अब कैसे नसीब होगी दो वक्त की रोटी
GORAKHPUR : गोरखपुर से म्0 किमी दूर गोला तहसील। तहसील के तीरा गांव ग्रामसभा का छोटा सा गांव कौडि़या। यहां रविवार की सुबह गम का माहौल था। कहीं से रोने की आवाज आ रही थी तो कहीं लोग कह रहे थे कि बहुत गलत हुआ। अब क्या होगा? पूरे गांव में लोगों की जुबान पर सिर्फ एक ही बात थी कि अब शिवचंद के परिवार का क्या होगा? उन्हें दो वक्त की रोटी कैसे नसीब होगी? कर्ज देने वाले उन्हें कैसे जीने देंगे? शिवचंद की जान गई तो सिर्फ सदमे में। शिवचंद ने जिस फसल को तैयार करने के लिए कर्जा लिया। दिन-रात मेहनत कर पसीना बहाया, मगर जब फसल काटी तो दिल ही बैठ गया। तीन बीघा खेत में सिर्फ एक कुंतल गेहूं निकला। इस सदमे से शिवचंद उबर नहीं पाया और जिंदगी से ही मुंह मोड़ लिया। उसकी मौत से अब पूरा परिवार सदमे में है क्योंकि शिवचंद ही परिवार का अकेले खर्चा चलाने वाला था। परिवार के आंसू बंद होने का नाम नहीं ले रहे थे। लोगों के कुछ देर समझाने पर वे चुप होते, मगर थोड़ी देर बाद फिर उनकी याद और सदमा से उनकी आंखें भर आ रही थी।
पांच बीघा बटाई पर लिया था खेतगोला तहसील के तीरा गांव (कौडि़या) निवासी राम शक्ति के पांच बेटे शिवचंद, शिवनाथ, उमा, दीना और राजकुमार हैं। राम शक्ति के पास फ्फ् डिस्मिल जमीन है। वह अपने छोटे बेटे राजकुमार के साथ रहते हैं। बाकी चार बेटे घर के बाहर ही मड़ई लगा कर रहते हैं। शिवनाथ (भ्0) के दो बेटे हरिनारायण (ख्भ्) और हरिश्चंद्र (ख्ख्) हैं। एक बेटा तीन माह पहले कमाने के लिए दोहा कतर गया है। दूसरा बेटा एक मामले में जेल में बंद है। इससे शिवचंद ही अकेले अपनी पत्नी, दोनों बेटों की पत्नी और एक नातिन का पेट पाल रहा है। शिवचंद के पास ख्0 डिस्मिल जमीन थी, मगर इतनी खेती में परिवार का खर्चा चलाना मुश्किल पड़ता। इससे शिवचंद ने पांच बीघा जमीन बटाई पर ले ली। सोचा कि बटाई देने के बाद भी घर के लिए दो वक्त की रोटी का गेहूं बच जाएगा और बाकी बेच कर कर्ज चुकाने के बाद बचत हो जाएगी, लेकिन ऐसा हो न सका।
रात से ही परेशान था शिवचंदअपनी जमीन के साथ भ् बीघा खेत में फसल लगाने के लिए शिवचंद ने फ्भ् हजार रुपए कर्ज लिया। पूरी मेहनत कर फसल लगाई, मगर बीच में आई बारिश और ओलावृष्टि ने फसलों को काफी नुकसान पहुंचाया। शिवचंद की फसलों पर भी इसका इफेक्ट पड़ा। कुछ दिन बाद देखने से लगा कि काफी हद तक फसल बच गई है। पिछले कुछ दिन से शिवचंद फसल काट रहा था। शनिवार को उसने करीब तीन बीघा खेत की फसल की मड़ाई कराई जिसमें महज एक कुंतल ही गेहूं निकला। यह देख शिवचंद परेशान हो गया क्योंकि आमतौर पर एक बीघा खेत से करीब 8 से क्0 कुंतल गेहूं निकलता है। कम गेहूं निकलने को लेकर वह रात भर सोचता रहा। पत्नी सावित्री ने बताया कि रात एक बजे तक वह जगे थे और काफी परेशान थे। सुबह पांच बजे जब परिवार के सभी लोग सोकर उठे तो देखा कि शिवचंद सो रहा था। जब लोगों ने उठाने की कोशिश की तो मालूम पड़ा कि उसकी जान जा चुकी है।
