है। साथ ही गुरु गोरखनाथ की चरण पादुकाएं भी प्रतिष्ठित हैं, जिनकी प्रतिदिन विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है। परिक्रमा भाग में भगवान शिव की भव्य मांगलिक मूर्ति, विघ्नविनाशक गणेश, मंदिर के पश्चिमी कोने में काली माता, उत्तर दिशा में कालभैरव और उत्तर की ओर पाश्र्र्व में शीतला माता का मंदिर है। पास ही भैरव, शिव मंदिर, उत्तरवर्ती भाग में राधा कृष्ण, हट्टी माता मंदिर, संतोषी माता मंदिर, श्री राम दरबार, नवग्रह देवता, शनि देवता, भगवती बालदेवी, भगवान विष्णु का मंदिर, अखंड धूना स्थित है। विशाल हनुमान मंदिर, महाबली भीमसेन मंदिर, योगिराज ब्राहृनाथ, गंभीरनाथ और महंत दिग्विजयनाथ की समाधि स्थल हैं। मंदिर की सबसे अधिक श्रद्धालुओं को आकर्षित करने वाला पवित्र भीम सरोवर है।