'साहबे हैसियत हैं तो अदा करें जकात'
- कुरआन में जिक्र, 8 तरह के लोगों को दी जा सकती है जकात
- अपने माल का ढाई फीसद देना होगा जकात GORAKPUR: जकात हर साहबे हैसियत मुसलमान पर फर्ज है। साहबे हैसियत वह है जिसके पास साढ़े सात तोला सोना या फिर बावन तोला चांदी हो या इसकी कीमत के बराबर कैश हो और इसे रखे हुए उसे एक साल गुजर गया हो। ऐसे मुसलमान को जकात निकालना जरूरी है। उसे अपने माल का ढाई फीसद बतौर जकात निकालकर गरीब और मिस्कीनों में देना होगा। दीनी मामलों के जानकार मोहम्मद शहाबुद्दीन सिद्दीकी ने बताया कि यह गरीबों का हक है और इसे निकालना जरूरी है। ताकि न मांगना पड़े अपना हकऐसा अक्सर देखा गया है कि गरीब और बेसहारा लोगों को घर-घर जाकर या मस्जिदों के बाहर खड़े होकर अपना हक मांगना पड़ता है। ऐसे लोगों को लोग चंद पैसे देकर चलता कर देते हैं और ऐसे लोगों को जकात की रकम दे देते हैं जो सही मायने में उसके हकदार नहीं हैं। असल में जकात के पैसों पर पहला हक इन्हीं लोगों का है। उन्होंने बताया कि लोग इनको मस्जिदों के बाहर भले ही कुछ पैसा दे दें, लेकिन जकात के नाम से जो पैसा निकलता है, उसमें से इनको हिस्सा नहीं मिलता है।
जकात देने वाले की जिम्मेदारी
जहां तक मिस्कीनों की बात है, तो इनको इनका हिस्सा बिल्कुल ही नहीं मिल पाता। ये लोग दूसरों के सामने अपनी जरूरतों को बयान करने से परहेज करते हैं। जकात के हकदारों में मिस्कीनों को शामिल करने का मतलब ये हुआ कि गरीबों का ये काम नहीं है कि वो जकात मांगने जाएं, तभी उनको हिस्सा मिले बल्कि इसकी जिम्मेदारी भी जकात देने वाली की ही है कि वह खुद यह देखे के इसका असल हकदार कौन है और उसे उसका हक मिल पा रहा है या नहीं। जकात से दी जा सकती है जमानतमदरसा दारुल उलूम हुसैनिया के मोहम्मद आजम ने बताया कि पहले लोग गुलामों को आजाद कराकर भी जकात अदा करते थे। इसमें मालिकों से सौदा करके गुलाम को खरीदकर आजाद कर दिया जाता था। आज हमारे समाज में गुलाम नहीं हैं, लेकिन बहुत से लोग ऐसे है, जो किसी वजह से जेलों में बन्द हैं, लेकिन अपनी गरीबी की वजह से जमानत की रकम नहीं जमा कर पाने से अब तक आजाद नहीं हो सके हैं। उनकी जमानत देने के लिए जकात के पैसों से मदद की जा सकती है, ताकि उन्हें गुलामों जैसी जिंदगी से रिहाई मिल सके।
मुसाफिरों को भी दे सकते हैं जकात
जकात का पैसे में कर्जदारों और मुसाफिरों का भी हिस्सा है, लेकिन जब फकीरों और मिस्कीनों जैसे बेहद जरूरतमंदों तक इनका हिस्सा नहीं पहुंच सकता, तो इस पैसे से कर्ज अदायगी के लिए सोचना बेकार है। वहीं अगर सफर के दौरान किसी का पैसा खो जाए और उसके पास घर वापस लौटने के लिए पैसा न हो तो उसकी मदद जकात के पैसों से की जा सकती है। इन्हें दे सकते हैं जकात फकीर, मिस्कीन, कर्मचारी (ऐसे लोग जो जकात की रकम इकट्ठा करने के लिए लगाए गए हों), तालीफे कल्ब, किसी को छुड़ाने में, कर्जदार, अल्लाह की राह में, परेशान मुसाफिर को