खानापूर्ति करने पहुंचे अधिकारीबर्बाद फसल के सदमे से शिवचंद की मौत हो गई। यह सूचना आग की तरह पूरे गांव नहीं बल्कि तहसील और जिले में फैल गई, मगर अधिकारियों के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। शाम करीब ब् बजे गोला तहसील के नायाब तहसीलदार राकेश कुमार शिवचंद के घर पहुंचे। जहां उन्होंने परिवार से जानकारी लेने के बाद बताया कि मौत की वजह सदमा हो सकता है, मगर सदमा फसल का बर्बाद होने का नहीं हो सकता। वह छोटे बेटे को लेकर काफी परेशान था जबकि पत्नी और घरवालों का कहना था कि छोटे बेटे की कहानी काफी पुरानी हो गई। शनिवार शाम तक वह बिल्कुल ठीक था। फसल घर लेकर लौटने के बाद उसने किसी से भी बात करना बंद किया था।
बारिश और मुआवजा बने दुश्मन ओलावृष्टि से फसलों को काफी नुकसान हुआ है, मगर इसका ये मतलब नहीं कि बारिश ने फसलों को बर्बाद नहीं किया। सरकार ओलावृष्टि वाले एरिया में सर्वे कर मुआवजा बांट रही है, मगर सरकारी आंकड़ों में बारिश वाले एरिया में कोई नुकसान नहीं हुआ जबकि बारिश से गेहूं न सिर्फ पूरी तरह सड़ गया है बल्कि जो बचा है उसके दाने किसी काम के नहीं हैं। एक बीघा खेत में बमुश्किल एक कुंतल गेहूं निकलना भी मुश्किल पड़ रहा है। सरकार ने इन सभी को मुआवजे से बाहर कर दिया है। साहब अब क्या फायदा ख्भ् परसेंट करने काखराब फसल और मुआवजा में लापरवाही अब किसानों को बर्बाद करने लगी है। लोगों के लिए कर्जा चुकाना तो दूर दो वक्त की रोटी खाना भी मुश्किल पड़ रहा है। हालांकि सेंट्रल और यूपी गवर्नमेंट ने मुआवजा के लिए मानक में चेंज किया है। अब ख्भ् परसेंट नुकसान वाले किसानों को भी मुआवजा मिलेगा। मगर अभी तक इसका शासनादेश नहीं आया है। जबकि अधिकांश खेतों में फसल कट कर घर पहुंच गई है। ऐसे में अगर शासनादेश आ भी जाएगा तो किस आधार पर नुकसान का परसेंटेज लगाया जाएगा। मतलब साफ है कि सरकार की यह योजना सिर्फ दिखावे वाली है। गांव के लोगों की जुबान पर भी अब आने लगा है कि साहब अब क्या फायदा ख्भ् परसेंट करने का।
आखिर क्या-क्या करता क्ख्00 रुपए से बेचारा शिवचंद। आखिर परेशान न होता तो क्या करता। बड़े बेटे को विदेश कमाने के लिए भेजना था। पैसा नहीं था। शिवचंद ने म्भ् हजार रुपए उधार लिया और बेटे को कमाने भेज दिया। सोचा कि कुछ मदद बेटा कर देगा और कुछ गेहूं की फसल। फसल से अच्छी कमाई हो, इसके लिए भ् बीघा खेत बटाई पर ले लिया। एक बीघा बटाई के लिए 7 हजार रुपए फिर कर्जा लिया। इस हिसाब से फ्भ् हजार रुपए कर्जा लेकर पांच बीघा खेत में गेहूं की फसल लगाई। शिवचंद को उम्मीद थी कि इन खेत से करीब ब्भ् कुंतल गेहूं होगा। जिससे न सिर्फ कर्जा पूरा होगा बल्कि घर में दो वक्त की रोटी भी मिलेगी। कुछ इसी सोच के साथ शिवचंद ने खेत में दिन-रात मेहनत की, मगर जब शनिवार को तीन बीघा खेत का गेहूं घर आया तो उन्हें गहरा सदमा लगा। तीन बीघा खेत से सिर्फ एक कुंतल गेहूं आया। मतलब मार्केट में बिकने के बाद क्ब्00 रुपए रकम मिलेगी। इसी हिसाब से पांच बीघा खेत