आखिर क्यों न मरे किसान?
- सरकार की अनदेखी से भुखमरी के कगार पर पहुंचे किसान
GORAKHPUR : आज हमारे देश का अन्नदाता पेट की आग के कारण मर रहा है। हमारा पेट भरने वाला ही भूख की तड़प में जल रहा है। आखिर ऐसा क्या हो गया कि अब व्हाटसअप तक पर यह मैसेज चल रहा है- 'कभी आप खुले आसमान के नीचे अपनी कमाई रख कर देखिए, रात भर नींद नहीं आएगी। सोचिए किसान पर क्या गुजरती होगी?' हर ओर पिस रहा किसानतीन दिन पहले गोरखपुर से दूर एक गांव में कुछ चीखें सुनाई दी। ये चीखें एक किसान के घर से आ रही थी। उसकी बेटी चीख-चीखकर कह रही थी, मेरे बाऊजी मरे नहीं है, उन्हें मारा गया है। उन्होंने तो अपने पूरे जीवन की पूंजी खुले खेत में छोड़ रखी थी। दिन रात मेहनत कर इस पूंजी को सोने की तरह खेतों में सजा रखा था। भगवान ने उसे बर्बाद कर दिया तो उनका क्या कसूर? आखिर सिस्टम में ऐसा क्या है, जिससे किसान भगवान की थोड़ी सी बेरुखी से आत्महत्या करने को मजबूर हो जाता है। आई नेक्स्ट ने जब इस पर इन्वेस्टिगेट किया तो सामने आया कि किसान की बेटी का आरोप गलत नहीं है। लालफीताशाही के बनाए समर्थन मूल्य ही किसानों की जान ले रहे हैं।
गणित में उलझा किसान आई नेक्स्ट ने गोरखपुर के आसपास के अलग-अलग इलाकों के दस किसानों से बात की। इन किसानों से यह जानने की कोशिश की गई कि आखिर किसान आत्महत्या क्यों कर रहे हैं? खेती में किसान की लागत और मुनाफा क्या है? इन सवालों का जवाब यह मिला कि जितना भी मुनाफा होता है उसका ब्0 प्रतिशत लागत उत्पादन में ही लग जाता है। अगर भगवान का प्रकोप हुआ तो मुनाफे का म्0 प्रतिशत भी पानी में चला जाता है। इस साल किसानों पर ऐसा ही प्रकोप गिरा है। कुछ इस तरह समझिए किसान की हालत- गोरखपुर जिले में मुख्य रूप से ख् फसलें होती हैं। धान और गेहूं। किसान का पूरा जीवन इन्हीं दो फसलों पर टिका होता है। कुदरत का हल्का सा प्रकोप किसान की फसल और जिंदगी दोनों की बर्बाद कर देता है। आई नेक्स्ट ने जब इस बात को समझने के लिए सैंपल के तौर पर एक बीघा जमीन में होने वाली खेती को समझा तो सामने आया किसान का दर्द।- धान की खेती की शुरुआत मई-जून के महीने से होती है। बीज, खाद, पानी, मजदूरी में किसान के औसतन फ्भ्00-ब्भ्00 रुपए खर्च हो जाते हैं। ब् महीने की दिन-रात मेहनत के बाद फसल तैयार होती है। एक बीघे में औसतन क्0 क्विंटल धान तैयार होता है। बाजार में इस धान की कीमत क्0 हजार रुपए मिलती है। यानी जिस किसान के पास केवल एक बीघा जमीन है, उसने ब् महीने में केवल म् हजार रुपए कमाए। उसमें भी अगर कुदरत का प्रकोप हुआ तो यह उत्पादन आधा हो जाता है। यानी किसान का मुनाफा शून्य। ब् महीने की मेहनत खत्म। किसान के घर में ही अनाज के लाले पड़ जाते हैं।
- गोरखपुर जिले में किसान नवंबर महीने में गेहूं के बीज खेतों में छींटते हैं। खाद, पानी और मजदूरी में फ्000-ब्000 रुपए खर्च हो जाते हैं। म् महीने बाद यानी अप्रैल माह में जब सोने की तरह गेहूं की बालियां लहलहाती है तो किसान को अपनी मेहनत सफल होते दिखाई देती है। एक बीघा में गेहूं का उत्पादन भ् क्विंटल होता है। बाजार में इसकी कीमत म्000-म्भ्00 रुपए होती है। यानी म् महीने में मुनाफा फ्000 रुपए। इस साल बारिश और ओलों ने गेहूं का उत्पादन आधा कर दिया है। एक बीघे जमीन में बमुश्किल केवल ख्.भ् क्विंटल ही अनाज पैदा हुआ है। यानी इस साल किसान की म् महीने की मेहनत शून्य। अब आप ही सोचिए कि म् महीने आप दिन रात मेहनत करें और आपको मेहनताने के तौर पर कुछ न मिले तो आप क्या करेंगे। बस यही स्थिति है किसानों की।
इसलिए मर रहा किसान- - समर्थन मूल्य बहुत कम होना। - किसानों तक सरकारी सुविधाएं न मिलना - सरकारी कीमतों पर बीज और खाद का न मिलना - किसानों के मुआवजे के लिए सरकारी हीलाहवाली।