साइकोलॉजिस्ट की मानें तो कम उम्र में बच्चे का ब्रेन ठीक से विकसित नहीं होता है. पहले लोग अपने बच्चों को ग्रेजुएशन के बाद बाहर तैयारी के लिए भेजते थे.


गोरखपुर (ब्यूरो)। कुछ लोग 12वीं के बाद भी भेजते थे। इस समय देखा जा रहा है कि बच्चा जैसे ही 9वीं क्लास या 11वीं में जा रहा है। उसके पेरेंट्स कॅरियर को लेकर परेशान हो जा रहे हैं। केस 1: टॉपर के जब कांपने लगे हाथ
सिविल लाइन के एक फेमस स्कूल में पढऩे वाली छात्रा ने हाईस्कूल में 96 परसेंट माक्र्स हासिल कर विद्यालय टॉप किया था। अब पेरेंट्स की उम्मीदें भी छात्रा से बढऩे लगीं। बिना सोचे समझे पेरेंट्स ने छात्रा को कोटा भेजने का निर्णय ले लिया। 11वीं में स्कूल की पढ़ाई छुड़ाकर उसे तैयारी करने के लिए कोटा भेजा गया। जहां पर एक साल तक छात्रा रही। वहां इंटर पास आउट बच्चों के बीच रह कर वो स्ट्रेस में चली गई। खुद को वह कमजोर समझने लगी। वह अकेले कमरे में रहने लगी, सबसे बातचीत भी छोड़ दी। जब पेरेंटस उससे मिलने पहुंचे तो वह तेज तर्रार छात्रा का हाल देखा तो उनके होश उड़ गए। आनन-फानन में उसे गोरखपुर लाए। यहां एक स्कूल में उसका फिर से दाखिला दिलवाया। लेकिन स्कूल में भी पढ़ाई के दौरान उसका हाथ कांपने लगता था। हमेशा वह डरी हुई रहती थी। साइकोलॉजिस्ट द्वारा लगातार काउंसिलिंग करके छात्रा को फिर से पढऩे के लिए प्रेरित किया गया। तब जाकर उसे नया जीवन मिला। केस 2: तीन माह में कोटा से वापस आ गया छात्रशाहपुर स्थित एक स्कूल में 11वीं में पढऩे वाले छात्र को उसके पेरेंट्स ने बाहर तैयारी के लिए भेज दिया। पूरे साल की फीस कोचिंग को दे दी। अभी दो माह भी पूरे नहीं हुए थे, छात्र डिप्रेशन में आ गया। पेरेंट्स ने उसका इलाज भी कराया, जब असर नहीं हुआ तो उसे गोरखपुर वापस लेकर आ गए। यहां बच्चे की काउंसिलिंग करवाई तो एक्सपर्ट ने बताया कि कम उम्र में बच्चे को बाहर भेज देने की वजह से यह डिप्रेशन में आ गया है। कुछ दिन कांउसिलिंग करने के बाद सब ठीक हो जाएगा। यह तो केवल दो मामले हैं। ऐसे ढेर सारे किस्से आपको स्कूलों में मिल जाएंगे। खासतौर से कक्षा 9 से 11वीं के बच्चे कम उम्र में ही तनाव के शिकार हो रहे हैं। जब कि यह उनकी खेलने कूदने की उम्र है। यह उम्र बच्चों की सही गलत का फैसला ले पाने में सक्षम नहीं होती है। इसलिए पेरेंट्स बच्चों को 12वीं तक अपने साथ ही रखें तो उसके सेहत के लिए अच्छा होगा।स्कूलों ने भी जताया एतराज


गोरखपुर के स्कूलों की मानें तो वर्तमान समय में 11वीं क्लास में बच्चों की सख्ंया घट रही है। हाईस्कूल के बाद बच्चे स्कूल छोड़ दे रहे हैं। इसको लेकर सीबीएसई ने भी चिंता जताई थी। स्कूलों से इसका कारण भी पूछा था। स्कूलों का कहना है कि स्कूल में बच्चे जो सीखते हैं, उसे कोचिंग में कभी नहीं सीख सकते हैं। वहां केवल उन्हें सब्जेक्ट का ज्ञान दिया जाता है। जबकि स्कूल में खेल-कूद के साथ ही समय समय पर कई इवेंट आर्गनाइज होते हैं, जिससे बच्चा पढ़ाई से इतर भी सीखता है। एक नजर में स्कूल सीबीएसई स्कूल- 125आईसीएसई स्कूल- 25यूपी बोर्ड स्कूल- 489

Posted By: Inextlive