बिवाइयों का दर्द भी न डिगा सका हौंसला
- चकाचौंध का तिलिस्म तोड़ फतह किया मैदान
- फकीर बनकर मांगा वोट, जनता ने भर दी झोली GORAKHPUR: जिला पंचायत सदस्य निर्वाचन के परिणाम सोमवार की सुबह आ गए। जीतने वालों को बस निर्वाचन के सर्टिफिकेट का इंतजार था। सालों से जिले की पंचायत में पहुंचने का सपना साकार होने की खुशियां चेहरे पर साफ झलक रही थीं। कोई गुलाल से सना चहकता मिला, तो कोई फूल मालाओं से लदा मुस्कुराता रहा। कलेक्ट्रेट कैंपस में जुटी भीड़ में कुछ ऐसे भी चेहरे थे जिनको सहसा अपनी जीत पर यकीन नहीं हो पा रहा था। वह लोग कुछ अलग थलग नजर आ रहे थे। चुनावी चकाचौंध का तिलिस्म तोड़ इन मतवालों ने कुछ नया कर दिखाया। बिवाइयों के दर्द से बेपरवाह फकीर भी जिले की पंचायत में पहुंचने में कामयाब हुए। न घर न बार, जनता जिंदाबाद वार्ड नंबर 12: ईश्वर चंद विद्यासागरबालापार रोड के महराजगंज निवासी ईश्वर चंद विद्यासागर तीसरी बार के प्रयास में जिला पंचायत सदस्य चुने गए। घर-बार की परवाह किए बिना ईश्वर चंद 1989 से राजनीति में सक्रिय हैं। कई नेताओं के साथ रहकर ईश्वर ने अपना फ्यूचर संवारने की कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हो सके। जिला पंचायत में किस्मत आजमाने की कोशिश की तो धन की कमी आड़े आई। लेकिन पैसे वालों के आगे उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। इस बार के चुनाव में फिर दम भरा। अपने-अपने जानने वालों से पूछकर चुनाव में दावेदारी की। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि प्रत्याशियों की भीड़ में पब्लिक का प्यार उनको मिल सकेगा। रिजल्ट आया तो उनको खुद यकीन नहीं हुआ। ईश्वर को लगा कि वह खुली आंखों से कोई सपना देख रहे हैं, जिसमें उनके दो सौ वोट से जीतने की घोषणा की गई। ईश्वर ने कहा कि उनका चुनाव जीतना किसी चमत्कार से कम नहीं है।
देख लो, अपने दम पर रच दिया इतिहास वार्ड नंबर एक: सर्वजीत गौड़पिपराइच एरिया के रउतापार गांव के सर्वजीत गौड़ ने रिकार्ड बनाया। जिला पंचायत चुनाव में 13 प्रत्याशियों की भीड़ में अकेले 12 हजार 229 वोट हासिल किया। सर्वजीत के आगे बाकी सब डेढ़ हजार से कम वोट के आंकड़े में सिमट गए। प्रचार के अनोखे तरीकों ने सर्वजीत को पापुलर बनाया। हालांकि उनको भी रुपए पैसे खर्च करने वाले प्रत्याशियों का डर सता रहा था। पत्नी समुझावती के साथ साइकिल से प्रचार करने निकले सर्वजीत ने दो बेटे सोनू, अमित और बेटी पिंकी को कह दिया था अब चुनाव के बाद ही लौटेंगे। पति-पत्नी दिन भर प्रचार करते थे। खेत-खलिहान से लेकर गांव के चौराहे तक हर किसी से मिलते। उनसे वोट देने की अपील करते। कोई पैसा वाला मिल जाए तो उससे वोट के साथ-साथ बैनर पोस्टर के लिए मदद की गुहार लगाते। जिसके घर के सामने शाम हो जाती। उसके घर भोजन करके सो जाते। फिर अगली सुबह मिशन फतह पर निकल जाते। जिला पंचायत चुनाव में दो बार हार चुके सर्वजीत ने ठान लिया था कि बिवाइयों का दर्द उनकी राह नहीं रोक सकेगा। सोमवार को सर्वजीत जब जीत का सर्टिफिकेट लेने पहुंचे तो डीएम रंजन कुमार गदगद हो उठे। बगल में बैठे एसएसपी और सीडीओ से कहा। देख लो, यही सर्वजीत गौड़ हैं जिन्होंने अपने दम पर इतिहास रच दिया। डीएम की बात सुनकर सर्वजीत की आंखों से आंसू छलक पड़े। आरओ के कमरे में मौजूद लोगों की निगाहें सर्वजीत पर जाकर टिक गई।
दो जून की रोटी नहीं, पब्लिक ने दिया सम्मान वार्ड नंबर 15: शंकरपीपीगंज एरिया में सब्जी बेचने वाले शंकर के घर में बमुश्किल दो जून की रोटी का इंतजाम हो जाता है। सब्जी बेचकर किसी तरह से परिवार का भरण-पोषण करने वाले शंकर अपने गांव ज्वार के नेताओं के आगे पीछे घूमकर सेवा करते थे। वे पिछली बार चुनाव लड़े तो उनके मुकाबले खड़े लोगों ने आसमान दिखा दिया। घर की जमा पूंजी खर्च होने से दोबारा चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं रही। इस बार जब जिला पंचायत का बिगुल बजा तो बच्चों ने मौज ली। कहा शंकर काका, फिर लड़ लो। मजाक तो आखिर मजाक, लेकिन शंकर ठान लिया कि कुछ करके दिखाएंगे। हालांकि सामने खड़े प्रत्याशियों को देखकर उनका दिल बैठ जाता था। फिर भी वह साइकिल से अपने प्रचार में जुटे रहे। कुछ पुराने साथियों और अपने परिचितों के भरोसे वह किस्मत आजमाने उतरे। शंकर 777 वोट से जीत गए हो तो उनके विरोधियों को जबर्दस्त झटका लगा।
इस हनुमान को बस राम का सहारा वार्ड नंबर 11: हनुमानचरगांवा ब्लॉक स्थित जिला पंचायत के वार्ड नंबर 11 में धनबलियों, बाहुबलियों की लंबी फेहरिस्त थी। कोई प्रापर्टी डीलर तो कोई बड़ा ठेकेदार, किसी के पास पॉलिटिकल बैक ग्राउंड तो किसी के सामने सैकड़ों मददगार। इन सभी के बीच देवीपुर गांव के हनुमान ने भी ताल ठोंक दी। प्रभावशाली प्रत्याशियों के सामने आने पर कदम पीछे हटाने को सोचा, लेकिन परिचितों ने कहा जब लंका में कूद गए तो डंका बजा दो। प्रचार के पैसे नहीं थे जैसे-तैसे पोस्टर छपवाए। चंदा लगाकर किसी तरह से पर्चा भर दिया। हार सुनिश्चित मानकर रविवार को मतगणना कराने गए। राम नाम लेकर ब्लॉक पर पहुंचे। वहां किस्मत के दांव ने हनुमान को कामयाबी की चोटी पर पहुंचा दिया। करीब पांच हजार वोट पाकर हनुमान इलेक्शन जीतने में कामयाब रहे।