मध्य प्रदेश में भले ही एमबीबीएस की पढ़ाई हिंदी में अब शुरू हुई हो और डॉक्टर भी हिंदी में दवा और मर्ज लिखने लगे हैैं लेकिन सीएम सिटी गोरखपुर में यह परंपरा वर्षों से कायम है. यहां डॉक्टर हिंदी में मरीजों को दवा और मर्ज लिखते आ रहे हैैं. यही नहीं आरएक्स की जगह 'मंगल होÓ लिखते हैैं. जो मरीजों के लिए भी एक सुखद अनुभव है. इसके साथ ही बीआरडी मेडिकल कॉलेज के एनॉटमी डिपार्टमेंट में एमबीबीएस फस्र्ट ईयर स्टूडेंट्स को इंग्लिश के साथ-साथ हिंदी में भी पढ़ाया जाता है. दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ऐसे डॉक्टर्स की कहानी बता रहा है जो अपनी जिम्मेदारी निभाने के साथ मातृभाषा को आगे बढ़ाने में हरसंभव प्रयास कर रहे हैं.


गोरखपुर (अमरेंद्र पांडेय).राज्यसभा सांसद व बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर राधा मोहनदास अग्रवाल 1976 से मरीजों का इलाज कर रहे हैैं। वह शुरू से ही हिंदी में दवा लिखते हैैं। वे बताते हैैं कि 1976 में बीएचयू से एमबीबीएस व 1981 में एमडी पीडियाट्रिक्स से पढाई की है। वे बताते हैैं कि मातृ भाषा हिंदी है। ऐसे में वह मरीजों से जिस भाषा में बात करते हैैं, उसी भाषा में मर्ज के साथ-साथ दवा भी पर्चा में लिखते हैैं। वे बताते हैैं कि मध्य प्रदेश में डॉक्टरी की पढ़ाई हिंदी में शुरू हुई है। इसकी वे सराहना करते हैं और इसके लिए वे सीएम शिवराज सिंह चौहान को बधाई देने भोपाल जाएंगे। वह यह भी बताते हैैं कि जो काम अब हुआ है। यह बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था। वे 2003 में मुलायम सिंह यादव के सीएम रहते हुए इस बात की आवाज विधानसभा में उठा चुके हैैं कि डाक्टर्स को पर्चा हिंदी में लिखना चाहिए। हिंदी में हो मेडिकल की पढ़ाई: डॉ। मौर्य
बीआरडी मेडिकल कालेज के न्यूरो सर्जरी विभाग के पूर्व एचओडी रहे प्रो। डॉ। विजय शंकर मौर्य 2018 में वीआरएस ले चुके हैैं। वह मेडिकल कालेज में 1995 से ही ओपीडी में मरीजों को इलाज के दौरान हिंदी में भी मर्ज और दवा दोनों लिखते आ रहे हैैं। शुरुआती दिनों में मेडिकल कॉलेज में डाक्टर्स द्वारा विरोध भी हुआ, लेकिन उन्होंने मातृभाषा को और मजबूत करने के लिए हिंदी में लिखना जारी रखा। वे बताते हैैं कि मध्य प्रदेश में जिस प्रकार से एमबीबीएस की पढाई हिंदी में शुरू हुई है। यह सराहनीय है। हम इसका स्वागत करते हैैं। चूंकि ग्रामीण क्षेत्र के बच्चे जो आते हैैं, उन्हें अंग्रेजी में मेडिकल के टर्मनॉलोजी समझने में दिक्कत होती है। ऐसे में वह कई बार फेल भी हो जाते हैैं। इसलिए बच्चों को हिंदी में पढाए जाने चाहिए। इससे हिंदी भाषीय बच्चों को काफी सहूलियत मिलेगी। वे बताते हैैं कि बीआरडी मेडिकल कालेज में मरीजों के जो डिस्चार्ज स्लिप बनाए जाते हैैं थे, वह भी हिंदी में लिखते थे। इसके लिए उनके सीनियर न्यूरो सर्जरी प्रो। सुरेश्वर मोहंती दवा लिखते वक्त मदद करते थे। वे बताते हैैं कि मेडिकल की पढ़ाई मातृभाषा हिंदी में ही होनी चाहिए।

Posted By: Inextlive