की बात करें तो डेढ़ कुंतल गेहूं ही निकलेगा। ऐसे में बटाई देने के बाद शिवचंद को बमुश्किल क्ख्00 रुपए ही मिलेंगे। ऐसे में इन क्ख्00 रुपए से सारी जरूरत पूरा करना शिवचंद के लिए मुश्किल था। शनिवार रात से शिवचंद इसी सदमें में था। फसल में भारी नुकसान से शिवचंद बहुत दुखी था। कल रात वह किसी से बात भी नहीं कर रहा था। फसल काटने के बाद उसे अब पूरे साल की चिंता सता रही थी। सुबह वह सोकर ही नहीं उठा। रामशक्ति, पिता वह शनिवार रात से बहुत परेशान थे। फसलों से काफी कम गेहूं होने से वह काफी दुखी थे। वे कह रहे थे कि अब कर्जा कैसे भरेंगे और दो वक्त की रोटी कैसे खाई जाएगी। सावित्री, पत्नी रात क्ख् बजे तक मड़ाई कर रहे थे। तीन बीघा खेत में सिर्फ एक कुंतल गेहूं निकला है जिससे वे काफी परेशान थे। सुबह सभी लोगों ने उन्हें उठाया तो उनकी जान जा चुकी थी। ज्ञानवती, रिलेटिव्स क्या हैं रीजंस? अधिकारों को लेकर रिसर्च करने वाली संस्था ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क के मुताबिक किसानों के सुसाइड के पीछे निम्न वजहें होती हैं। - शादी, जमीन या फसल के लिए कर्ज लेने के बाद उसे चुका न पाना - सूखा - बारिश और ओलों का प्रकोप - सरकारी तंत्र की लापरवाही से योजनाओं का खराब क्रियान्वयन पॉलिसी न होना है वजह? हाल ही में अपनी उत्तर प्रदेश यात्रा के दौरान यूनियन होम मिनिस्टर राजनाथ सिंह ने प्रदेश सरकार से किसानों के सुसाइड की घटनाओं को छिपाने के बजाय उन्हें तत्काल राहत और मुआवजा देने के निर्देश दिए थे। सरकार के मुताबिक अभी तक फसलों के नुकसान के चलते यूपी के करीब 80 किसानों की मौत हो चुकी है। उत्तर प्रदेश के पास सुसाइड करने वाले किसानों के परिवारों के लिए मुआवजा और विस्थापन से जुड़ी कोई क्लियर पॉलिसी नहीं है। हालांकि बढ़ती घटनाओं को देखते हुए सीएम अखिलेश यादव ने ़कुछ दिन पहले फ्00 करोड़ और ख्00 करोड़ के दो रिलीफ पैकेज अनाउंस किये है। इस पैकेज ने किसानों के जले पर नमक का काम किया क्योंकि कई जगह किसानों को क्8म् और 7भ्0 रुपए के चेक बतौर मुआवजा दिए गए। ये हाल तब है जब यूपी गवर्नमेंट ने अपने ऑर्डर में ये साफ लिखा था कि कहीं भी 7भ्0 रुपए से कम का मुआवजा नहीं दिया जाएगा। चीफ सेक्रेट्री आलोक रंजन के मुताबिक ब्0 जिलों में करीब क्क्00 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। एसौचैम की रिपोर्ट?के मुताबिक भारत में महज क्9 फीसदी किसान ही इंश्योरेंस कराते हैं। 8क् परसेंट किसानों को फसल बीमा के बारे में पता तक नहीं है। केंद्र और राज्य की सरकारें किसानों के लिए केवल घोषणाएं कर रही हैं, लेकिन किसानों के हकीकत में कुछ नहीं मिला रहा है। जिसके कारण किसान पूरी तरह से हतोत्साहित है। इसी का परिणाम कौडि़या की घटना है। स्थिति यह है कि लेखपाल रिपोर्ट उसी का दे रहे हैं जो सत्ता पार्टी से जुड़ा है या पावरफुल है। गोला किसानों के साथ किसी भी हाल में अन्याय नहीं होने दिया जाएगा। राजेश त्रिपाठी, विधायक चिल्लूपार