ट्रेनिंग बंद समझिए बढ़ गया खतरा
- डीडीयूजीयू के साइकॉलोजी डिपार्टमेंट शुरू हुआ था जीएफएटीएम राउंड-7
- पूर्वी क्षेत्रों में इस प्रोजेक्ट के पूरा होने के बाद भी दोबारा इस प्रोजेक्ट को शुरू कराने उठी मांग GORAKHPUR: एड्स, टीबी और मेलेरिया की रोकथाम के लिए सात साल चले ट्रेनिंग प्रोग्राम के बंद होने से फिर इन बीमारियों का खतरा बढ़ गया है। डीडीयूजीयू के साइकॉलोजी डिपार्टमेंट में चल रहे जीएफएटीएम राउंड-7 प्रोग्राम से लोगों को थोड़ा राहत मिली थी, लेकिन काउंसलिंग ट्रेनिंग भी बंद होने से यह प्रॉब्लम पैदा हो गई है। हालांकि साइकोलॉजी डिपार्टमेंट के हेड ने इस तरह के प्रोग्राम को चलाए जाने के लिए यूनिवर्सिटी प्रशासन के साथ ही शासन को भी लेटर लिखा है। बनाए गए थे 25 मास्टर ट्रेनरपूर्वी उत्तर प्रदेश में एड्स, टीबी और मलेरिया जैसी गंभीर बीमारियों के प्रकोप की रोकथाम और लोगों को जागरूक करने के लिए 2009 में ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाया गया। मार्च 2015 तक चले इस प्रोग्राम को डीडीयूजीयू के साइकोलॉजी डिपार्टमेंट ने होस्ट किया। डिपार्टमेंट में इस कोर्स को ग्लोबल फंड टू फाइट विथ एड्स, ट्यूबरक्लोसिस एंड मलेरिया राउंड-7 के तहत शुरू किया गया था। इसके तहत 25 मास्टर ट्रेनर बनाए गए। इन सभी को 12 दिन का इंडक्शन ट्रेनिंग कराया गया। उसके बाद 5 दिन रिफ्रेशर ट्रेनिंग के लिए टाटा इंस्टीट्यूट में ट्रेनिंग कराई गई, ताकि ये सभी ट्रेनर पूर्वी उत्तर प्रदेश के विभिन्न एरियाज में पीडि़तों के काउंसलिंग अच्छे ढंग से कर सके।
सप्ताह में एक दिन कराई जाती थी ट्रेनिंग इस प्रोग्राम के तहत सप्ताह में एक दिन यूनिवर्सिटी के साइकोलॉजी डिपार्टमेंट में बकायदा क्लास ली जाती थी। यहां तक की जेंडर एंड सेक्सुअल्टी स्पेशलाइज्ड ट्रेनर भी तैयार किए जाते थे, ताकि काउंसलिंग बेहतर ढंग से कर सके। इसके लिए यूपी के दो शहरों में इस सेंटर की स्थापना की गई। प्रदेश की राजधानी लखनऊ और दूसरा गोरखपुर यूनिवर्सिटी के साइकोलॉजी डिपार्टमेंट में इस प्रोजेक्ट को संभालने में प्रो। पीएसएन तिवारी का अहम रोल रहा और इनका साथ डॉ। अनुभूति दुबे और डॉ। धनंजय कुमार ने दिया। प्रो। पीएसएन तिवारी ने बताया कि इस प्रोजेक्ट के तहत प्रोग्राम काफी अच्छा रहा, लेकिन इसकी डिमांड आज भी है। इसलिए इसे शुरू कराने के लिए यूनिवर्सिटी प्रशासन और शासन को लेटर लिखा गया है।